|| हरे माधव दयाल की दया ||

वाणी हाज़िरां हुजूर संत सतगुरु बाबा इश्वरशाह साहिब जी

।। नाम जपन से दुख सब भागै, सतगुरु नाम जब तू ध्यावै।।
।। सिमरन नाम का है सुखदाई, तेरी आतम निहचल लोक में जाऐ।।
।। निज घर होए आतम वासै, निज घर होए आतम वासै।।

हरिराया सतगुरु की शरण संगति में बैठी संगतों, हरे माधव हरे माधव हरे माधव। आज के सत्संग की वाणी भजन सिमरन के भंडारी हाजि़रां हुजू़र सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी की अमृत रब्बी वाणी है। यह धुर की वाणी हुजूर साहिबानों ने 24 सितबंर 2014 दिन बुधवार दोपहर 1ः30 बजे फरमाई बड़ी रसीली परम अमृृृृृृत नाम औषधि वाली वाणी हैं। सतगुरु महाराज की शरण ओट में बैठी संगतों! हरिराया रुप प्यारे सतगुरु से शरण की ओट में टिकने का बल मांगो। हुजू़र साहिबान जी फरमाते हैं कि शरण में मन का टिकाव होना निहायत ज़रुरी है, यदि मन भरमाता-भटकाता है तो आपजी ने मिठड़े वचन कहे, ऐ शिष्य! हरिराया सतगुरु शबद संग नाम अमृत के सिमरन से अपनी आतम मन को भर दो, जिससे आतम को दुखों से निजात प्राप्त होगी। फिर भटकन समाप्त होती जायेगी, जो कि वाणी में फरमान आया-

नाम जपन से दुख सब भागै, सतगुरु नाम जब तू ध्यावै

सतगुरु सांई नारायणशाह साहिब जी ने सिंधी वचनों में फरमाया-

सुरत मिली शबद सां गगन उडाणी
मिले पहिंजे सतगुरन सां राणन जी राणी-2
जिथा किथा वयूं त वाधायूं वरी।
दुख दर्द गम फिक्र सब वया टरी।
सुहणों सुहणों सतगुरु डिसी नेण पया ठरी-2
दुख दर्द गम फिक्र सब वया टरी।

सुरत शबद गुरुनाम के अभ्यास से सतगुरु के सतलोक में रूह जाकर बस सकती है। आपजी ने अपने जीवन काल में अंतरमुखी साधना के गहरे अमृत प्रसाद की महिमा, हर रम्जों बहुविधियों से आवाम संगतों को देनी चाही, लेकिन जीव भूले बाहरमुखी, आज फिर वही गहरे वचन हाजि़रां हुज़ूर बाबाजी गुरुसाहिबानों के अंतरमुखी तालिमों को मनोहर बेखुदी वचनों को प्रेम, करूणा से सुहणे वचन खोल-खोलकर जगाने के ख्यालात से समझाते हैं, कि भाई! ‘‘अब तो जागो’’-2।

आप गुरु महाराज जी फरमा रहे हैं, कि अविनाशी प्रभु की अंश ऐ सुरत! तू गुरुप्रसादी शबद के सिमरन में रंग जा, फिर साटिक गगन में ऐ सुरत! तू टिकने का अभ्यास कर और जितनी भी दुई के नजारे दिखें, उन्हें हटाती चल। प्यारा सतगुरु परम दयाल है, अंदर तुम्हें वह आसरा देता है, लेकिन कहते हैं, नाम के सिमरन का अभ्यास करो।

सिमरन नाम का है सुखदाई, तेरी आतम निहचल लोक में जाऐ

आपजी खोलकर समझा रहे हैं, कि सुरत और मन अमृत गुरुप्रसाद का सिमरन करते हुए, दोनों आँखों के मध्य टिक एकाग्र हो जाते हैं, ऐ सुरति! जब तक तुम्हें अंदर कोई स्वरूप दिखाई नहीं देता, दोनों आँखों के मध्य, रूह को अगर वहाँ कोई आधार नहीं मिलता, फिर नौ द्वारों में दुनियावी भोगों की ओर, यह मन दौड़ा देता है, इस रूहानी अंतरमुखी साधना का आधार पूरे सतगुरु के द्वारा बक्शा, मीठा सतगुरु अमृत नाम है।

आप हुजूर जी फरमाते हैं कि हरे माधव अकह प्रभु के हुकुम से भजन सिमरन के भण्डारी सतगुरु काल खण्ड में प्रगट होकर, दुई, गफलत, अज्ञान की निद्रा में सोई जीवात्माओं रुहों को जगाने अपना करुणामय, विरदमय, प्रकाशमय भण्डार प्रगट करते हैं। खुद आपे-आप भजन सिमरन कर अकह पद मे अविरल, अविचल पद में रमण करते है। करुणामय वश, वात्सल्यमय वश, पग-पग पर हरिराया प्रभु की नन्ही रुहों की सम्भाल करते रहते हैं।

हुज़ूर साहिबान जी हरे माधव पीयूष वचन उपदेश 1210 में प्यारे करूणामय वचन फरमाते हैं, ‘‘युग चौकडि़यां दुखों में गुजर गए, तेरी आतम रूह को साचे सुख का मुँह तक देखने को नहीं मिला, परिंदे, पशु-पक्षी, शेर-चीते, गंधर्व, देवी-देवताओं की योनियों में आए पर आतम को सुख नहीं मिला, और आतम को सच्चा सुख केवल और केवल भजन सिमरन के भण्डारी पूरण सतगुरु की शरण मे ही प्राप्त होता है, इसलिए तो देवी-देवता भी पूरन सतगुरु की शरण सेवा में आते हैं, साधसंगत जियो! इन्सानी जनम में पूरन सतगुरु की शरण, नाम प्रीत भक्ति को कमाना शिष्य की आतम का धर्म होना चाहिए। ऐ बंदिया! हरे माधव प्रभुराया ने तेरे घट अंतर अमृत का अखुट खज़ाना भर दिया है, पर जब तू प्राणों से स्वांस-स्वांस नाम का अभ्यास में रमेगा, तभी प्रभु सतगुरु का बक्शा वह अमोलक नाम तेरे घट अंतर रचेगा भी और बसेगा भी। फिर प्राप्त होगा तुझे थिर शाश्वत सुख और तेरी आतम रूह उस अडोल निहचल लोक में दाखिला पा सकेगी।’’

सिमरन नाम का है सुखदाई, तेरी आतम निहचल लोक में जाए

सच्चे पातशाह सच्चे वचन बक्श रहे हैं, ऐ आतम! नाम का सिमरन सुखकारी है, मंगलकारी है। ऐ जीवात्मा! मंगलकारी दिशा है तेरे लिए, ऐ आतम! निहचल लोक में तुझे आसरा मिलेगा। इसलिए कहा-

सिमरन नाम का है सुखदाई, तेरी आतम निहचल लोक में जाए
निज घर होए आतम वासै, निज घर होए आतम वासै

सो संगतों! सतगुरु नाम शबद के अभ्यास के लिए आज का समय निश्चित करें क्योंकि समय बहता जा रहा है, आज का समय कल नहीं आयेगा, सतगुरु नाम का जाप आज से करें, हर रोज़ करें, स्वांसों-स्वांस करें

Sangat ji! Devote time for the meditation of Satguru Naam today, for the time has been running out. Time once lost can never return, so meditate upon the Satguru Naam from now itself and do it everyday.

गुरुवाणी में सतगुरु भगति के लिए प्यारे बोल आते हैं-

गुरु की मत तू लेह इआने, भगति बिना बहु डूबे सिआने
हरि की भगति करहु मन मीत, निर्मल होइ तुम्हारो चीत
चरण कमल राखहुं मन माहिं, जनम जनम के किलविख जाहिं
आप जपहु अवरा नाम जपावहुं, सुनत कहत रहत गत पावहुं
सारभूत सत हरि को नांऊ, सहज सुभाइ नानक गुन गांऊ

ऐ इन्सान! तू मन की मति का त्याग कर, पूरन सतगुरु की मति को धारण कर उनके पावन वचनों को कमा, भक्ति को कमा, बिना भक्ति के बड़े-बड़े चतुर ज्ञानी भी भवसागर में डूब जाते हैं, इसीलिए-

गुरु की मत तू लेह इआने, भगति बिना बहु डूबे सिआन

हरिराया सतगुरु की पावन भक्ति कर, प्यारे सतगुरु के वचनों पर चल, चित्त पवित्र निर्मल होता है, ऐ बंदिया! यह ऐसी भक्ति से ही होता है। कहा-
निर्मल होइ तुम्हारो चीत

हरिराया के चरण कमल अपने हृदय पाट में बसाने के लिए मन से द्वंद कर, उन चरण कमलों की भक्ति को बिठाओ-

जनम जनम के किलविख जाहिं

जन्म-जन्मांतरों के काले दोष, पाप नाश नष्ट हो जाऐंगे। फिर आगे कहा, हरिराया का नाम तू आप भी जप याने अमृत नाम जपने की सेवा करो, दूसरों को भी जपने-जगाने के लिए प्ररित करो, सतगुरु की मति लेकर आज्ञा लेकर, फिर कहा-

आप जपहु अवरा नाम जपावहुं, सुनत कहत रहत गत पावहुं

आप भी जपो, दूसरों को जपाओ। अमृत नाम का सिमरन करने से, ऐसे नाम का सिमरन आचरण करने से ऐ जीवात्मा! तू परम ऊँची गति को प्राप्त करेगा, कहा-

सहज सुभाइ नानक गुन गांऊ

पूरन शहंशाह सतगुरु बाबा माधवशाह साहिब जी पावन पवित्र उपदेश रब्बीमय वाणी से दे रहे हैं, जरा श्रवण करें-

करो संग साधू पूरे का, उन सतसंग प्रेम बिठावो
सतसंगत पारस सतगुरू की, जो भीजे सो पावे अनन्ता
सतसंगत है प्यारे गुरु की, आतम निजघर सोझी पाई
कहे माधवशाह सुनो भाई संतो, अगम वाट सतगुरू संग ते पावो
नाम भजो आतम नित्त-नित्त मंज्जन करो, होए निर्मल अगम जाओ
करो संग साधू पूरे का, उन सतसंग प्रेम बिठावो

आप सतगुरु बाबा माधवशाह साहिब जी ने जीवन भर दिव्य खुमारी में मस्ताने होकर, जगत जीवों का उद्धार किया, योग माया को आपजी हर पल अपने संग साथ रखते, शिष्यों-भगतो की कड़ी परीक्षाऐं ले यूं कहते, जिन्हें पक्का होना है, शरण में आऐं और कच्चों के लिए आपजी लीलाऐं रच यूं कहते, मक्खियों को उड़ा देना, बस ऐसे ही मनोहरमय लीलाऐं रचते। आपजी का पवित्र उपदेश-

करो संग साधू पूरे का, उन सतसंग प्रेम बिठावो

सच्चे पातशाह जी फरमाते हैं कि ऐ रब के अंश आतम! दिन-रात मन माया में, चिन्ताओं, मन के रोगों में उलझा कर, तुझे बाहरी संगति में, जनम-मरण में भटकाने और घुमाने का इस काल ने बड़ा प्रबन्ध कर डाला है।

प्यारे जागो! उठो! पूरन सतगुरु के सत्संग, पवित्र सतसंगति नांव में सवार हो, भवसागर से पार हो जाओ जागो! उठो! पूरन सतगुरु में प्रेम बिठाओ, जागो! उठो ऐ आतम! अमृत नाम का सुख मांगो पूरन सतगुरु से।

सतसंगत पारस सतगुरू की, जो भीजे सो पावे अनन्ता

गुरु महाराज जी कहते हैं, सतगुरु पारस रूप हैं और ऐ आतम! अगर तुझे भी पारसमय होना है तो भीगो अमृत नाम की प्रीत में, फिर जो प्यारा भगत अमृत नाम में भीगा, प्यारा सतगुरु उसे अनन्तमय कर देता है। याद रखो! सब कुछ नाश है, शरीर, महल, बड़ी-बड़ी इमारतें, कितनी भी जागीरें हासिल हो जाऐं, सब नाशवान हैं, यह देही अमर नहीं, नास कतार में लगी हुई है, सोने-चांदी, सारी सांसारिक वस्तुऐं पदार्थ बिना सतगुरु भक्ति, बिना नाम प्रीत के सब राखमय दिखते हैं, इसीलिए हमारे कौल याद रखो, पूरे सच्चे सतगुरु की वाट पर चलो, प्रेम में मलंग बनो, फिर तेरी ऐ आतम! ऊँची शान बढ़ेगी, कहा-

कहे माधवशाह सुनो भाई संतो, अगम वाट सतगुरू संग ते पावो

साहिबान जी बड़े प्यार प्रीत से समझाते हैं वह जीव धन्य वड्भागी हो जाता है, जो सच्चे सतगुरु की पवित्र शरण में आ जाता है। आपजी फिर आगे कहते हैं, ऐ प्यारे! शरण में जागने की कोशिश करना, जब परम प्रभुमय मौज प्रगट होगी, तब नाम का भण्डार खुलकर मिलेगा, फिर तुम अज्ञान गफलत मन के निर्बल विचारों को छोड़, नाम रसायन को अपने जीवन में उतारना, फिर ऐ जीयरा! इन्सानी जन्म का, आतम का जो सच्चा पदारथ है, पारब्रह्ममय पा लोगे।

साधसंगत जी! आज जागन की वेला है, नाम जपन की वेला है, भजन सिमरन के शहंशाहों के भंडार प्रगट हैं, सच्चा संपूर्ण लाभ कमायें।

मन की मैली वृत्तियों को पूरन सतगुरु की शरण में नाम जपते हुए, निर्मल कर मंजन करें, फिर आतम अगम सुख का प्रसाद पा लेगी, इसीलिए सम्पूर्ण सौ की सीधी बात आप हाजिरां हुजूर महराज जी ने वाणी फरमाई-

तेरी आतम निहचल लोक में जाऐ, निज घर होए आतम वासै

मनों को निर्मल करने की सहज राह देने वाले आज के दिव्यमय सत्संग की रसीली वाणी में फरमान आया, जी आगे-

।। साध कै संगि उत्तम सुख है, दरसन साधु का पुनीता ।।
।। मैल मन से उतरै उतरै, सतगुरु नाम घट में बसाओ ।।
।। काहे मन तू भरमै माया जाल में उलझै बहु इतराए।।

भजन सिमरन के भण्डारी देहधारी सतगुरु के दर्शन से आतम को अमृत सुख का सहज दान मिलता है, पूरन साधु हरिरूप का दर्शन मैले मन को निर्मल विचारों की ओर मोड़ देता है। प्रभु की प्यारी संगतों! इस कुदरत कायनात में जितनी सारी संगतियां हैं, पूरन साधु की संगति के समान किसी का मोल और तौल नहीं, इसीलिए हुजूर जी फरमाते हैं-

साध कै संगि उत्तम सुख है, दरसन साधु का पुनीता

संगतों! पूरन साधु के दर्शन दीद से उत्तम भक्ति का रस प्राप्त होता है, भाव प्रेम बनता है, फिर आगे कहा, क्यों तू मन माया में, भरम में उलझा है-

काहे मन तू भरमै माया जाल में उलझै बहु इतराए

ऐ प्यारों! यदि तुम्हें भरमों से निकलना है, खुशनसीब बनना है, तो शरण में आ अपने मन को निर्मल करो, अमृत नाम की दात पाओ, ऐसी रहनुमाई में अगर ऐ शिष्य! नाम भक्ति में मन लग गया, सतगुरु नाम को कमाकर कोई अन्य चाह नहीं रखी, बस सतगुरु दिलबर की याद बनी रहे, फिर ऐसे ही शिष्य भक्तों की आतम को, मन में अलौकिक आनन्द प्राप्त होता है, पर याद रखों पूरण सतगुरु की शरण में।
साधसंगत जी! संत दरिया जी कहते हैं-

जौ लग सतगुरु मिले न दाता, तौ लग काल करे उतपाता
खोजहुं सतगुरु जो जीव बांचै, नाहिं तौ काल सदा सिर नाचै

संतजी कहते हैं, पूरन सतगुरु जीव उद्धार आतम को जगाने के लिए धरा जगत में प्रगट होते हैं, पूरन सतगुरु के बिना जीव का काल जंजाल भय अज्ञान से मुक्त होना असंभव है। आतम का निज घर जाना, बिना हरिराया सतगुरु के मुश्किल नामुमकिन है, इसलिए संतजी स्पष्ट बात कहते हैं, बड़े जोरदार ढंग से कहते हैं-

जौ लग सतगुरु मिले न दाता, तौ लग काल करे उतपाता

इसीलिए ऐ आतम! साचे सतगुरु की खोज कर और फिर अमृत नाम की दात को कमा, तभी सतगुरु अपना कमाया हुआ भजन फल का बल देगा और काल के फंदे से तू छूट सकेगा नहीं तो काल का उत्पात उपद्रव सर पर मंडराता रहता है-

तौ लग काल करे उतपाता

फिर कहा, बिना सतगुरु के क्या होता है-

नाहिं तौ काल सदा सिर नाचै

रूहों ने विनय याचना की, हे हरि प्रभु! कैसे निबेरा हो, तो कहा-

खोजहुं सतगुरु जो जीव बांचै

सारी बात वचन से प्रगटाए, ऐसा पूरा सतगुरु खोजो, फिर उनसे अमृत नाम का दान पाओ, जिससे जीव का निबेरा हो।
रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी स्पष्ट कहते हैं-

कलजुग त्रेता द्वापर पूजा मख अरु जोग
जो गति होइ सो कलि हरि नाम ते पावहिं लोग

त्रेता, द्वापर में जो गति पूजा यज्ञ योग से मिलती थी, वह उत्तम गति, कलयुग में हरि के नाम, सतगुरु के नाम जप से प्राप्त होती है, फिर आगे तुलसीदास जी कहते हैं-

कलिजुग केवल हरि गुन गाहा, गावत नर पावहि भव थाहा
कलिजुग जोग न जग्य न ज्ञाना, एक आधार राम गुन गाना
सब भरोस तजि जो भज रामहि, प्रेम समेत गाव गुन ग्रामहि
सोइ भवतर कछु संसय नाही, नाम प्रताप प्रगय कलि माही

संतजी कहते हैं, कलियुग में श्री हरि की गुण गाथाओं का गान करने से, जीव भवसागर की थाह पा जाते हैं, कलिकाल में न योग न यज्ञ न ज्ञान ही सार्थक है, बस एक आधार उस न्यारे राम का जो तीनों गुणों से परे है, वह एक मात्र आधार है, उसका गुणगान करो, जो सारे भरोसे त्याग कर ऐसे न्यारे राम सिउं पूरण सतगुरु के भजन, प्रेम प्रीत गुण समूह को गाते हैं, प्रेम सहित, वे जीव भवसागर तर जाते हैं, इसमें तनिक भी संदेह नहीं, कहा-

नाम प्रताप प्रगय कलि माही

नाम का प्रताप कलिकाल में प्रत्यक्ष दिखाई देता है, भज कर देखो, जप कर देखो। हुजूर जी समझाते हैं, ऐ प्यारे! अपनी स्वांसो की पूंजी व्यर्थ मत बहा। तू दुनिया में अपने मन को मत अटका। दिन रात ऐ प्यारे! मन माया का व्यापार करने में तूने अपना जीवन लगा लिया, इतनी जागीरें कमा लीं, इतना धन कमाया, इतनी पहचान बना ली, इतने रौब-रुतबे हासिल किए खाक दुई के।

ज़रा पूरण साधसंगत में शुद्ध मन, शुद्ध आतम से वचनों-वाणियों को समझ सुनकर अपने मन में यह लोकन-अवलोकन कर लो, तुम्हारे पहले भी बेहिसाब जीवों ने यह सब अर्जित किए, हुए तो सब माटी ही। अब तुम भी उसी कतार की ओर भ्रम में पड़े हो। जागो! यह सब याद रख यहीं पड़ा रह जाएगा, फिर क्यों मन का संग, माया का संग कर इतरा रहा है-

काहे मन तू भरमै माया जाल में, उलझै बहु इतराए

हुजूर जी बड़े सत्कार से समझाते हैं, ’’इक दाना और आना‘‘। ऐ बंदिया! साथ नही जाना। हरिरूप पूरण सतगुरू से सारी वस्तुएं चीज़ें ले ली, फिर सतगुरू के वचन को छोड़, प्रीत को छोड़ बस व्यर्थ में दुनियावी माया के मोह में पड़ा रहा। ज़रा सोच ऐ प्राणी! ज़रा समझ रख ऐ प्राणी! याद रख, सच्चा धन लेने की ही आस रख, ‘अमृत नाम भक्ति, अमृत नाम भजन’ क्योंकि यही कमाया धन ऐ प्यारे! तेरे साथ चलना है, इसीलिए सतगुरु शबद नाम को कमा।

पूरण सतगुरु शरण में नाम अमृत का सिमरन, परमसुख, परम आनंद को देने वाला है। अगर नाम को जपोगे नहीं, मन को मोड़ कर नाम में चित्त लगाओगे नहीं, तो फिर आप यूं मत कहना कि हमें तो सतगुरु नाम मीठा नहीं लग रहा है। प्रीत से सतगुरु नाम को जपो, नियमित अभ्यास कर हरिराया का बक्शा नाम, पूरण सतगुरु की बताई युक्ति से अभ्यास करो, तो मन का तनाव कम होगा, नाम में अमृत मिलेगा, मीठा भी लगेगा, हुजूर जी वाणी वचनों में फरमा रहे हैं-

नाम महारस मीठा साधो, अंतर सिमरो अंतर आराधो
ऊँचा रस यह ऊँचा धन है, ऊँचा यह पद ऊँचा मद है
ऊँचा ऊँच ही देवे साधो, ऊँचा ऊँच ही देवे साधो
दास ईश्वर पर कृपा करो, देवो साचे नाम का ध्याना

आप साहिबान जी हर इक रूहानी शिष्य को भेद दे रहे हैं कि मन के विचार भी शुद्ध होंगे, मन की तपिश भी गुम होगी, पर शर्त यह कि, तू पूर्ण साधसंगत में नित नियम रख, हरिराया सतगुरु के दीवान में आकर रोज़ सतगुरु नाम का जाप करो, स्वांसों स्वास अजपा-जाप करो।

सतगुरु बाबा नारायणशाह साहिब जी वचन फरमाते हैं, ‘‘मनमति से जपा हुआ नाम फलदायक नहीं होता। जब परम मौज प्रगट होगी, दिव्य ज्योत प्रगट होगी, अमृत नाम का जाप बक्शा जाएगा।’’ साधसंगत जी! सतगुरु साहिबानों ने जो वचन कहे, वे अडिग वचन आज प्रकाशमय हैं। हाजिरां हुजूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी भजन सिमरन नाम के, सतगुरु शबद के गुरु प्रसाद को बक्श रहे हैं, सर्व आत्माओं को अकह पारब्रम्ह का सुख बक्श रहे हैं।

पारब्रह्म विराट प्रकाशमय में एक होने का सदा से एक ही पथ है, वक्त के कमाई वाले पूरन सतगुरु के नाम से जुड़कर ही यह ऊँचाई रूह को मिल पाती है, लेकिन मन की उलझने भारी हैं, जो कि शंहशाह सतगुरु बाबा माधवशाह साहिब जी अनहली रूप के भण्डारी वचन फरमाते हैं-

कलयुग मन मलीन कर दीना, नाम बिन सब विरथै कामा
जपओ नाम ध्यावओ नाम, पाओ साचे गुरु से
अवर सारे जतन सब काल के मतना, भरम छोड़ो नाम जपो
कहे माधवशाह सुनो भाई संतो, मैं तो बात सदा सार की कहूं

शहंशाह सतगुरु बाबा माधवशाह साहिब जी ने देह के जामे को अपनी मौज से अलस्ती मौज में जितनी देर धारण किया, अलस्ती मनमोहक लीलाऐं रचकर जीवों को चिताया, इन्सान के जीवन, मनों के सारे रोगों को देखकर कमाई वाली वाणी अनुभवी वाणी में फरमाया कि कलिकाल में जीवों के मन पर मलीन वासनाओं, असत्य कामनाओं, अमंगल अशुद्ध विचारों की मलीनता चढ़ी हुई है, मन जहाँ पर दौड़े केवल अशुद्ध मलीनता आँखों के द्वारा देख रहा है, कानों के द्वारा अशुभ सुन रहा है और मन अपनी इन्द्रीय सेना को अपने हाथ में रखकर स्वादों के बेस्वाद ले रहा है।

मन की दशा हर पल गिर रही है, अब घट में दिव्य प्रकाश कैसे दिखे? हुज़ूर जी जांच परख कर अवलोकन कर दिव्य दृष्टि से यह बात कह रहे हैं कि मन को मलीनता से दूर रखना है, मन को स्वच्छ निर्मल करना है जिससे घट में अमृत मिले, दिव्य पुरुख मिले। कुदरत ने एक ही बात रची है विधान से कि भजन सिमरन के भण्डारी जब प्रगट हों, तो उनकी शरण से मन निर्मल स्वच्छ होगा और आगे दवा के भेद भी मिल रहे हैं कि प्रेम श्रद्धा से, प्रीत से शरण संगत में अमृत नाम की दीक्षा पाकर, उसे नित्य कमाते रहो। याद रखना प्यारों! केवल और केवल पूरन सतगुरु नाम शबद की रगड़ से मन घिस घिसकर, अमृत नाम को जप जपकर, मन निर्मल और शांत होगा और आतम के निजघर पहुंचने का सच्चा मनोरथ सफल होगा। जो कि फरमान आया-

अवर सारे जतना सब काल के मतना, भरम छोड़ो नाम जपो

संगतों! याद रखो सांझा उपदेश! अमृत नाम को ध्याओ, अमृत नाम जपन का बल करो और सांचे पूरन सतगुरु की चरण शरण ग्रहण करो, विधि युक्ति सीख कर नियमित अभ्यास करो, मैला मन दर्पण निर्मल होगा, मन दर्पण शुद्ध निर्मल होगा, यानि-

मैल मन से उतरै उतरै, सतगुरु नाम घट में बसाओ

ऐ प्यारे! यदि सिमरन में मन नहीं लगता फिर भी पंगत लगा अभ्यास करते रहो और सतगुरु से मन में विनती पुकार करते रहो। धीरे-धीरे तुम्हें बल मिलता जायेगा, सिमरन में एकाग्रता मिलेगी।

O beloved! If your mind cannot concentrate in the meditation, continue to practice it and pray to the True Master subconsciously. Gradually you will attain the strength and focus in meditation.

हाजिरां हुजूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी हरे माधव पीयूष वचन उपदेश 881 में फरमाते हैं, ‘‘भजन सिमरन की अणखुट कमाई वाले हरिराया सतगुरु जीवों पर दया मेहर कर पूर्ण साधसंगत में सतगुरु नाम की बक्शीश, बक्शते हैं। जब वे विधिवत जागृत तवज्जू शिष्य की आतम के अंदर रखते हैं, तो वह दिव्य कमाई वाला अर्क प्रसाद न शिष्य देख पाता है न आम इंसान। बस भजन सिमरन के भंडारी सतगुरु, शिष्य के बंद मंडलों में सुत्ती रूह में रख, उसे कमाने के लिए कहते हैं, पावन शरण सोहबत में। हुजूर जी उन शिष्यों को अमृत नाम पचाने का हुनर, अपनी नूरी निगाह द्वारा बक्शते हैं। अपने भजन सिमरन के आभामंडल के प्रकाश के दायरे में उन्हें लाते हैं। यह दिव्य और अलौकिक मस्ती है, यह वह प्रसाद है जो ज्ञान, बुद्धि, इंद्रियों के द्वारा पकड़ में आने वाला नहीं।’’ भजन सिमरन के भंडारी आप हाजिरां हुजूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी हर बार सतगुरु बाबा नारायणशाह साहिब जी के वचन उठाते हैं-

बाबा, गुझ वारी रांद तव-2

श्री गुरुनानक देव जी ने कहा-

सहस सिआणपा लख होई ता इक न चलै नाल

स्याणप चतुराई से ऐ बंदिया! तुझे वह मुकाम हर्गिज़ ना मिलेगा। मनमति के सारे पुरुषार्थ कर लो, चतुराई से कितने हाथ पैर चला लो पर बात नहीं बननी-

बिन गुरु को न पाओगे, हरि जी को द्वार

भजन सिमरन के भंडारी सतगुरु बिन कुछ बात नहीं बननी। सतगुरु नाम घट में बसाओ, जैसे-जैसे शिष्य कमाता है, बंद मंडल खुल जाते हैं, सुत्ती रूह जागृत हो जाती है।

हाजि़रां हुजूर सतगुरु साहिबान जी अमृत वाणी में वात्सल्य वचन फरमा रहे हैं-

मैं कहूँ इक बात साची, सुनो प्यारों सतगुरु संग राची
नाम नियारा शरण पाओ, भव जल से उतरो तुम पारा
सिमरन ध्यान सतगुरु बतावे, नाम से सुरत सचखण्ड जावे
कहे दास ईश्वर मोहे पूरे साधू संग देवो, तन-मन-धन वार सब दीनो
मेरे साहिब हरे माधव, निर्गुन न्यारे राम प्यारे

हरे माधव अकह पुरुख से प्रगटे भजन सिमरन के भण्डारी सतगुरु अपनी अकह खुमारी में वचन वाणी के द्वारा समस्त भूमण्डल की रूहों को आपजी सांझा उपदेश बयां कर रहे हैं। ऐ प्रभु की अंश आतम! मैं इक सांची बात कथ रहा हूँ, कि अमृत नाम के बिना सुखों की आस रखना व्यर्थ है, भव से उबरना है, तो याद रखो, कमाई वाले सतगुरु की नाव में सवार हो जाओ, फिर तुम सहज भवजल से उतरो पारा, अमृत कमाई वाले सतगुरु की शरण तो अलौकिक फलों को हर पल बरसाती है, अगर तेरा ध्यान मंत्र अमृत नाम में रंगा है, तो तू भी भगवान को पा सकेगा, सतगुरु शबद का सिमरन बड़े चाह प्रीत से करना, फिर सुरति को अपने निजघर सचखण्ड में एकाकार होने का गौरव मिल पाता है, याद रख, सतगुरु पूरन साधु से जुड़ अमृत नाम का याचक बन क्योंकि यही अमृत नाम आतम को साची दिशा देने वाला सच्चा सहायक है। गुरुवाणी में आयां-

सभै गलां विसरन, एको विसरि न जाउ
धंधा सब जलाए के, गुरु नाम दिया सचु सुआउ
जिनी सतगुरु सेविआ, तिन अगै मिलिआ थाउ
मन मेरे करते नू सालाहे, सभे छड सियाणपा गुरु की पैरी पाए
एकस सिंउ मन मानिआ ता होवा निहचल चीत
सचु खाणा सचु पैनणां, टेक नानक सचु कीत

सारी बातें भूल जायें, सारे काम भूल जायें लेकिन एको बात नहीं भूलनी चाहिए, वह है सतगुरु की शरण, हरिराया सतगुरु का बक्शा नाम। सतगुरु बाबा नारायणशाह साहिब जी प्यारे वचन फरमाते-

मतां पहिंजे सतगुरु जी तूं याद भुलाईं
याद भुलाईं मन रूह रुलाईं, जम जूता खाईं

आप शहंशाह जी फरमाते हैं, ऐ प्यारे भक्तां! पूरण सतगुरु को हर पल याद रखो, सतगुरु की रहमतों को याद रख, मन भीगा रहे सतगुरु के प्यार प्रीत में। सतगुरु से दुनियावी दाते पाकर दातों से प्यार मत करने बैठना, अगर दात में मोह पड़ भी जाए तो पूरण सतगुरु से मोह प्यार प्रीत श्रद्धा को कसकर पकड़कर रहना, वरना दात को पाकर सतगुरु माधव दाते को विसार दिया तो लोक-परलोकों में जम के जूते पड़ते हैं। गुरुघरों में ऐसे असंख्य भारी प्रमाण हैं, कि दयाल सतगुरु पातशाहियों की मेहर से सब दातें, पुत्र पौत्र धन यश पाकर भी सतगुरु से ही उलट वैर भाव रखा, तो ऐसे जीवों की दशा बिगड़ने लगी, धन, यश, बंदगी सब खत्म होने लगा।

हाजिरां हुजूर मालिकां जी, ऐसे जीवों को सतगुरु बाबा नारायणशाह साहिब जी के वचन याद करवाते हैं, बाबा! मता पहिंजे सतगुरु जी याद भुलाईं। याद भुलाईं मन रूह रुलाईं, जम जूता खाईं। सो ऐ रब के अंश! श्रीचरणों से निभ आने की दात मांगो, हरिराया सतगुरु से भक्ति, बंदगी, अनन्य प्रेम दामन पसारकर मांगो। सतगुरु मेहर से जो दुनियावी दातें पुत्र-पौत्र, धनमाल बक्शीश रूप में प्राप्त हुए तो यह हमारा कर्तव्य है कि उन पुत्रों एवं समस्त कुटुम्ब को सेवा गुरुभक्ति में लगाएं, धन को सतगुरु श्रीचरणों में एवं परमार्थी सेवा में लगाए,संगतों! ये भी कोई भ्रम न पाले कि सतगुरु को इस सब की आवश्यक्ता है, प्यारों! वे हमसे सेवा करवा हमारे कर्मां को हल्का करते हैं। अहम भाव को छोड़ सदैव बाबाजी का, सांईजन का शुक्र-शुक्र करें। इसके अलावा हम दे ही क्या सकते है प्यारे सतगुरु दाते को।

इस फानी संसार में जो कुछ भी तू देख रहा है, सुन रहा है, सब माया जाल का पसारा है, तू सतगुरु मेहर से इस जाल फंद को काट, कैसे? हुजूर साहिबान जी सत्संग की अंतिम तुक मे वचन राह बक्श रहे हैं, गौर से श्रवण करें, जी आगे-

।। सुख ना जग में, झूठ झमेला, सतगुरु नाम घट में बसाओ।।
।। ‘‘दास ईश्वर’’ कहत है संतों, जग यह झूठा सपने न्याई।।
।। ओ हरे माधव मोहे देवो, नाम भजन सुखदाई।।

संगता जी, बड़ा ऊँचा वैराग्यपूर्ण फरमान आया-

सुख ना जग में, झूठ झमेला, सतगुरु नाम घट में बसाओ

हुजूर जी, फरमाते हैं, हम आपसे यह भी नहीं कहते कि संसार छोड़ कर नाम बंदगी में लगो। हमारे वचन कौल गुप्त हैं, सब हरे माधव प्रभु का मानकर, जानकर संसार में कार्य, जि़म्मेदारी, व्यवहार निःसंदेह निभाओ, धन कमाओ, इसके बिना संसार नहीं चलना, दुनिया के साज़ो सामान ज़रूरत उपयोग में रखकर, संसारिक दृष्टि से बढ़चढ़ कर उन्नति करो मगर कमल के फूल की तरह न्यारे रहो और इन वचनों को गांठ बांध लो कि यह सब साजो-सामान न साची तृप्ति देने वाला है, न सच्चा आनंद देने वाला है, न सच्चा परलोक दिखाने वाला है, इसलिए तू इसमें मोह न रख। ऐ आतम! सच्चा सुख आनंद तो केवल ही केवल कमाई वाले सतगुरु के बक्शे अमृत नाम में सुरति को जोड़के, हर पल नाम का सिमरन भजन ध्यान में मन रमाने में है, तभी पारब्रम्ह लोक में मुख ऊजल होगा। तभी वाणी में समझाइश दी गई-

सुख ना जग में, झूठ झमेला, सतगुरु नाम घट में बसाओ

हुजूर साहिबान जी हरे माधव पीयूष वचन उपदेश 562 में फरमाते हैं, ‘‘गहरी नींद में हम कैसे-कैसे प्रकृति के दृश्य देखते हैं, अपने को कैसे-कैसे हालातों में पाते हैं, कभी शीतल दृश्य तो कभी तपिश वाले देखते हैं। जब उठे तो मालूम हुआ, नींद के स्वप्न थे। ऐसे ही जागृत रसाई वाले सतगुरु के नाम से जब रूह जुड़ी तो जाग उठी और तो मालूम हुआ कि यह सुख-दुख रूपी संसार तो स्वप्न की न्याई है।’’ गुरु महाराज जी ने वाणी में कहकर चिताया है-

संतों जग यह झूठा सपने न्याई-2

उठो, जागने का यतन करो, शुद्ध दर्पणमय वचन हैं, बस हमारा नज़रिया उस ओर होना चाहिए जिस ओर हुजूर जी सत्संग वचन बल बक्श रहे हैं।

हाजिरां हुजूर बाबा ईश्वरशाह साहिबान जी फरमाते हैं, पूरण सतगुरु शबद, घोर अंधेरे को नाश करने वाली चिन्मय चिंगारी है। ऐ आतम! जिस परलोक की राह में कोई जान-पहचान वाला भी नहीं है, उस राह में केवल हरे माधव हरिराया का बक्शा मीठ नाम सच्चा संगी साथी है।
Huzoor Baba Ishwar Shah Sahibanji says, the True Master’s holy word is a blissful spark that ends all darkness. O Soul! Apart from this Holy Word, there is no other companion on the path of Lord’s Abode.

इस राह में आतम को खूब प्यास सताती है, तो आपजी कहते हैं, जब नियमित प्रेम प्रीत से सतगुरु का आप सिमरन भजन करोगे, सतगुरु भाणे प्रीत में मन को रमाओगे, तो ऐ आतम! तेरी प्यास बुझेगी। वह अमृत नाम अमृत वर्षा आतम रूह को उस राह पर शीतल शांत बनाए रखती है जिन राहों में नर्कों की भारी भयानक जलन तपिश है। ऐ आतम! भजन सिमरन के प्रचण्ड तेजोमय प्रकाशमान पूरन हरि रूप सतगुरु का बक्शा अमृत नाम तुम्हारे अंतर शीतल छाया का शामियाना करता है, याद रख, ऐ जीव! अमृत नाम का सिमरन कर पूरन सतगुरु की बताई युक्ति से चल। श्रम-परिश्रम उन्हीं शिष्यों का सफल हुआ है, जो भजन सिमरन के भण्डारी सतगुरु के अर्शी बाग के भंवरे हुए, नाम को जपा, बंदगी की, फिर यमों के कष्ट निकट नहीं आऐंगे, जीवात्मा सहज पारब्रह्म के अचल घर में पहुँच जाएगी, हरे माधव लोक में पहुँच जाएगी और फिर वह आतम हर पल आनन्दित सुखकारी खुशी में डूबी रहती है।

साधसंगत जी! थोड़ी-थोड़ी मांगों चाहतों के लिए इन्सान परेशान दुखी व्याकुल हो जाता है, ऐ रब के अंश! यह इच्छाऐं समाप्त नहीं होनी, सात्विक इच्छा नाम बंदगी का रस, श्रीचरणों का ध्यान मांगो, अपने रहबर सांईजन से।

आप साहिबान जी ने करूणामय वचन प्रकाश दिए कि अब आपको नाम की भक्ति, समरथ सतगुरु का हरिमय रूप, मनोहरमय लीलाऐं खुले प्रकाशमय रूप में मिल रही हैं, आप अपनी आतम को सतगुरु नाम से जोड़ें, आपका दिल दिलबर महबूब के चरणों में लग गया, उसकी याद, उसकी भक्ति, रूह में बस गई तो आपके मन की मैल, संसा उतरेगा, आतम को सच्चा अमृत सुख भी मिलेगा। ऐ बंदिया! आतम हरे माधव पारब्रह्म में लीन हो जाए, ऐसी कमाई करो। फिर तो सारी रचना ही आपकी हो गई, इसलिए अब इस भक्ति की राह पर चलो, नाम बंदगी की राह पर चलो, वचनों को कमाओ।

इतिहास में भी भजन सिमरन के भंडारी पूरण सतगुरु पुरुख की भारी महिमा गाई गई-

मेटै संसा सत शबद से, जो गुरु मिलै करार
सतगुरु बिना पार नहीं, भरमि रहा संसार-2
बिन सतगुरु उपदेस सुर नर मुनि नहिं निस्तरे
ब्रम्हा विस्नु महेस और सकल जीव को गिनै

संत कबीर जी ने भी थोक बात कही-

जब लग गुरु मिलै न सांचा
तब लग गुरु कर लो दस पांचा

संतजी ने कहा, जब तक पूरण भजन सिमरन की कमाई वाला साचा सतगुरु न मिले, तब तक पाँच-दस और गुरु कर लो, कोई मनाही नहीं-

तब लग गुरु कर लो दस पांचा

ऐ प्यारों! जब साचा सतगुरु मिले हरिराया रूप, तो छोड़ दो अन्य सब द्वारे और पकड़ लो उसके अनुभव। गुरु नानक देव जी भी चेतावनी भरी वाणी में कथन कहते हैं-

नानक कचडि़याँ सिंउ तोड़, ढूँढ सजणु संत पकियां
ओए जीवंदे विछड़ै ओए मोइया न जाहि छोड़

कहा, कच्चे गुरुओं के पल्लों को छोड़ पक्के गुरु के पल्ले को पकड़ो। कच्चे गुरुओं की राह को छोड़ो, पक्के गुरु की राह को पकड़ो। तोड़ कच्चे गुरु संग नेह, पक्के गुरु संग सोहबत में अपनी ठौर जमा, सेवा भाव में रमो तो कुछ समझ आए, आतम उद्धार हो।

साधसंगतजी! हुजूर महाराज जी की करूणामय रहमत का जिक्र आया, जुलाई 2016 में, एक शाम आप हाजिरां हुजूर सतगुरु साहिबान जी गुरु दरबार साहिब में तखत पर निजता के खुमार में विराजमान, इक याचक बंदा विनय ले आकर कहने लगा, ‘‘सच्चे पातशाह जी! मुझे नाम मंत्र पता है पर मैंने विधिवत दीक्षा तो नहीं ली है। मैं वह 10-12 साल से जपता आ रहा हूँ पर मेरे मन की जिज्ञासा शांत नहीं हो रही, मन में विश्वास भी नहीं बन रहा, खालीपन सा भरा रहता है। भारी तनाव और नीरसपन रहता है, बाबाजी! मन की मैली विकृति जा ही नहीं रही। मेहर करें, किरपा करें’’।

हुजूर साहिबान जी ने मुस्कुराहट भरे स्वर में कहा, ‘‘वह मनमति, लोकमत वाला नाम है, ऐसे नाम में कई भगत पड़े रहे, जीवन गुज़र गया पर कुछ हाथ न लगा। इससे हरे खेत नहीं होने, न ही फल लगने हैं, न मरूस्थल में बारिश होनी है। अगर हथ कुछ करना है तो पूरण भजन-सिमरन की कमाई वालों की सोहबत प्रीत में रहना सीखो।’’

साधसंगत जी! हुजूर साहिबान जी ने जो वचन फरमाए, वे हर इक पिपासुवान संगत के लिए प्रेरणादायक हैं। सभी पूरण संतों ने कहा, भजन सिमरन के भंडारी सतगुरु का निज अनुभव बेहिसाब है, उनका प्रत्येक वचन अनुभव से भरा है। गुरु महराज जी ने उस बंदे से आगे कहा, ‘‘प्यारे! अगर 2000 का नोट बनकर संवर कर तैयार हो जाए मगर गवर्नर की साईन न हो, उस नोट पर अन्य बड़े से बड़े ओहदे वाले साईन करें या आम-आदमी, पार्षद, विधायक या प्रधानमंत्री साईन करे तो आप ही बतायें, क्या वह नोट स्थूल जगत में मान्य होगा?’’

वह प्यारा हंस कर कहने लगा, ‘‘सच्चे पातशाह जी! वह कैसे होगा, वह मान्य न होगा, नकली नोट कहलाएगा, नियम कायदे तो यह हैं कि जब वर्तमान का गवर्नर उस नोट पर साईन करे, तब ही वह चलन में आता है, तब ही वह मुद्रा वाणिज्य व्यापार में कार्य करती है।’’ आपजी ने फरमाया, ‘‘प्यारे! बड़े आतम विश्वास से आप हम सब उस मुद्रा से व्यापार करते हैं।’’ उसने हथजोड़ कहा, ‘‘जी महाराज, जी।’’

गुरु महाराज जी ने मंद-मंद मुस्कराकर उस भगत पर नूरी निगाह कर फरमाया, ‘‘प्यारे भगतां जी, यदि आप जानते हैं, नियम-कायदों का पालन करते हैं, तो ही उस मुद्रा का वाणज व्यापार कर अधिक से अधिक लाभ कमा सकते हैं। ऐसे ही, जब तक भजन सिमरन के भंडारी सतगुरु से विधिवत नाम मंत्र का बल नहीं लेते, तब तक न हृदय के कपाट खुलते हैं, न हृदय का धुन्ध जाता है, न आतम को प्रकाश मिलता है, न ही आतम मुक्त हो पाती है। आवागमन का घेरा बना ही रहता है, काल सिर पर खड़ा रहता है, मुक्ति कदापि नहीं मिल पाती। प्यारे! इसी कोरे भ्रम में, कोरे ज्ञान में, भजन-ध्यान में कई दुनियावी लोग लगे हैं।’’ कि हमें नाम मंत्र पता है, हमें इतने शबद का नाम पता है, अन्य भी कई भ्रम पाल रखे हैं, पर सार सत्य पूरण शबद पूरण गुरुप्रसाद की दीक्षा में, पूरण सतगुरु अपनी भजन सिमरन की कमाई का अंश गुप्त रूप से शिष्य को बक्श देते हैं, फिर ही वह नाम पूरा पूरण है।

ऐसे परिपूर्ण वचन सुन उस बंदे ने विनय अर्ज की, ‘‘मालिकां जी! मेहर बक्शें, पूरण शबद नाम का बल बक्शें।’’

वह बंदा, उसी माह 19 जुलाई को गुरुपूर्णिमा के पावन सत्संग जलसे में पूरे सारे परिवार को लेकर आया और अगले दिन 20 जुलाई को निवड़त निजारी भरे भाव से सजदा कर हुजूर साहिबान जी से संगतों के संग साथ विधिवत नाम मंत्र का दान प्राप्त किया। उसे दीक्षा के वक्त हरिराया सतगुरु जी की नूरी निगाह का प्रकाश मिला।

आपजी ने उस बंदे को वचन बल भी गुझ के बक्शे। वहाँ दीक्षा के वक्त बैठे-बैठे उस प्यारे को प्रकाश की झलकें भी मिलीं जिससे आतम के ऊपर जो बोझ था वह हल्का महसूस होने लगा। वह फफक-फफक कर रो पड़ा। हुजूर साहिबानों ने फरमाया, ‘‘10-12 साल मनमति से नाम का जाप किया, तो याद रख, भजन सिमरन के भंडारी सतगुरु ने अमृत नाम फलदायक दिया है, यह भजन सिमरन के भंडारी पूरण सतगुरु का पूरण गुरु प्रसाद है, अब रोज़ एक घण्टा नियमित अभ्यास करो। एक साल के बाद आकर बताना कि आतम कितनी आनन्ददायक हो रही है।’’

साधसंगत जी! वह प्रेमी हृदयवान था, खोजी था। तीन-चार माह बाद वह श्रीचरणों में हाजि़र हो गया, आँखें भीगी हुई, आव-भाव प्रेमामय बना हुआ और अंतर के कपाट खुलते गए। दिव्य मंडलों में उसकी रूह विधिवत अमृत नाम का दान पाकर भयमय रोगों से मुक्त हुई। वह सतगुरु श्रीचरणों में बस इतना ही भावमय हो गाने लगा-

मोहे मिलो गुरु सतगुरु पूरा, आतम मंगल राग पियारे
मोहे मिलो गुरु सतगुरु पूरा
मैं करूँ बड़ी खुशियाँ, घट में मनाऊँ अमृत खुशियाँ
मोहे मिलो गुरु सतगुरु पूरा

सांईजन ने दया मेहर भरा हथ रख कहा, बाबा! ‘‘अब तो नहीं कहोगे कि मुझे नाम मंत्र पता है?’’ वह कहने लगा, ‘‘सांई जी! वह सब तो मुर्दा नाम था, कच्चे-कच्चे उपाधी वालों द्वारा दिया गया। उन मंडलां के वे जो शाब्दिक जानकार थे, उनसे हमें कुछ न मिला। सभी संतों ने भजन सिमरन के भंडारी पूरण सतगुरु की ओर इशारे किए हैं।’’ आप साहिबान जी ने कहा, ‘‘पूरण सतगुरु भजन सिमरन के भंडारी का उन दिव्य मंडलों पर जाना, हर पल, हर क्षण बिछौना सैर है, समझे बेटा।’’ वह प्यारा हथजोड़ सतगुरु सांईजन के मुखड़े को निहारता ही रहा, मुखड़े को बस निहारता ही रहा।

ऐ रब के अंशों! जब कमाई वाले सतगुरु से अमृत नाम का मक्खन मिला, तो आप अपना समय और तवज्जू दे, अमृत नाम की नियमित कमाई करें, अगर आप घर बैठे नहीं कर सकते, तो सतगुरु शरण में, साधसंगत में आकर इसे गाढ़ा करें, जितना समय आप नन्हीं रूहों का मन नाम शबद में लगेगा, आतम पवित्र और मन निर्मल होता जाएगा। यह निर्वैर दिव्य प्रकाश का भंडार, समस्त जीवों के उद्धार के लिए प्रकाशमय वचन हैं।

सो प्यारी साधसंगतों! आईए, दोनों हथ जोड़ हुजूर साहिबान जी के श्री चरणां में केवल और केवल यही पुकार विनय करें-

ओ हरे माधव मोहे देवो, नाम भजन सुखदाई-2

हे भजन सिमरन के भंडारी सच्चे पातशाह! हमें भी अपने भजन-सिमरन के भंडार को अर्जित करने का बल बक्श। हमारे दिल में अपने पावन श्री चरणों का पुख्ता प्रेम बक्श, हम नितनेम से आप जी के बक्शे अमृत नाम का सिमरन, बड़े प्रेम, प्रीत, लगन से करें जिससे हमारी आतम रूह निजघर में वासा करे, मेहर करें, किरपा करें।

ओ हरे माधव मोहे दवो, नाम भजन सुखदाई-2

।। ‘‘दास ईश्वर’’ कहत है संतों, जग यह झूठा सपने न्याई।।
।। ओ हरे माधव मोहे देवो, नाम भजन सुखदाई।।

हरे माधव     हरे माधव     हरे माधव