|| हरे माधव दयाल की दया ||
वाणी संत सतगुरु बाबा नारायणशाह साहिब जी
।। आए प्रगटै संत दयाल, अजब खेल रचा स्वांग कमाल।।
।। प्रेम चरणन जिन रमाया, आतम राम तिन अलख ध्याया।।
।। से सदा बेपरवाहे, आतम मौज के शाही।।
।। खिन्न में ताड़े, खिन्न करे निहाले।।
।। अगम निगम की बातें, मौज में राज सब खोले।।
आज के सत्संग की अमृतमयी वाणी सतगुरु सांई नारायणशाह साहिब जी द्वारा फरमाई, कुल आवाम के लिए पावन संदेश है। आपजी फरमाते हैं, अप्रगट प्रभु रूप दाता, पूरे सतगुरु का जामा ओढ़ युगों-युगों, कल्पों में इस धरा पर प्रगट होते हैं। आदि-अनादि काल से पूरण सतपुरुखों ने, इस धरा पर मानव को अज्ञानता के अंधेरे से निकाल, परम दिव्य ज्ञान का प्रकाश दिया और दे रहे हैं। वे निर्भीक अडोल हो, रूहों को हरे माधव प्रभु मालिक के धाम में ले चलने के लिए, अनेकों-अनेक स्वांग रचते हैं, उनकी मौज प्रभु की मौज है, वे अपनी मौज के राजे हैं, वे अपनी मौज के शाहे हैं, पूर्ण संत पुरुख की मौज प्रभु की तरह निर्लेप, फक्कड़ता वाली मौज है, उनकी मौज रब्बल की मौज है, सत्संग वाणी में भी आया है-
आए प्रगटै संत दयाल, अजब खेल रचा स्वांग कमाल
आपजी समझाइश देते हैं, पूरण सतगुरु स्व अजब स्वांग खेल रचते हैं, जिससे रूह आतम मन की लहरों से निकल उस हरे माधव धाम में जा मिले।
पूर्ण संत सतपुरूखों ने सदा-सदा से उस साहिब के सत-आदेश का होका दिया। अब प्रश्न आता है कि पूरण सतपुरुख कहां से आते हैं? कहते हैं प्यारे गुरुमुखों! वे निर्वाण धुर लोक से आते हैं, याने आए प्रगटै संत दयाल। ऐसी कौन सी ताकत स्त्रोत से वे आते हैं? वह कौन सा अप्रकट नूर है, जो अथाह है, जिसका थाह नहीं। तो वचन आए, अप्रगट रूप प्रभु से, प्रगट रूप सतगुरु आए और रूहों को चिताया कि ऐ बंदे! तुम्हारा मालिक तुम्हारे अंदर है, काल की दुख भरी, उलझन वाली दुनिया से उठो, चलो, आतम परम अमृत के निजधाम में। इसीलिए तो हम पूर्ण संत सतगुरु को सच्चे पातशाह कहते हैं, क्योंकि वे एक ऐसी सत्य हस्ती, सत्य पद को पाकर, सच्चे सतरूप ही हो गए, जो अडोल है, स्थिर है।
आए प्रगटै संत दयाल, अजब खेल रचा स्वांग कमाल
साधसंगत जी! आज हम फक्कड़ मौला, निर्वाणी बेपरवाही, आतम मस्ती में पुरनूर,सच्चेपातशाह सतगुरु बाबा माधवशाह साहिब जी का प्रकाशोत्सव मनाने के लिए भजन सिमरन के भंडारी सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी की ओट शरण में बैठे हैं।
सतगुरु बाबा माधवशाह साहिब जी की माता का नाम तुलीबाई, पिता श्री खीलयदास जी, बड़े भाई श्री ठाकुरदास जी, दूसरे भाई श्री चेतनदास जी तथा तीसरे आप शहंशाह सतगुरु बाबाजी। आपजी के बचपन का नाम भाई साजन। आप साहिबान जी का अवतरण 18 अगस्त 1880 को हुआ। उस दिन उस समय, नभ गगन से खूब पानी का राग मल्हार, झम-झम कर बरसा।
आपजी सभी पूर्ण संतो की तरह, बाल्यकाल से ही पूर्ण अलौकिक अंतरमुखता, सिमरन ध्यान की निज कैफियत में मस्त रहते, आपजी रूहानी मार, रूहानी डांट से स्वांगभरी लीलाऐं कर जीवों को चिताते, जो कच्चे घड़े होते वो जोर लगा, निन्दा विरोध भी करते पर सत्य आकाश के मालिक तो सदा अपनी मेहर बरसाते हैं। हमें भी अटूट प्रेम, श्रद्धा धारण करनी है और वही बर्तन हमें बनना है, जिसमें अमरता के नूर को संजोया जा सके।
ऐसे प्रेम का वर्णन संत दया बाई जी ने इस प्रकार किया-
प्रेम पुंज प्रगटै जहाँ, तहाँ प्रगट हरि होय
‘दया’ दया करि देत है, श्री हरि दरसन सोय
आपजी बाल्यकाल से ही, सतगुरु चरणों की सेवा बंदगी में परम मस्त रहते, जब आप साहिबान गुरुगद्दी पर आसीन हुए, उसके पहले लगभग दस-बारह साल, आपजी अलूप हो गए, हरिद्वार, बद्रीनाथ में कई ऐसी कन्द्राओं (गुफाओं) में आप बेपरवाह, अपनी मौज में वर्तण करते, जहां आम इन्सान जाने की सोच भी नहीं सकता, वहां आपजी परम खुमारी में किस तरह पंहुच जाते यह गहन भण्डारी विषय है, फिर किस तरह वहां से उड़कर यहां पंहुच जाते, यह भी अकह गहन भण्डार विषय है, आपजी भगवान परशुराम की तरह शिष्य रूहों के कष्ट हरने के लिए, कड़े से कड़े वचन भी कहते, जो मीठे मन से स्वीकार करते वह वरदान हो जाते और जो उलट भाव रखते वह श्राप बन जाते, आपजी का न्यारा रूप रूहानी कलाऐं, भारी परीक्षा लेकर ही आप वरदान देते। जिन घने बियाबान जंगलों में आपजी निर्भीक मौज में जाते, वहाँ हिंसक से हिंसक जानवर भी, अपनी हिंसा भूल, आपजी के पावन श्री चरणों में नतमस्तक हो जाते। जब लम्बे अरसे के बाद आपजी लौटे, मुखमण्डल पर नूर-ए-जलाल, नूर-ए-नूर की चमक बह रही थी। उस वक्त यह ‘माधव नगर’ छोटा गांव-कस्बा हुआ करता, शाम होते ही आपजी छड़ी ले, सभी को डांट-फटकार कर रूहानी बुलंद आवाज में सचेत करते, कि ‘‘उसकी बंदगी से जुड़ो, जिसने कुल रचना को बनाया है’’ आपजी की ऐसी स्वांग भरी लीलाऐं देख, उस वक्त गांव कस्बों के लोग बाबाजी के लिए, कई ऐसे शब्दों का भी इस्तेमाल करते, जो कहने-सुनने में असहनीय पीड़ा देते, पूरे शहर के कोरे विद्वान, जो कच्चे गुरु या मनमुख थे, वे इन लीलाओं को समझ नहीं पाते, जो सर्गुण-निर्गुण की अभेदता के मालिक हैं। चौथे लोक के साहिब-ऐ-मालिक हैं, उनकी महिमा को समझना, गफलतधारी बंदे की पहुंच से दूर है।
सच्चे पातशाह जी का पावन उपदेश, ऐ जीवात्माओं! गफलत से उठो! सतगुरु बंदगी का उदम करो, आपजी ने उदम की बात भी, अपने वचनों में कही और हिदायत भी दी, कि अगम देश की राह पकड़ो, उस अगम अगोचर दाते को, परम ज्योत के रूप में अनुभव सतगुरु बंदगी से किया जा सकता है, किसी अन्य दूसरे सलीके से नहीं और यह परम ज्योति पूरन सतगुरु के बक्शे, अमृत नाम शबद को कमाकर ही दिखाई देती है। आपके अंदर गुफा में सच्चा शबद बज रहा है, उसी शबद के अंदर अगम का प्रकाश भरा है, जब सतगुरु शबद नाम की कमाई करते हैं, तो अगम अगोचर की एको ज्योत, जाग उठती है।
प्यारे सत्संगियों! हाजिरां हुजूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी अपनी अलस्ती खुमारी में अक्सर सतगुरु पातशाहियों की विराट करुणा कुर्ब के भेद मौज में प्रगट करते हैं, जिसे सुनकर बड़े बुजुर्ग जनों के मन भर आते हैं कि कुल मालिक सतगुरु बाबा माधवशाह साहिब जी, सतगुरु बाबा नारायणशाह साहिब जी ने हम सभी पर मेहर बरसानी चाही, पर उस वक्त हम समझ न सके। जब से भजन सिमरन के भंडारी सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी की परम ज्योत प्रगट हुई है, तो हमें गुरु साहिबानों की अथाह ही अथाह दया रहमतों के खेल याद आते हैं वरना हम तो कब से सोए हुए ही पड़े थे। सो संगतों! आज जागन की वेला है, सतगुरु शहंशाहों की महिमा सिफत को सुन-सुन कर भक्ति भाव को बढ़ाने की वेला है।
एक बार सतगुरु बाबा माधवशाह साहिब जी दरबार साहिब में विराजमान, इतने में गांव के भोले-भाले किसान, भूसे घास से लदी बैल-गाडि़यां ले आए। आपजी ने एक प्रेमी को कहा- इन सारी गाडि़यों को रोक दो और उनसे पूछो कितना मूल्य, कितना दाम लेंगे इनका? जितना दाम उन ग्रामीणों ने बोला, उससे एक गुना ज्यादा दे, आप जी ने उन भोले-भाले किसानों से कहा- घर में सभी बच्चों को मिठाई खिलाना। भूसे घास से भरी बैल-गाडि़यां देख, एक बन्दे का दिमाग काल ने ढक दिया, वह था तो सतगुरु दर का प्रेमी पर हम पहले भी कह चुके हैं कि जो दिमाग से जुड़े हुए बन्दे हैं, वे फिसल जाते हैं, तहे दिल से जुड़े नहीं, बिदकते हैं। वह बंदा कहने लगा, ‘‘पता नहीं क्यों, बाबाजी को ये व्यर्थ की बातें करने में मजा आता है। वह भांति-भांति के अभावों को अपने अन्दर संजोए हुआ था। संत बाबाजी ने निर्भीक कड़क वचन बोलते हुए कहा, ‘‘तुम कौन हो मेरे काम में दखल देने वाले? सेवा सेवक बनकर करो, मालिक बनकर नहीं।’’
कभी-कभी पूर्ण संतों को भी हम जीवों को संवारने के लिए कड़क वचनों द्वारा उपदेश देने पड़ते हैं, डॉक्टर, सर्जन की तरह रूप धारण करना पड़ता है। आपजी ने एक बन्दे को कहा, ‘‘यह सारा घास-भूसा बगल के मैदान में छोड़ आओ, गाय, पशु-पक्षी और जो इसके अधिकारी होंगे वे ले जाऐंगे।’’ उस वक्त समाज की दशा बहुत ही उल्टी थी, आपजी ने रहमत वाली निगाह कर, बड़े अद्भुत वचन फरमाए कि ‘‘जिस जगह आज हमने यह सारा भूसा छोड़ा है, वहाँ बड़ा आलीशान सत्संग हॉल बनेगा’’ जो वचन आज प्रकाशमय हो रहा है, हम सभी देख रहे हैं, वहीं उसी जगह पर आलीशान भव्य ‘हरे माधव भवन’ निर्माणाधीन है।
भजन सिमरन के भण्डारी सतगुरु, मौलाई सतगुरु की मार झिड़प में भी शिष्य की आतम का परमहित एवं कमाई वाले परम सतगुरु की भण्डार देने की यह मौज-ऐ-विरासत है। कई ऐसे रूहानी राज पहलू तो आज भी अक्सर सुनते हैं। शहंशाह सतगुरु सच्चे पातशाह, अलस्ती बेपरवाह बाबा माधवशाह साहिब जी, आपजी परम खुमारी में, जीव मण्डल पर हर पल कोई न कोई कौतुक, जीव तारण का जरूर रचते।
खिन्न में ताड़े, खिन्न करे निहाले
अगम निगम की बातें, मौज में राज सब खोले
आपजी करुणा का भंडार भी लुटाते और खूब रूहानी डांट फटकार देकर, माया का पर्दा चढ़ा देते। आपजी समाज को भी सही दिशायें अपनी मौज में देते।
आपजी अमृतमयी सत्संग वाणी में फरमाते हैं, जी आगे-
।। संत पूरा बड़ा किरपाला, धुरधाम का दाता।।
।। कहे नारायणशाह सुनो प्यारों।।
।। पूरा संत राम सुजाना, स्वांग धरा सब भेद चिताया।।
शहंशाह सतगुरु सांई नारायणशाह साहिब जी हम जीवों को अभेदता का भेद समझाते हुए फरमाते हैं कि,
संत पूरा बड़ा किरपाला, धुरधाम का दाता
याने पूरे संत समदर्शी हैं, आपजी विभिन्न लीलाओं स्वागों के माध्यम से, सत्य का मार्ग दिखाने, सत्य का भेद बताने के लिए ही, धुरधाम के दाते इस धरा पर अवतरित होते हैं।
गुरु की प्यारी संगत! भजन सिमरन के भण्डारी हाजि़रां हुजूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी, परम खुमारी में अलौकिक मण्डलों के भाव, अपने सर्वत्र समत्व भाव के प्रकाश भण्डार से, पावन दरगाही वचनों से सारे रम्जों भेदों को प्रगट करते हैं। आप हाजिरां हुजूर गुरु महराज जी, शहंशाह सतगुरु बाबा माधवशाह साहिब जी के अलस्ती मौज, बेपरवाही मौज के भेद, आपे आप प्रगट कर रहे हैं, मालिकां जी पारब्रम्ह पुरुख वेता, जीवन मुक्त अवस्था में रमण करते हैं, बाहरी संसार में ऐसी प्रकृति की रचना, कि कुछ मान कुछ अपमान के बोल, कुछ यश कुछ अपयश की कथाऐं, पर आपजी परम समदृष्ट योग मुक्त पुरुख रूप में रमण करते हैं। ब्रम्ह पुराण में आया, कि ऐसे परम योगीराज, परम आतम में शुद्ध में शुद्ध रूप में भरपूर भरे रहते हैं।
कमाई वालों के भंडार अणखुट गहन हैं, बस यही विनय आस हर पल करते रहना चाहिए, तौबा नीजारी, सिदक अटूट, प्रेम अटूट, चरणन जी भगति।
काल खंड में आए के, खेले सतगुरु परम कृपाल
काल खंड में रूह उबारे, आप बन कुल दयाल
दाता सतगुरु सम नाहिं साधो संतों, नौ खंड पृथ नौ खंड पसारे
साचे सतगुरु बिन काल खंड आतम न उबरे
कहे दास ईश्वर आप रूप बन दुख भंजन तारे रूह उबारे
कौतक अजायब रचे, न गत मत को पछाने
काल खंड में आए के, खेले सतगुरु परम कृपाल
शहंशाह सतगुरु बाबा माधवशाह साहिब जी यूं वचन भी अपने निज मण्डल में गुनगुनाते, कि वह भजन सिमरन की ज्योत प्रगट होकर हमारे रूप करुणामय प्रकाशमण्डल का प्रसाद खुलकर बांटेगी, जीवों को भ्रमों, सौंसो वहम से निकालेगी, संगतो-
संता दे वचन अटल होंदे, रब नूं भी मन्यणे पय जांदे
हाजि़रां हुजूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी इस रूप में हर इक आंतरिक परम भेद संगतों को अंशी रूहों को मनोहर लीलामया अमृत चासनी पिलाते ही रहते हैं, आपजी श्रीवचन मुक्त कण्ठ से फरमाते हैं।
लगभग सन् 1950 की बात है, कुल मालिक सतगुरु बाबा माधवशाह साहिब जी, जीव तारण वास्ते, निजता की खुमारी में मलोखड़ी रूप धारण कर अमृतवेले माधवनगर में भ्रमण करते। शिष्य जीवों को अमृत नाम से लौ रमाने का खुदाई वाक् देते। संगतों! यह धरा जो आज सतगुरु मेहर से माधवनगर के नाम से जानी जाती है, जो परमार्थी भक्ति का केन्द्र है, यहाँ की पवित्र भूमि पर प्यारे गुरु साहिबानां ने अनन्त से अनन्त बेशुमार लीलायें की हैं। यह नगर पहले बियाबान जंगल हुआ करता, यहाँ कई काली छायाओं, भूतों-प्रेतों का साया रहता, जिससे यहाँ के रहवासी बड़े भयभीत रहते।
प्यारी साधसंगत जी! दुखभंजन सतगुरु ना केवल स्थूल जगत में जीवात्माओं का, बल्कि सूक्ष्म और कारण मण्डलां विच प्रेत-आत्माओं दा भी खुदाई वाक्, देकर कल्याण करते हैं। एक दिन, सतगुरु बाबा माधवशाह साहिब जी, अमृतवेले भ्रमण पर थे, आपजी के श्रीचरणों की अनन्य भक्तिवान रूह, अम्मां देवी जसूजा जी, सतगुरु सेवक दादा रामचंद रीझवानी जी की बुआ जी, गुरु साहिबान जी को बड़ा याद कर रहीं थीं, ‘‘हे सच्चे पातशाह, मोहे दर्शन देवो, मोहे दर्शन देवो।’’ अम्मां की करुण पुकार सुन अंतरयामी सतगुरु जी उनके घर पधारे, गुरु साहिबान जी के शरीर और कपड़ों पर कीचड़-मिट्टी लगी थी, यह देख अम्मां देवी जसूजा जी की आँखें बरस पड़ीं, सच्चे पातशाह! यह कैसी लीला है? गुरु बाबल जी फरमाए, ‘‘अम्मां! सत्थे आह्या आह्यूं! सत्थे आह्या आह्यूं! इस नगर में भारी प्रेत आत्मायें थीं, उन्हें मुक्त कर आए हैं।’’ अम्मां जारों-जार रोते हुए कहने लगीं, मेरे बाबल! आपजी हम जीवों के कष्ट अपनी देही पर लेकर करुणा मेहर के बड़े औलाई खेल खेल रहे हैं।
‘‘सच्चे पातशाह! हम मनमुख लोग आपकी गत-मत रम्ज़ों को समझ ही नहीं पा रहे। मेरे माधव मुरारी! हम मूढ़ अज्ञानियों को कब सोझी आएगी, कब हम पात्रवान होंगे, जो आपजी की मेहर रहमत मौज लीलाओं का मरम जाण सकेंगे?’’
शहंशाह सतगुरु बाबा माधवशाह साहिब जी ने बड़े ही बुलन्द वाणी में वचन फरमाए-
अलस्ती अवधूती रूप धर, मैं कौतुक खेलूँ
महा अनामा रूप धर, मरम न मोर पछाना
मोको को बौरा कहे, को बेपरवाह
कहे माधवशाह सुनो भगतों, मोर मरम गत न को पछाना
जब मोरा अरूप रूप प्रगटै, तब मरम गत मेहर पछाने
‘‘डिस जाएं देवी! वडी औज जो प्रकाश खुलन्दो। आगे चलकर भारी कमाई वाली परम ज्योत प्रगट होगी, वे हमारे परम वचनों के भेद खोलेंगे। अम्मां! तुम हयात रहोगी और उस परम ज्योत अलस्ती अवधूती रूप का प्रताप देखोगी। हमारी परम चैतन्य ज्योत नाम-भजन की कमाई वाली होगी, महाअनामा रूप धर आंतरिक परम नूर को चहुँवर्णां में बाटेंगे। अम्मां! आज जीव सतगुरु शरण में स्वार्थ पूर्ति के लिए आ रहे हैं, आने वाले समय में सभी जीव सतगुरु शरण में आंतरिक परमार्थ के लिए, गुरु भक्ति के लिए शरण में आयेंगे, उस वक्त प्रगट हाजि़र सतगुरु से जीवों को अंतरघट में पारब्रह्म का शाश्वत निज खुमार रब रंग मिलेगा और मन माया के पर्दे हटेंगे। वे हमारी मौज लीलाओं को इक-इक कर प्रगट करेंगे।
पूर्ण संत सतगुरु एक आँख के द्वारा अपने परम सत्य के प्रकाश को किस समय तिथि में प्रगट होना है, जानकर इशारा कर देते हैं। सूफी मत में आया-
संता दे वचन अटल होंदे, रब नूं भी मनणे पै जांदे
ओह रब दी कीती अड़द सकदे, रब उन्हां दी नहीं अड़द सकदा
पूर्ण संत सतगुरु अपने परम जानशीन पहले ही चुन लेते हैं, जब उनके जानशीन बाल रूप में भगत वेष में गुरु भक्ति, नाम बंदगी सेवा में रहते हैं, उनकी गुरु भक्ति देख गुरु साहिबान उन्हें परम दौलत का अधिकारी बना, अपना ही रूप बना देते हैं और उनके लिए पूर्व में ही वचनों द्वारा इशारा कर देते हैं। जब तक हरे माधव पारब्रम्ह प्रभु का हुकुम नहीं होता, तब तक वे परम जानशीन जगत में रहकर भी अपनी पहचान ज़ाहिर नहीं करते, वे स्व गुरु चरणों के सेवक रूप में लीलायें कर जीव जगत के बीच अवधूत रूप, मलोखड़ी वेश को धारण कर रहते हैं लेकिन अंतर में पारब्रम्ह रूप ही होते हैं।
हाजिरां हुजूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी की भगत वेष में बाल लीलाओं को, सेवा बंदगी, सतगुरु प्रेम को उस वक्त की भाग्यशाली आत्माओं ने स्वयं देखा, आपजी की सतगुरु भक्ति, श्रीचरणों से साची प्रीत, साचा प्रेम देख आपके गुरु साहिबानों ने आपजी को अपना ही रूप, पारब्रम्ह शहंशाह बना दिया। प्यारी संगतों! हरे माधव पारब्रम्ह प्रभु के हुकुम से वह वेला आया, परमेश्वर के प्रगट रूप, अमृत आनन्द की साक्षात मूरत, पंचम पातशाह हरिराया सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी, परम जानशीन के रूप में परमार्थी गुरुता गद्दी पर आसीन हुए। आपजी ने हरे माधव पंथ की नींव रखी और सर्वप्रथम सतगुरु भक्ति से ही हरि भक्ति का ही आदर्श रखा एवं सेवा, सत्संग, सिमरन, ध्यान का पवित्र सुख संगतों को बक्शा और समझाया कि सतगुरु चरणों में कैसा प्रेम हो, कैसी सेवा हो, कैसा सिमरन-भजन और बंदगी हो। जीवों को परम सत्य का बोध अंतर में कराया। आज देश-विदेश की चहुँवर्णां की संगतें, अनगिनत रूहें आप सतगुरु श्रीचरणों से जुड़ परम अमृत, परम आनन्द, परम सुख को पा निहाल हो रही हैं। सद्-सद् बलिहार आप हरे माधव बाबा पर जा रही हैं।
सतगुरु बाबा माधवशाह साहिब जी ने जो कौल वचन अम्मां देवी जसूजा से फरमाए, वे वचन सत्य सत्य सत्य हुए। हाजिरां हुजूर सतगुरु बाबाजी के शरण सत्संग दीवान में अम्मां देवी जसूजा जी आईं, आपजी का नूरानी मुख और लीलायें देख ज़ारों-ज़ार रोते हुए कहने लगीं, ‘‘मेरे सुहणे बाबल! आप ही मेरे माधव मुरारी, नारायण कलाधार हो। उसी परम ज्योतिर्मय खुदाई रूप को साक्षात देख रही हूँ। ओ बाबल! मुझे सतगुरु बाबा माधवशाह साहिब जी ने कौल वचन कहे थे कि मैं हयात रहूँगी, परम ज्योत के दर्शन करूँगी, सो आज मैं आपजी के सोहणे रूप में भारी कमाई वाली परम ज्योत को अपनी आँखों से चहुँवर्णों के जीवों का उद्धार करते हुए देख रही हूँ। मेरे बाबा! मुख से क्या महिमा कहूँ। इको इकविनती है, बाबा! अपनी मेहर उपाओ, सारी संगत को अपने चरणों की छांव बक्शो, सेवा बंदगी का सुख बक्शीश करो, चरण कमलों का अटूट नीह बक्शो। जी सब कुछ तेरा, तू प्रभु मेरा, तेरे चरणों पर सदके जाऊँ, सब कुछ बलिहार करूँ, तन मन वार कर सदा सदा बलिहार करूँ।’’ फिर अम्मां जी हुजूरों के श्री चरणों में यह मीठे राग गाने लगी-
आहे आहे माधवशाह आहे
कींय चवां मां नाहे, वेठो सामूं सड्यण मुहिंजो आहे
सागयो रूप आ सागी ज्योति, हू हिक हीरो त हीउ आ मोती
फरक बिन्ही में का नाहे, आहे आहे माधवशाह आहे
अखिडयुन वारा हाणे डिसन था, दिलबर सागो साणु पसन था
भाव अंदर जिनजे आहे, आहे आहे माधवशाह आहे
हे मेरे हरे माधव परम दयाल अगोचर साहिबी के मेरे सतगुरु शहंशाह, आप ही माधव शहंशाह, आप ही नारायण शहंशाह, आप ही हमारे ईश्वर भगवान हो, हमें नाम सिमरन ध्यान का मीठा गुलाब बक्शें, अपने पावन चरण कमलों का अटूट अगाध प्रेम, भक्ति बक्शें। इस देव दुर्लभ इन्सानी जन्म में, निज स्वरूप की बादशाहत का भेद, सोझी, आप जैसे सच्चे लोक के नायक सच्चे पातशाह ही देने में सर्वसमरथ हैं। दया कीजिए मेरे प्यारे साहिब जी, मेरे माधव जी।
।। कहे नारायणशाह सुनो प्यारों।।
।। पूरा संत राम सुजाना, स्वांग धरा सब भेद चिताया।।
हरे माधव हरे माधव हरे माधव