![Hare Madhav | Satguru Baba | Ishwar Shah Sahib Ji](https://haremadhav.org/wp-content/uploads/2019/06/IMG-20190629-WA0004.jpg)
हम बचपन से ही “विज्ञान” का निबंध पढ़ते आ रहे है कि विज्ञान हमारा सेवक (Slave) है या स्वामी (MASTER)। इसी प्रकार से यदि हम देखें तो यह तुलना हमारे अंदर जो मन है उसके साथ भी की जा सकती है। हमारे अंदर जो मन है, वह हमें अपनी मर्ज़ी के मुताबिक चलाता है ना कि हमारी मर्ज़ी के मुताबिक, हमें पता ही नही चलता कि कब इस मन का कहाँ ध्यान बैठ जाता है, कभी निंदा, कभी क्रोध, कभी स्वार्थ भावना तो कभी अहंकार करके हमारा मन हमारा नुकसान कर देता है, हम अपनी शांति भी खो देते है| यह हमें नफ़रत, निंदा, दूनयावी चीज़ों के इतने सुनहरे प्रलोभन या लालच देता है कि हमें समझ ही नहीं आता कि हम कब इसके वशीभूत हो कैसे यह सब कर बैठे| यहाँ तक की हम अपनों को भी चोट या दुख पहुंचाने में एक पल की भी देरी नहीं करते| कभी एकांत में रहकर सोचा जाए, तो एहसास होगा की हम मन के गुलाम है। जब हम खुद के अंदर झांकने की कोशिश करेंगे तब जाके इस चंचल मन पर अंकुश लगाने का हमारे अंदर विचार आता है,क्योंकि फ़रमाया गया:-*”मन जीते जग जीत”* पर यह इतना आसान नहीं है| मन ही कारण है सुखों और दुखों का। मन की चाल को समझना इंसान के अपने बस की बात नही है| अब सवाल आता है कि फिर इसे वश मे कैसे कर सकते है? मन पर लगाम कैसे लगा सकते है? तो आदि जुगादी से इसका सिर्फ़ एकमात्र उपाय था है और रहेगा, वो है- “मन को पूरण सतगुरु को सौंप दें, क्योंकि गुरुवाणी मे भी आया-*”मन बेचै सतगुरु के पास, तिस सेवक के कारज रास”*एक वही है जो मन की सरहदों से उपर उठ अ-मन हो चुके होते है।ऐसा करने पर ही हम असल रूप में सच्चे सुख, शांति और सार्थक जीवन के अधिकारी बन पाएँगे|