।। हरे माधव दयाल की दया ।।

पूरन सतगुरु की पनाह में बैठे प्यारे सत्संगियों! आप सभी को हरे माधव । गुरु महाराज जी समझाते है कि संतमत में रूहानियत के चार स्तम्भ हैं, सतगुरु, परमात्मा, सतगुरु नाम एवं सतगुरु भगति, यह चारों स्तम्भ विश्वास की धरती पर खड़े हैं, हमने सुना है, सुनते हैं, कि पूरा सतगुरु प्रभु का रूप होता है, हमारा निजी अनुभव अभी खुला नहीं है, हम सभी ने सुना है, अमृत नाम प्रभु का रूप है, आत्मा इसी के जरिये प्रभु साहिब में मिल पाती है और यही एक मात्र साधन है । जब तक हम स्व नाम की कमाई, सतगुरु भगति नहीं करते, अनुभव नहीं करते, तब तक निजी तौर पर कुछ नहीं कह सकते । सच्चे सत्संग में आकर ही अनुभव खुलता है और हम समझ पाते हैं, लेकिन जब तक विश्वास प्रेम पैदा नहीं होता, तब तक क,ख,ग,घ,A,B,C,D, शुरू ही कहाँ होती है ?

जीवन के हर एक क्षेत्र में विश्वास का ही पूरा महत्व है, हज़ारों, लाखों या करोड़ों, खरबों के बड़े-बड़े व्यापार, इसी विश्वास पर चलते दौड़ते हैं, बड़े-बड़े समुद्री जहाजों, हवाई जहाजों, रेल चालकों पर विश्वास करके ही हम अपनी कीमती जान, उनके हवाले कर यात्राएं करते हैं, हम किसी डॉक्टर के पास जाकर यूँ नहीं कहते, कि तुम पहले मुझे ठीक करो, फिर मैं तुम्हारी दवाईयों पर, नुस्खे पर विश्वास करूंगा या किसी प्रोफेसर के पास जाकर यूं नही कहते, कि पहले आप हमें बी.कॉम.,एम.कॉम की डिग्री देकर पास कराओ, फिर हम आपकी योग्यता एम.कॉम. की युक्ति पर पुख्ता विश्वास करेंगे, इसी तरह हम प्यारे पूरण सतगुरु से यह नहीं कह सकते, कि पहले आप प्रभु के दर्शन कराओ, फिर हम आपकी शक्ति, युक्ति पर भरोसा करेंगे, ठीक इसके विपरीत जब हम किसी प्रोफेसर या डॉक्टर एवं पूरे सतगुरु पर विश्वास कर उनकी रहनुमाई पर चलते हैं, तो रोग से मुक्त होते हैं, विद्या, शिक्षा को ग्रहण कर उसे पचाते हैं, तभी सफल दर्शन होता है । भरोसे का अर्थ अंध विश्वास कदापि नहीं होता, केवल बुद्धि के सहारे, रूहानियत गुरुमत के किसी भी पहलू की तह तक पहुँचना असंभव है । सतगुरु से नामदान की सोझी लेना और उसका अभ्यास करना निहायत ज़रूरी है, इस राह में नाम की अपार महिमा है, जो आत्मा ऐसे अमृत नाम को जपकर, साध-संगत में अहम भाव को छोड़कर आती है, उसकी सुरत अथवा आत्मा मुक्त होती है, तब वह अगोचर अडोल प्रभु अल्लाह में सहज समाती है ।

जिसे बाबाजी ने सत्संग शबद वाणी में समझाया-

नाम अमृत बड़ा अमीठा, नाम जपो दृढ़ ध्यान लगाओ

सतिगुरु पूरे शरण नाम फल पावो, नाम जप अनाम रूप में समावो

आपजी समझाते हैं, ऐ प्यारों! जो परमेश्वर अखण्ड व्यापी, महाचैतन्य, परमानन्द, सच्चिदानंद, महाआनंद का अणखुट अनंत भण्डार एकस है, वह हमारे अंदर ही वास करता है और निवास भी अंदर ही है, सनातन काल से यह नीति बनी है, कि पूरे सतगुरु द्वारा बक्शे नाम की साधना बन्दगी किए बिना, हम उसे पूरा प्रगट नहीं कर पाते, इसी तरह प्रभु हमारे अंदर है और प्यारा सतगुरु हमारे निकट होता है, दुख-सुख की धारा में, जनम-मरण के क्लेशों में हम बहते रहते हैं ।

आपजी जचकर बात खोलकर कहते हैं, कि अमृत नाम में दृढ़ होकर साटिक ध्यान लगाओ, क्योंकि सच्चे सत्संग प्रेम , भक्तिमय सतगुरु दर्शन, ऐसे रूहानी वातावरण का लाभ उठाकर, अमृत नाम का सिमरन करते हुए, सतगुरु के द्वारा बताए ध्यान, मन आँखों के पीछे आकर, अनहद नाद नाम शबद से जुड़ जाने का यत्न करो, जब अनहद शबद का अमृत हम पीते हैं, तो हमारी मन इंद्रियां बाहरमुखी स्वादों से विरक्त होकर, अंदर नाम का स्वाद पाकर, निजघर की तीव्र अभिलाषा प्रफुट हो पड़ती है, तब नाम की साध-संगत का रस पीकर, समूरे जगत का मोह आसक्ति का रंग उतर जाता है ।

प्यारे सत्संगियों! हमारे मन में भ्रम के गहरे किले गढ़े हैं, जिससे पार होने के लिए योगी, जपी, तपी या तमाम जन, बगैर पूरे सतगुरु की छाया के, उस मन के किले के अंदर ही सीमित हैं और मामूली रिद्धियाँ-सिद्धियाँ पकड़ के हाट खोल ली है, थोड़ा बहुत ज्ञान पाकर भ्रम की पाठशाला खोल दी, बाहरमुखी महंत अतुराई का वाणिज्य खोल दिया, जो अंतरमुखी मारग है, उससे जुड़ना बहुत कठिन है, जिसे केवल छल, छिद्र, कपट छोड़कर ही पाया जाता है । ऐसे ऊँचे मीठे नाम का भेद किसी बड़ी कमाई वाले या परमपद में पहुँचे हुए पूरण सतगुरु से ही पाया जाता है और घट में ही पाया जाता है, । सदा से यह ऊँचा नाम सतगुरु की शरण संगति में जाकर पाया जाता है, मनमत से मन को हटा, गुरुमत की छाया एवं नियम कायदों में चलकर ही पाया जाता है, क्योंकि -

 नाम रचावो सतिगुरु शरण में, नाम पचावो साध संगत में

भवसागर को पार करने का साधन सतगुरु नाम ही है, इसीलिए सभी पूर्ण जागृत संत ऐसे नाम को चिंताओं को हरने वाला चिन्तामणी नाम भी कहते हैं, क्योंकि इसे पाकर कल्पों युगों से सोया जियरा जाग उठता है, चंचल, भटकता, मलीन मन तृप्त होकर शांत हो जाता है, यह ऊँचा पवित्र नाम अनंत से अनंत कोटि तीर्थों के समान पाक पवित्र है ।

सो हमें चाहिए कि सतगुरु साहिबान जी से भक्ति के सच्चे मोती अमृत शबद नाम की मणी मांगे और पूरे सतगुरु द्वारा बक्शे अमृत शबद का स्वांस-स्वांस सिमरन कर, माधव के रंग में रंग जाएं, ऐसी दया रहमत करना मेरे सतगुरु जी मेरे माधव जी ।

।। कहे माधवशाह सुनहो भगतों ।।
।। ऐसा गुरुमुख जन तू होवो ।।
।। सतगुरु पुरुख पूरण रूप।।
।। राम करीम माही समावो ।।

हरे माधव हरे माधव हरे माधव