हर एक आत्मा, परमपिता परमात्मा की अंश है जो अपने असल उद्देश्य को भूल कर, बाहरमुखी हो भ्रम में उलझ सांसारिक विषयों में भटक रही है।कर्मों के जाल में पड़ जनम-मरण का दुख भोग रही है।
माया में फंसी आत्माओं की कष्टदायी दशा देख करुणावान हरे माधव प्रभु, समय-समय पर स्वयं मनुष्य शरीर को धारण कर इस संसार में “पूरण सतगुरु” के रूप में आते हैं। परमात्मा ने यह कानून बनाया है कि संसार में फंसी रूहों को केवल और केवल वक्त के जागृत पूर्ण सतगुरु ही उबारकर निजघर हरे माधव लोक ले जाते हैं।
पूरण सतगुरु आम इंसान की तरह मानव देही में जन्म लेते हैं और उन्हीं की तरह रहन सहन करते हुए भी पारब्रह्म की प्रगट ताकत होते हैं उनकी संगति करने से जीव के हृदय में प्रेमा भक्ति जाग उठती है। मन को सच्ची खुशी मिलती है, सोच निर्मल और विचार अंतरमुखी होते हैं।
वे जीव को परमात्मा से मिलाने के लिए उनमें प्रभु की रोशनी को जगाकर सच्ची आत्मिक शांति बक्शते हैं वे जीवों के मैले मन को साफ कर कर्मों के जाल काट कर उन्हें परमात्मा में एकाकार करते हैं।
पूरण सतगुरु की महिमा ना जुबान से बता पाना संभव है और ना ही लेखनी में शक्ति है जो उनकी महिमा को लिखकर बयां कर सकें।