|| हरे माधव दयाल की दया ||

हमें रब का मुखड़ा दिखाया, ममता की छांव बिठाया
गुरुमाता तुझको वंदन, हमें सतगुरु जी से मिलाया

1. ममता की मूरत तू ही, भक्ति की अनुपम धारा
करणी की तूने ऊँची, जन्मा जो प्रभु करतारा
रूहों का तारणहारा, इस धरा ने तुझसे पाया
                                           गुरुमाता तुझको वंदन...

मां कबीर की साखी जैसी,
तुलसी की चौपाई-सी,
मां मीरा की पदावली-सी,
मां है ललित रुबाई-सी

मां वेदों की मूल चेतना,
मां गीता की वाणी-सी,
मां त्रिपिटिक के सिद्ध सुक्त-सी,
लोकोक्तर कल्याणी-सी

मां द्वारे की तुलसी जैसी,
मां बरगद की छाया-सी,
मां कविता की सहज वेदना,
महाकाव्य की काया-सी

मां अषाढ़ की पहली वर्षा,
सावन की पुरवाई-सी,
मां बसन्त की सुरभि सरीखी,
बगिया की अमराई-सी

मां यमुना की स्याम लहर-सी,
रेवा की गहराई-सी,
मां गंगा की निर्मल धारा,
गोमुख की ऊंचाई-सी

मां ममता का मानसरोवर,
हिमगिरि-सा विश्वास है,
मां श्रृद्धा की आदि शक्ति-सी,
कावा है कैलाश है

मां धरती की हरी दूब-सी,
मां केशर की क्यारी है,
पूरी सृष्टि निछावर जिस पर,
मां की छवि ही न्यारी है

मां धरती के धैर्य सरीखी,
मां ममता की खान है,
मां की उपमा केवल है,
मां सचमुच भगवान है

परम तेजस्वी, अपार ममतामयी, वात्सल्य की प्रतिमूरत, परम श्रद्धेय गुरुमाता हेमादेवी जी, हमारे हरिराया सतगुरु सच्चे पातशाह बाबा ईश्वरशाह साहिब जी एवं हम सभी की पूज्य गुरुमाता जी को शत्-शत् नमन वंदन, शत्-शत् नमन वंदन। आप ममतामयी गुरुमाता जी की जीवन यात्रा संयम के दिव्य मार्ग पर समर्पित और अनुशासित रही। यह हरे माधव प्रभु की असीम कृपा और हम संगतों का सौभाग्य रहा कि ऐसी परम स्नेही गुरुमाता का हमें सानिध्य मिला और स्नेह भरा हाथ, सदा हमारे सिर पर रहा। आपकी सादगी पूर्ण साधारण बातें भी प्रेरणा से परिपूर्ण होतीं, आप सतत् कर्मपरायण कल्याणभाव, सहज ज्ञान और भक्ति की प्रदीप्त ज्योति स्वरूप, त्याग की प्रतिमूर्ति, आपका जीवन हम सबके लिए आदर्श है।

आपने हरिराया सतगुरु की भक्ति कर जो ऊँची आंतरिक कमाई की, उसकी छवि आपके सांसारिक जीवन में भी झलकती।
आपने जीवन में पारिवारिक, संसारिक और आध्यात्मिक संतुलन का बेमिसाल उदाहरण प्रस्तुत किया जो कि रूहानी राह पर चलने वाले हम सभी शिष्य आत्माओं में सदा प्रेरणा का संचार करता रहेगा।

2. हरि प्रभु के देह रूप को, तूने अपनी छांव में पाला
माँ हेमा लाल तुम्हारा, सारे जग का है रखवाला
सांई ईश्वरशाह भगवन को, है गोद में अपनी झुलाया
                                   गुरुमाता तुझको वंदन...

18 नवंबर 1975, पावन दिवस, जिस वेले हरिराया सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी का अवतरण हुआ, पूज्य गुरु दादी माँ नानकी देवी जी, पूज्य गुरुपिता ताराचंद जी, पूज्य गुरुमाता जी की खुशी का पारावार ही न था, नैनों से माधुर्य प्रेम की गंग बह उठी। ऐसे सुहिणे लाल के तेजोमय मुखड़े से नज़र ही नहीं हट रही। आप पूज्य गुरुमाता जी अपने कोमल नन्हें बालक के आलिंगन कर ऐसा लग रहा मानो वह आपके अस्तित्व को संपूर्णता दे रहा हो। पूज्य गुरु दादी माँ, पूज्य गुरु पिताजी व पूज्य गुरुमाता जी ने अपने लाल का लालन पोषण वात्सल्य एवं भक्ति के संस्कारों से किया।

आप पूज्यनीय गुरुमाता हेमादेवी जी का अपनी आँखों के तारे यानि हाजिरां हुजूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी से बेहद प्यार, इतना गहरा ममत्व लगाव कि दिन-रात मन में केवल, सुध-बुध अपने प्यारे लाडले लाल सांईजन की। और सांईजन का भी आप गुरुमाता जी से अगाध स्नेह रहता।

हाजिरां हुजूर सांईजन के बाल्यकाल भगतवेष में सांईजन अधिकांश समय गुरु दरबार साहिब में सतगुरु श्री चरणों की सेवा में, सतगुरु नाम, भजन-बंदगी में बिताते, खान-पान और आराम की तनिक सुध न रहती, सेवा कर जब सांईजन रात्रि को घर आते, ऐसे में आप गुरुमाता जी कभी-कभी सांईजन को वात्सल्य डाँट देकर, अपने हाथों से भोजन करातीं। एक ओर आप गुरुमाता जी ने अपने लाल पर ममता वात्सल्य भरपूर बसाया तो दूसरी ओर समय आने पर अपने लाडले लाल को परमात्मा स्वरूप जानकर उनकी पूजा बंदगी भी परिपूर्ण प्रेम भाव से की लेकिन आपका माँ वाला स्नेह ज्यों का त्यों जीवन पर्यंत सांईजन पर बरसता ही रहा। यह ऊँचे दर्जे की अनुपम भक्ति है, ऐसी निष्काम, निश्चल भक्ति से अंतर्मन निर्मल होता जाता है और निज की पहचान सहज हो जाती है, फिर आतम-परमातम में कोई भेद नहीं रह जाता।

सतगुरु साहिबान जी बाल्यवस्था भगत वेष में, आप गुरुमाता जी सांईजन को नहला धुलाकर तैयार करतीं, अपने पास बिठा भोजन करातीं क्योंकि सांईजन सदा परम खुमारी में परमत्व शोहरत में मग्न रहते और देह की कोई सुध न रहती, न खान-पान की सुध, न चैनो आराम की सुध। एक दिन भोजन के दौरान आप गुरुमाता जी ने कहा, देखो बेटा! यह जो आप भोजन खा रहे हैं, दिखाई देने में भोजन खा रहे हैं पर इनके पीछे अपनी प्रारब्ध खा रहे हैं। इसी तरह इस संसार में समस्त प्राणी जो स्वांस ले रहे हैं, दिखाई देने में वे स्वांस ले रहे हैं, वह भी प्रारब्ध ही है। जो कोई धन पदारथ या नाना सुख को भोग रहे हैं, तो वे सभी जीव प्रारब्ध को ही भोग रहे हैं। बेटा! सभी को यह देही भी प्रारब्ध अनुसार मिली है, यह प्रारब्ध तो देह के साथ पूरी होनी है, बस देह के अंदर जो आतम है, आप उसे सतगुरु शबद नाम भजन में रत करना, इकरस रंग में भिगाना, देहभाव से परे हो, आत्मभाव में स्थिर होना क्योंकि यह आत्मिक प्रारब्ध कभी शून्य नहीं होती, नास नहीं होती, खत्म नहीं होती। काल चक्र का कोई फंद इसे बाँध नहीं सकता। आप सांईजन जी ने मंद-मंद मुस्कराकर प्रेमापुर्वक चरण स्पर्श कर कहा, जी-जी माता जी।

आप पूज्य गुरुमाता जी अक्सर यह समझाइश देतीं, जिसका उन्होंने अपने जीवन में परिपूर्णतः निर्वहन भी किया कि अपने मन आतम से नीरसता और उदासी को निकाल, उल्लास और प्रेम से ऐसे भरें, जैसे गंगाजल, औैर इसे सर्वत्र बाँटें। अपने अंदर में सदा शुक्र-भाणे के मोती पिरोते हुए ऐसा भजन-सिमरन करें कि इच्छाएँ आपके पीछे भागें, आप इच्छाओं के पीछे नहीं।

3. तेरा सहज सरल था जीवन, जिसमें थी त्याग तितिक्षा
कर्तव्य करें सब पालन, संग भक्ति की दी शिक्षा
हमने तेरे जीवन को, अपना आदर्श बनाया
                                  गुरुमाता तुझको वंदन...

आप पूज्य गुरुमाता जी ने सदा वैभव के सुखों से दूर सात्विक, सादगी वाला जीवन अपनाया, स्व ही सब कर्त्तव्य कार्य करतीं। आपजी के तप, त्याग का प्रकाश आपके ममत्वमयी जीवन में सदा दिखाई देता, परमार्थ की ओर आपका रूझान सदा रहता, नित्य नियम से भजन ध्यान करतीं। पूज्य गुरुमाता जी की भोली-सी सूरत समत्व भाव को बिखेरती, आपका स्वभाव प्रेमापूर्वक, माधुर्य, संतोष एवं अपनी निजता में सदा मगन रहना था। आपकी रहणी-करणी हम सभी के लिए सदा आदर्श प्रेरणा स्त्रोत है। आप ममतामयी गुरुमाता कोमल हृदय का प्रतीक हैं, श्रद्धा, प्यार, विश्वास, सहनशीलता, कर्त्तव्यनिष्ठा का सागर हैं, करूणा प्यार का भण्डार, ऊँची संस्कारवान दिव्य आतम हैं, आपका सम्पूर्ण जीवन प्रेम, प्यार, सदाचार का पर्याय रहा, जीवन के प्रत्येक क्षणों में आप माताजी धैर्य का परिचय देते हुए सदा भांणे में रह शान्त हंसमुख एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व की धनी बनी रहीं। हम सब भांगा वाले हैं कि हमारे सिर पर सदैव माताजी का ममतामयी हाथ रहा।

आप गुरुमाता जी के जीवन में हम निहार के देखें, आपजी ने हर एक रिश्ते को कितनी सहजता से निभाया, सतगुरु शिष्य के रूप में, चाहे भार्या के रूप में, बहू के रूप में या फिर पारब्रम्ह स्वरूप सतगुरु की माता के रूप में। जीवन में जो भी उतार-चढ़ाव आए, आप ने सहनशक्ति, महान धीरज के साथ हर एक खटास को, अमृत का प्याला मान कर, तेरा भाणा मान निभाया। आप का पूरा का पूरा जीवन तपोमय ही था, जो कि संत कबीर जी ने भी कहा है-

गृहस्थ में जो रहे उदास, कहे कबीर तां को मैं दास

गुरुवाणी में भी बड़े ही सुहणे वचन फरमाए, जो आप गुरुमाता के पाक वात्सल्य में छिपा हुआ, रूहानी एकस वाला ज्ञान है-

नानक सतगुरु भेटिये पूरी होवै जुगत
हसंदिया खेलंदिया पेन्नंदिया खावंदिया विचे होवै मुकत

सन् 2002 में हरिराया सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी गुरुता गद्दी पर आसीन हुए प्रभु के हुक्म से भजन सिमरन भारी का प्रताप, सर्व सांझी रूहों के लिए प्रगट किया, संगतों के आतम मंगल भाग्य जगे। हरिराया सतगुरु जी ने हरे माधव नाम का अलख जगा, मन अवज्ञा में सुत्ती रूहों को जगाने वास्ते गुरुमत का भजन प्रकाश प्रगट किया, निष्काम सेवा, पावन सत्संग, सतगुरु नाम का सिमरन-ध्यान का रूहानी मार्ग सर्वमांग्ल्य भाव से सभी को बक्श रहे। परम सत्य कारवां निरंतर बढ़ता जा रहा। सतगुरु सांईजन आतम रूहों के कल्याण वास्ते कई-कई दिन परमार्थी यात्राओं पर जाते, जिस कारण आप गुरुमाता जी को वात्सल्य करूणा ममत्व भाव को बरसाने में वित्थी पड़ जाती। ऐसे में आप माता जी का पूरा ध्यान उसी ओर रहता कि मेरे बब्बू (सांईजन) अपना ख्याल कैसे रखते होंगे, खान-पान ठीक से करते होंगे कि नहीं क्योंकि भगत वेष में बाल्यकाल से ही आप सांईजन विदेही खुमारी में, पारब्रम्ह खुमारी में, परम लीनता में रहते, जिससे अपने देह की सुध ही नहीं रहती। आप माताजी का सारा दिन सांईजन की याद में, सुध में बीतता। आप गुरुमाता जी, गुरुपिता जी से कहतीं कि मेरा लाल, सबका उद्धार कर रहा है। मेरी आसीस भी यही है कि मेरा लाल सदा यूं ही गुरुमत के प्रकाश सतगुरु परम प्रकाश को सभी रूहों पर अनवरत बरसाता रहे, सभी रूहों का भला करता रहे पर माँ की ममता यही कहती है कि अपने बालक के सर पर हाथ फेर, उसे दुलार करूँ, लोरी सुनाऊँ।

(झूला झुलाऊँ मैं तुझें, झूला झुलाऊँ-4)
(मैं ख्वाबों में प्यारे तुझें, लोरी भी सुनाऊँ-2)
झूला झुलाऊँ मैं तुझें.....

1. (लौट आओं सफर से, कि बड़ी देर हुई है-3)
(बेताब हुँ कब से, तुझें सिने से लगाऊँ)
झूला झुलाऊँ मैं तुझें.....
2. (कोई मुझे बतलाता नही, तेरी निशानी-3)
(किन किन सी गलियों में कहाँ, ढूंढने जाऊँ)
झूला झुलाऊँ मैं तुझें.....
3. (तुम साथ में लोगो के गए थे, मेरे जानी-3)
(क्यो रूठ गए माँ से तुम्हें, कैसे मनाऊँ)
झूला झुलाऊँ मैं तुझें.....
4. (सोचा था तेरी सालगिरह, घर मे करूँगी-3)
(पर तू नही आया तो कैसे, जश्न मनाऊँ)
झूला झुलाऊँ मैं तुझें.....
5. (जाते हुए बच्चें को इन, आँखों ने देखा-3)
(फटता है जिगर माँ का भला, कैसे छुपाऊँ)
झूला झुलाऊँ मैं तुझें.....
6. (मैं जानती हूँ सबका तू अब, बन गया है लाल-3)
(उस प्यार भरे नाम से, बुला नही पाऊँ)
झूला झुलाऊँ मैं तुझें.....
7. (इस तरह कोई रूठ के माँ से, नही जाता-3)
(तू खुद ही बता दे तुझें, कैसे मनाऊँ)
झूला झुलाऊँ मैं तुझें.....
8. (ये सच है तेरा लौट के मुमकिन, नही आना -3)
(करता रहे तू सबका भला, दिल से ये चाहूँ)
झूला झुलाऊँ मैं तुझें.....
9. (आशीष है न तुझपे हो कोई, बुरा साया-3)
(ये माँ की दुआ है गाँ के, लोरी सुनाऊँ)
झूला झुलाऊँ मैं तुझें.....

सन् 2013 में, एक बार आप गुरुमाता जी, अपने प्यारे नूर-ए-चश्म, सच्चे पातशाह जी के साथ हरे माधव वाटिका में भोजन कर रहीं। उस समय वचन विलास हो रहा। आप गुरुमाता जी के वचन, बेहद अगाध ममता युक्त, मर्म युक्त, आध्यात्मिक गुणों से परिपूर्ण रहते। सांईजन जी जीवनमुक्त पारब्रम्ह, परम अवस्था परमत्व में रत्त रहते हुए भी आप गुरुमाता जी के सामने सदा भोले बालक की तरह ही रहते।

सांईजन जी ने आप गुरुमाता जी से पूछा, मम्मी! नीम मीठी हो या कड़वी, हमें क्या करना चाहिए? आप गुरुमाता जी ने कहा, सबका भला हो, चाहे वह मीठे स्वभाव का हो, या कड़वे स्वभाव का हो, सभी खुश रहें, सभी हरे माधव प्रभु मालिक के बने हैं, बेटा! आपको केवल सूर्य के समान, सबको प्रकाश देना है, सभी का भला करना है। कर्मगत के आधीन सबका अपना-अपना स्वभाव है। बेटा! आपको मेरी तरफ से यही आशीष है, आप सदैव जीवों का भला करते रहें।

4. तू कौशल्या तू यशोदा, तू त्रिपता सी कल्याणी
तू परमपिता की जननी, तेरी है दिव्य कहानी
युग-युग तक याद रहेगा, तेरा नाम अमर कहलाया
                                                गुरुमाता तुझको वंदन...
हमें रब का मुखड़ा दिखाया, ममता की छांव बिठाया
गुरुमाता तुझको वंदन, हमें सतगुरु जी से मिलाया

यह अकाट्य सत्य है, चाहे कोई अवतार हो या पैगम्बर, सम्राट हो या सिकंदर, हर रूह मां के गर्भ में रहकर ही दुनिया में आती है, मां जीवन भर सरोवर, तरुवर और संत की तरह निःस्वार्थ भाव से अपने बच्चों पर प्रेम और वात्सल्य बरसाती है। मां की गोद स्वर्ग की वह सेज है, जिसमें बच्चे को संसार की सबसे अच्छी नींद आती है, मां, जब हमारे पास रहती है, तो प्रेम का खज़ाना हम पर बरसाती है और जब दूर होती है, तो दुआओं से हमें धन्य करती है और परलोक चले जाने पर आशीर्वाद की रहमतें बरसाती है।

कमाई वाली पावन आतम के जीवन प्रकाश को प्रगट करने का किसी भी जुबां में सामर्थय नहीं। एक दिन, आप पूज्य गुरुमाता हेमादेवी जी, हुजूर सतगुरु साहिबान जी के साथ बैठीं, दिव्य प्रकाशी वचन बरस रहे। गुरुमाता जी ने कहा, बेटा जैसे ये देखो धरती, भले हो बुरे हो, ज्ञानी हो अज्ञानी हो, गुरुमुख हो मनमुख हो, सभी को रहने का थांव देती है। इसी तरह जब आप सतगुरु मत के प्रकाशी राह पर निकलेंगे तो ऐसे ही नाना प्रकार के प्राणी मिलेंगे पर आप सदा समत्व प्रकाश सभी पर बरसाना, सर्व मांगल्य भाव से सबका परोपकार करना।

पूज्य गुरुमाता जी ने इकचित्त हो गुरुभगति नाम सेवा कर अपने मानव जीवन को सफला बनाया। आप गुरुमाता जी को सदैव अपने दुलारे लाल, हरिराया सतगुरु जी का एवं सारी साधसंगत का पूरा-पूरा ख्याल रहता और नितनियम से अपने हाथों से भोजन बनाकर गुरुदरबार साहिब भेजा करते और गुरु साहिबानां द्वारा बक्शी हुई सेवा को निष्ठा और प्रेमाभाव से पूर्ण करते, मौन में रह सदा आनन्द में रहती। जो कि पूज्य गुरुमाता जी के मुख मण्डल पर स्पष्ट नजर आता, तेजस्वी मोहिनी मूरत आज भी आँखों में छायी रहती है जो हमें गुरुमाता जी की उपस्थिती की अनुभूति कराती है। पूज्य गुरुमाता जी सभी सेवकों, बाल-गोपालों, सेवादारी माताओं बहनों को सदा समझातीं कि समर्पण, निष्ठा, त्याग, बलिदान, निष्काम भावना, निमर्लता के बिना कुछ भी प्राप्त नहीं होता, सुख पाने की इच्छा है, तो सुख को बांटना और त्यागना सीखो, सत्संग सेवा में नितनियम रखो, सत्संग सेवा की घड़ी को कभी न विसारो, सत्संग सेवा से जुड़ना, बड़े ऊँचे महान पुण्यों का फल है। आपके इन्हीं आदर्शां को आगे रख, हरे माधव परमार्थ सत्संग समिति की सेवादार माताओं ने अपने सेवा संगठन को पूज्य गुरुमाता हेमादेवी सेवा समिति के नाम से अलंकृत किया जो निष्काम भाव से, कर्तव्यनिष्ठता से सतगुरु श्री चरणों की सेवा में अग्रसर हैं। आप पूज्य गुरुमाता जी की कथनी करनी में समानता को सभी ने अनुभव किया, जो अविस्मरणीय है।

आप गुरु माताजी को सदैव विशाल ममता और अनन्य करुणा की दिव्य पावन आतम के रूप में स्मरण किया जाएगा। आपने जीव जगत को, हरिराया सतगुरु रूपी महानतम सौगात बक्शी जिससे यह सारा संसार धन्य हो रहा है। यह समस्त ब्रम्हाण्ड, भू-मण्डल, युगों-युगांतरों तक आप गुरुमाता जी का ऋणी रहेगा। आपका यह परम उपकार सूर्य के अमर प्रकाश की तरह सदियों तक कायम रहेगा, आपके व्यक्तिव एवं गुणों की सुरभि से हरे माधव परिवार सदैव सुरभित रहेगा। साधसंगत जी! पूज्य गुरुमाता जैसी ऊँची पवित्र दिव्य आतम के आदर्शां को अपने जीवन में उतारना ही, उनके प्रति सच्चा भावपूर्ण भगति भाव है।

हरिराया सतगुरु जी के पावन श्रीचरणों में यही विनंती बारंबार है, हे सच्चे पातशाह जी! मेहर किरपा करें, हमें ऐसी सुमति, ऐसा बल बक्शें जिससे हम सदैव आपके भाणे में राजी रहकर जीवन यापन करें, शुक्र-शुक्र कर प्रत्येक सुख-दुख में भाणा स्वीकार करें, भगति बंदगी सेवा की राह पर बढ़ें। ऐसी दया करें कि हम सभी, पूज्य गुरुमाता जी के प्रेरणादायी जीवन से अनमोल नसीहतों के मोती चुनकर अपनी रूह और जीवन को संवार सकें। आप गुरुमाता जी के श्रीचरणों में सारी संगतों का दण्डवत नमन, शत्-शत् वंदन, शत्-शत् वंदन।

हमें रब का मुखड़ा दिखाया, ममता की छांव बिठाया
गुरुमाता तुझको वंदन, हमें सतगुरु जी से मिलाया

हरे माधव    हरे माधव   हरे माधव