|| हरे माधव दयाल की दया ||

।। आया फाग बड़ा सुहाना, होली मनाओ सतगुरु संग प्यारों।।
।। होली अंदर राज समाए, भगत ठगता पाप पुण्य के सब भेद खोलाए।।
।। गुरुमुख साची नाम आतम छाई होली।।
।। संगत सतगुरु नित मनाई अमीठी रंग होली।।

प्यारे हुजूर महाराज की के चरण कमलों में सज़दा, अकीदा, दण्डवत परवान हो, चरण कमलों की छाया में बैठी संगतों आप सभी को हरे माधव।

आज के सत्संग की रसीली सुहानी वाणी, हाजि़रां हुज़ूर मौजूदा विराजमान, संत सतगुरु सांई ईश्वरशाह साहिब जी की, वचन विलास आनन्द अमृत की वाणी है, जिसमें आपजी जीवों को आतम होली के रंग में रंगने की, प्रेरणा दे रहे हैं, हमारे साहिबान जी हम जीवों के सामने, लोक सुखी हो, परलोक सुहेला हो का उद्देश्य रखा है। वाणी में आया-
आया फाग बड़ा सुहाना, होली मनाओ सतगुरु संग प्यारों

भजन सिमरन के भंडारी सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी ने 01 मार्च 2011, मंगलवार सुबह 07ः45 बजे अपने प्रभुमय मुख से यह शाश्वत अविनाशी एहनिष होली की वाणी फरमाई।

प्यारे सत्संगियों! होली पर्व के आते ही बच्चे, बुर्जुगजनों, सभी में उमंग उत्साह की लहर दौड़ पड़ती है, भिन्न-भिन्न व्यंजनों, पकवानों की लालसा होती है, अनोखे-अनोखे रंगों को छिड़क कर, हर एक बंदे को हम रंगा हुआ देखना चाहते हैं। हम सांसारिक जीव भिन्न-भिन्न विचारों में रंगे अपने दुनियावी स्तर तक होली का पर्व मनाते हैं, हरिराया सतगुरु, कमाई वाली हस्तियां, हम जीवों के मन का मुआयना कर, बड़ी सूक्ष्म बारीकी की राह, अपने इल्म ज्ञान से, हर एक पर्व का परमार्थी, भक्ति बंदगी एवं खिदमत (सेवा) के अनूठे रंग का गुलाल खेलने को कहते हैं। आप हुजूर महाराज जी कहते हैं-

होली मनाओ सतगुरु संग प्यारों

हरिराया सतगुरु समझाते हैं, कि रूह, आत्मा नौ दरख्तों में आई, आत्मा मन के संग उलझ गई, इन्द्रियों के विकारी मोहिने जालों ने, उसे जकड़ लिया, आत्मा पाप-पुण्य के रंग में रंग गई या यूं कहें, वह काल विकारी रंग में रंग गई, तब निर्विकारी, निर्वैर पुरनूर कुल मालिक का रूप पूरण सतगुरु ने जगत में प्रगट रूह को, सच्चे घर का पथ दिखाया, तब उस दयाल ने रूह को, अपने असल अमीठे इकरस रंग में रंगने को कहा, सिमरन, ध्यान, सेवा, सत्संग से, जब आत्मा पूरण सतगुरु के रंग में रंगी, फिर उसने आत्मिक शाश्वत इकरस रंग की होली का सुख पाया।

गुरुमुख साची नाम आतम छाई होली
संगत सतगुरु नित मनाई अमीठी रंग होली

आतम ने अपने अंदर, तड़प, विरह, अनुराग, पावन भक्ति के रंग में रंग, फिर नित्य-नित्य उस आतम रूह ने, पूरण गुरु शबदी रंग को अपने ऊपर उड़ेल दिया, पूरे संतन को दया करूणा आई, तो उसे चौरासी के रंग से उठाकर, यह इकरस रंग का भेद खोल दिया, क्योंकि सतगुरु का जो हाट दीवान पूरण शरण पूरण साधसंगत है, जिसके वे खुद मालिक-ऐ-कुल हैं, उनका दीवान खुला है और सच्चे रंग को बक्शते जाते हैं, सर्व सांझी रूहों को बाहरमुखी विकारों रंगों से हटने को कहते हैं, सुरत शबद योग का पथ खोलकर देते हैं, चहुँओर सतगुरु भगति में रूह रंगकर, गुरु शबदी श्रृंगार रूपी होली के रंग को मनाती है।

प्यारी साध-संगतों! हम सब ऐसे सच्चे आत्मिक रंग को करतारे रूप सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी के श्रीचरणन पनाह में, प्रेमामय भक्ति की होली निश्दिन मनाते हैं, गुरु साहिबानों की पावन हुज़ूरी में हर पल हर क्षण नाम के रंग में डूबे प्रेमीजन, सेवा के रंग का निश्दिन मंजन करते रहें। आज हर किसी के घट अंतर यह भाव जरूर उमड़ता है, पहले हम यह होली किस तरह दुनियावी नशों या तामसी आहार या तामसी पेय पदार्थों को पीकर मनाते थे, अब सतगुरु ने दयाकर, अपने अर्शी हाट में दात खोल दी है, जीभर कर हम ऐसे सच्चे इकरस रंग को बढ़ाते रहें और आत्मिक रबियत का आनन्द लेते रहें। आप साहिबान जी ने वाणी में फरमाया-

होली अंदर राज समाए
भगत ठगता पाप पुण्य के सब भेद खोलाए

आप समरथवान साहिबान जी इस गहबी चैतन्य होली का ज्ञान बक्श रहे हैं-

गुरुमुख साची नाम आतम छाई होली
संगत सतगुरु नित मनाई अमीठी रंग होली

पूरण हरिराया सतगुरु की संगति से, जब हमें सुरति नाम के अभ्यास का बल मिलता है, उसे कमाते हैं, तब हम, इस बाहरी जगत की होली से छूटकर, चेतना की ऊँचे से ऊँची, एको अवस्था को पा लेते हैं, यह गुरुमुख गुरु का प्यारा, फिर ऐसे सतगुरु शरण में टिककर वह आतम, झूठी दुनिया के तौर तरीके भुला बैठती है, ऐसे सतगुरु के प्रेम प्रीत के प्याले को पीकर, शिष्य बेपरवाह हो जाता है, अपने तन का होश नहीं रहता, मन हर पल हर क्षण गुरु चरणों में, प्रेमा भक्ति से फिर जो अंतर में ज्ञान का फल मिलता है, वे उसमें इतने मगन हो जाते हैं, फिर उन्हें कहाँ खाने-पीने का होश रहता है, आठों पहर रंगे रहते हैं, आठों पहर चरण कमलों का रस झीमा-झीमा बना रहता है, फिर वे वाचकी ज्ञान से, कोसों दूर चले जाते हैं, भगत भगवान की एकता हो गई, अज्ञान, दुई, शक-शुभा, मलीनता और झूठे मद में जो जिन्दगानी गुजारी, फिर चरण कमलों की संगति में भीगकर, एको तत्व रूप का सच्चा सूर्य, घट में पनप उठता है, उदित हो उठता है, आतम हर पल अमीठे रंग में रंगी रहती है।

नित्य मनाई अमीठी रंग होली

सतगुरु रंग में रंगी आतम रूहें केवल अपने सतगुरु संग रंग में ही भीगना चाहती हैं। ऐसे सच्चे रंग में रंगी, भगतिवान माता मीरा बाई जी, अपने परमेश्वर से विनती कर कह रही हैं, जी गौर करें-

इक अर्ज सुनो मोरी, मैं किन संग खेलूं होरी
तुम तो जोय विदेसां छाय, हमसे रहे चित चोरी
तन आभूषण छोडि़यो सब ही, तज दियो पाट पटोरी
मिलन की लग रही डोरी, मिलन की लग रही डोरी
आप मिल्यि बिन कल न परत है, त्याग दिया तिलक तमोली
मीरा के प्रभु मिलसी माधव, सुणज्यो अरज मोरी
दरस बिण बिरहणी दोरी, दरस बिण बिरहणी दोरी

सतगुरु पूरे से सच्चे रंग की खोजी मीरा जी को, वह जब सच्चा रंग चरण कमलों का मिला, तो उन्होंने लोक लाज की दीवारें तोड़ दीं, ऐसे भक्तिमय सच्चे रंग की महिमा तो, कथने से परे है, मीरा जी ने पुकार की और जिनका एको ओट आसरा है, उनसे पुकार कर कहा! हे मेरे माधव प्रभु! अर्ज सुनो, विनती सुनो, मुझे आप ही बताओ, कि मैं किसके संग होली खेलूं, तुम तो परदेस में जा बस गए हो और तुम्हारे प्रेम भक्ति चरण कमलों से मेरा चित्त जुड़ गया, मन जुड़ गया और मन हृदय भी चुराकर ले गए, तुम्हारे वियोग याद में यह हाल हो गया, मैंने सारे बाहरमुखी आभूषणों का त्याग कर दिया, साज श्रृंगार में जी नहीं लगता, क्योंकि सच्चा आतम का चित्त, सच्चे गुरु भगत का मन चित्त तो, अपने माधव ठाकुर में लगा रहता है, हे प्रभुवर! आपसे मिलने की आस की डोरी अभी टूटी नहीं है, बताओ मैं किस संग होली मनाऊँ, मेरा मन चित्त तो, चित्तचोर तुमने चुरा लिया, चैन कहाँ मिलने वाला है, मेरे माधव आकर मिलो, सुनो बिनती, दरशन में यह विरहणी विरही आतम, दुखी है, क्या तुम्हारे बिन यह होली, सूनी ही बीतेगी, मुझे बाहरी होली से क्या काम, धुर धाम के, माधवे प्रभु के संग मैं होली मनाऊँ-

इक अर्ज सुनो मोरी-2 मैं किन संग खेलूं होरी
मीरा के प्रभु मिलसी माधव, सुणज्यो अरज मोरी
दरस बिण बिरहणी दोरी, दरस बिण बिरहणी दोरी

साधसंगत जी! जिस तरह होली पर्व में हर एक जीव का चेहरा, तन रंगा, हर ओर गुलाल रंग एवं हवाओं में रंग, चेहरे रंगे होते हैं, उस समय सभी जीवों की पहचान एक ही होती है, कि बस रंगे हैं गुलाबी रंगों में, कभी तो हम अपने घर के सदस्य को भी पहचान नहीं पाते, क्योंकि रंग रता रहता है, पूर्ण संत अणखुट दयालु होते हैं, वे हमारी आतम को भी नाम के रंग में रंग देना चाहते हैं, जिससे की सभी रूहें एको विसाले इकरस रंग में रंग, परम आनन्द, परम सुख इकरस में रत जाऐं, रूहें सदा सतगुरु नाम शबद इकरस रंग में रंगी, रची, रती रहें, इकरस रंग में रंगी रहें।

ऐ सत्संगी! ऐसे निराले संतजन, हमसे दुनिया का सुख चैनों आराम छीनना नहीं चाहते, वे हमारे सामने, आत्मिक अमृत आनन्द का निराला अद्भुत अणखुट भण्डार खोलना चाहते हैं, जिसकी हम स्वप्न में भी कल्पना नहीं कर सकते और नाहीं हो सकती है। वे दुखदायी क्षणभंगुर मायामय जगत के बदले, सम्पूर्ण अविनाशी हरे माधव परम सुखदायी अमृत मण्डल की प्राप्ति का लक्ष्य, टारगेट हमारे समक्ष रखते हैं, निर्वाणधाम, बेहदपुरी या तमाम पूर्ण जागृत संतों ने, उसे अकाल मूरत अल्लाह का देश, गॉड, निश्चल प्रभु कहा, सच्चा रंग पूर्ण साध-संगत से जुड़कर मिलता है।

आपजी फरमाते हैं, संत सतगुरु जीव को उद्म, यत्न, अभ्यास पुरुषार्थ का त्याग करना नहीं सिखाते, वे तो बिगड़ैले जीवों या बिगड़े बच्चों को उत्तम उद्म, उत्तम लक्ष्य, लोक परलोक सुहेला करने वाली दिशा देकर, रुख बदलना चाहते हैं, बाहरमुखी से अंतरमुखी बनाना चाहते हैं। आतम को इकरस का रंग भेद देकर उसमें मिला देते हैं।

सेवा प्रेम स्नेह के सच्चे रंग में हृदय को रंग कर, अमीठी होली का भाव, आपजी सत्संग शबद की वाणी में बयां कर रहे हैं, जी आगे-

।। बड़ा बूझ जिन सतगुरु पूरा पाया, से ही मनाए सतरंगा होली।।
।। सेव रंग का धूड़ लगाओ।।
।। सतगुरु संग नाम प्रेम संगतमय झूम प्रेम राग गाओ।।
।। भगत पहलाद भगति ते प्रगटा, हिरणा होलिका हुआ दुहावा।।
।। सतगुरु होली सार की चितावै।।

पूरन गुरु की ओट छाया में बैठी संगतों! यह एकता, प्रेम, शुद्ध रंगों, आत्मिक रंगों का पर्व, बड़े ऊँचे ज्ञान से भरा है, ध्यान हम जीवों को देना है या यूं कहें दुनिया में विकारी रंग भरे हैं और समरथ सतगुरु के पास निरविकारी रंगों का भंडार है।

बड़ा बूझ जिन सतगुरु पूरा पाया, से ही मनाए सतरंगा होली

हाजि़रां हुज़ूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी फरमाते हैं, कि जन्म जन्मांतरों से, मोह माया आवागमन के रंगों में रंगकर, जीव सोया है, उसे पता ही नहीं, कि जीवन का मूल्य, इस जीवन में कितनी बड़ी सम्पदा, प्रभु ने घट अंतर रखी है, यह विकारी रंग बाधा बनते हैं, इसीलिए आतम निजघर की होली मनाऐं।

सत्संग वाणी में फरमान आया, परमार्थी शिष्य को, सच्चा प्रेम, विश्वास, आज्ञा पालन, मनमति का त्याग, विकारी रंगों की कुर्बानी करनी है, यह इन्सानी जन्म का मूल्य है, बार-बार मिलने वाला नहीं है, आपजी ने कहा, जो भजन सिमरन के भंडारी सतगुरु हैं, वे अटल बक्शीश देते हैं, सच्चे प्रेम का पूरा साफ पहलू, विश्वास है, जिस तरह हम दुनियादार जीव, जिससे तन, मन से प्रेम करते हैं, फिर स्वभाविक हमारे हृदय में उनके लिए पक्का भरोसा होता है, विश्वास होता है, विश्वास की कमी का सार अर्थ है, हमारे अंदर सच्चे प्रेम की कमी, श्रद्धा की कमी, इसीलिए आपजी कहते हैं, आपके अंदर पूर्ण विश्वास होना चाहिए, कि हरिराया सतगुरु के द्वारा बक्शी प्रेमामय भक्ति एवं उनके मार्ग दर्शन से उत्तम लाभ मिलेगा, फिर मन माया की जो होली है, उससे छुटकारा संभव है, भगत प्रहलाद की तरह, भक्ति को अडिग रखो-

भगत पहलाद भगति ते प्रगटा

चाहे आप सेवक हो, सिमरन-ध्यान वाले हो, सत्संगी हो, विघ्न आए, या उतार-चढ़ाव, रूकावटें आऐं, तो हम पीठ न फेरें, श्रीचरणों में रमे रहें, सतगुरु भगति की राह में सूरमा होकर चलें, कायर होकर नहीं, सतगुरु चरण कमलों का कायल होके, सच्चे प्रेम में इक चित्त इक हो लगन करो, दुविधा चिन्ता की बात छोड़ो, फिर हर एक सत्संगी को अंतर के भेद मिलते हैं, आप उनसे फायदा उठाओ। रंगरेज सतगुरु से आतम को रंगने का भेद पा अपनी आतम को अमीठे रंग में रंगने का यत्न करो।

हरिराया सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी हरे माधव अमृत वचन पीयूष उपदेश 822 में फरमाते हैं, जगत में आप देखें तो हर कोई विकारों द्वैत के सतरंगी रंगों में रंगा रहता है, ये इंद्रियों के लुभावने रंग बाहर से मनमोहक लगते हैं पर तह में नीरसपन ही है। ऐसे रंगों में रंगे जीव आवागमन के चक्र में भटकते हैं।

ऐ प्यारों! सतगुरु भगति, नाम भगति के रंगों में रंग रूह को आंतरिक आनंद प्राप्त होता है, आवागमन कट जाता है, सो असल शाश्वत रंगों से जुड़ सात्विक होली मनाएं।

O dear! Immersing in the colors of meditation and devotion towards Lord True Master, a soul attains pure bliss and is saved from wandering in the cycle of births and deaths. Thus, color yourself in the true eternal colors and celebrate the real Satvik Holi.

गुरुवाणी में वचन विलास की महिमा की, जिनके चोले रतड़े प्यारे की वाणी फरमाई गई-

जिनके चोले रतड़े प्यारे, कंत तिनां कै पास।
धूड़ तिनां की जे मिलै जी, कहु नानक की अरदास।
एहु तन माया पाया प्यारै, लीतड़ा लब रंगाये।
मेरे कंत न भावै चोलड़ा प्यारै, किउ धन सैजे जाये।
हउ कुर्बानै जाउ मेहरबाना, हउ कुर्बानै जाउ।
हउ कुर्बानै जाउ तिनां कै, लैण जो तेरा नांउ।
लैण जो तेरा नांउ तिनां कै, हउ सद कुर्बाने जाउ।
काया रंगण जे थिये प्यारै, पाईयै नांउ मजीठ।
रंगण वाला जे रंगे साहिब, ऐसा रंग न डीठ।
आपै साजै आपै रंगे, आपै नदरि करै।
नानक कामण कंतै भावै, आपै ही रावै।

सारी रचना उस करतारे पारब्रह्म के हुकुम आज्ञा रंग से रंगी है, आतम उस अटल पुरुख, रंगीले करतारे पुरुख का अंश है, जब आतम काल देश में आई, तब वह जकड़ गई, काल मन माया इन्द्रिय रंगों में, फिर आतम भटककर, असल मूल रंग खो चुकी। हरिराया संत दयाल सतगुरु ऐसे अमीठे रंग को उड़ेलने वाला, आतम को अपने मूल रंग में रंगने वाला रंगरेज है और वह रंग केवल, वक्त के पूरे हरिराया सतगुरु के पास है, पारब्रह्म की भक्ति का, ऊँचे से ऊँचे देश का। जब माया इन्द्रिय रंगो में भटककर, रूह अपने असल मूल रंग में लौटना चाहती है, वह अपने असल को पाना चाहती है, तब रूह कहती है, हे प्रभु! मुझे ऐसा पूरा संत मेलो-

जिनके चोले रतड़े प्यारे, जिनके चोले रतड़े प्यारे

मुझे उनके श्रीचरणन की धूल मिले-

धूड़ तिनां की जे मिलै जी, कहु नानक की अरदास

ऐ रब के अंश! यह मायावी तन पाकर (लीतड़ा), अब रंगाऐं, हर किसी जीव के अंदर यह बात उमड़ती है, कि जिन्दगी में हमने सारे रंग देख लिए, सारे विकारी रस भोग लिए, पर सुख तो मिला ही नहीं, हताशा, निराशा मायूसी ही पाई, फिर स्वप्न में भी स्वप्न के दृश्य नहीं मिलते, सत्ता मिली, धन मिला, थक हारकर कह उठे, मुझे ऐसे सच्चे इकरस रंग में रंगने वाला सतगुरु मेलो, फिर कहा, क्या कहा-

हउ कुर्बानै जाउ तिनां कै, लैण जो तेरा नांउ

ऐसा रंगरेज सतगुरु मेल, फिर सतगुरु साध-संगत से जुड़कर, सारे मनमति विकारों से मुख मोड़, सब कुछ कुर्बान करने को तैयार हूँ, ऐ मेरे माधव सतगुरु! मेरी आतम को रंग दे। सत्संग में बैठी संगतों! यह जीवन का वाक्या हर एक शिष्य के साथ होता है, सतगुरु हर किसी के दिल की हालातें जानते हैं, इन वचनों को सुन आप सभी के अंदर जरूर ऐसे विचार उभरते होंगे, यह सत्य ही तो है, कि आज हमें रंगण वाले रंगरेज़ हरिराया सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी मिले हैं, हम सभी के ऊँचे भाग्य कि रंगरेज सतगुरु मिला है, जिन्होंने हम सब पर, अणखुट किरपा मेहर, आशीष कर, साधसंगत, शरण में बिठाकर, सेवा सत्संग सिमरन ध्यान का इकरस का अमीठा रंग बक्शा है, जिससे आज हर एक आतम रूह यह कह उठी है-

सतगुरू है रँगरेज, चुनर मोरी रंगि डारी
स्याही रंग छुड़ाइ के रे, दियो मजीठो रंग
धोये ते छूटे नहीं रे, दिन दिन होत सुरंग
भाव के कुण्ड नेह के जल में, प्रेम रंग दइ बोर
चसकी चास लगाइ के रे, खूब रंगी झकझोर
सतगुरू ने चुनरी रँगी रे, सतगुरू चतुर सुजान
सब कुछ उन पै वार दूं रे, तन मन धन औ प्रान
कहै कबीर रँगरेज गुरू रे, मुझ पर भये दयाल
सीतल चुनरी ओढि़ के रे, भइ हौ मगन निहाल

हे मेरे रंगरेज़ हरे माधव गुरु महाराज जी! आपजी ने मेरी आतम रूह रूपी चुनरी को जगत के काले रंगों से छुड़ाकर शाश्वत निर्मल मजीठे रंग में रंग दिया, ये तो धोने से भी नहीं छूटता और दिनों दिन चढ़ता जाता है। हे मेरे चतुर सुजान सतगुरु! आपजी की मुझ पर जो अनंत दया रहमत हुई है, मैं अपना तन मन धन प्राण सर्वस्व आप पर वार दूं, अर्पण कर दूं तो भी आपके उपकार कहाँ चुका सकूंगा। आपजी के नाम प्रेमा भक्ति के शीतल रंग में रंगकर मेरी रूह निहाल निहाल निहाल हो उठी है।

गुरुबाबल जी बड़े प्यार सत्कार से, सारे राज खोलकर वाणी में आपजी ने बक्शे, पूरण साध-संगत से जुड़कर अनन्य भाव भक्ति का रंग कमालो, पूरन साधू, परमेश्वरी नूर, गुलाबी नूर की जीवन मुक्त घाटी का साहूकार है, वह आतम को अजर अमर रबियत की होली का खेल सिखाता है, दुनियादारों को वो आँखें नहीं, क्योंकि उन्होंने मन रंग या बाहर और बाहरमुखी होली कर ली।

आप हुजूर साहिबान जी आतम नाम की प्यारी होली मनाने का पावन संदेश, सत्संग शबद वाणी के जरिए दे रहे हैं, जी आगे-

।। मद भ्रम मनमत त्यागो, सतगुरु संगत मनाओ अमीठी होली।।
।। दास ईश्वर सदा कहत है।।
।। मद का रंग चढ़ा जाको, से चौरासी में मनाए होली।।
।। गुरुमुख रमै सतगुरु संगत, आतम नाम प्यारी होली।।

हरिराया सतगुरु जी फरमान दे रहे हैं, ऐ शिष्य! इस मन माया की होली में तूने कई जि़ंदगानियां गुजार दीं। ऐ रब के अंश! जि़ंदगानी बेशकीमती है, पर न जाने तूने कितनी जिन्दगानियां गफलत में सोकर गुज़ार दीं-

मद भ्रम मनमत त्यागो, सतगुरु संगत मनाओ अमीठी होली

ऐ सुरति! अब तो जागन की बेला है, साचे रंग में रंगने की बेला है, सतगुरु रंगरेज़ मिला है, भर भर कर आतम को भिगा लो। आपजी फरमाते हैं-

दास ईश्वर सदा कहत है
मद का रंग चढ़ा जाको, से चौरासी में मनाए होली
गुरुमुख रमै सतगुरु संगत, आतम नाम प्यारी होली

अब जो चमेली के बागों में गए उन्होंने महक पाई, वे बू से अलग हुए, उसी प्रकार जो हरिराया सतगुरु की शरण में आए उन्होंने गुरुमति के रंग, आत्मिक खुशबू पाई और बू यानि मनमति के रंगों से अलग हुए और हरिराया सतगुरु के प्रेम में, मतवाले हो गए, सतगुरु भगति का प्याला गटक-गटक कर पिया, सतगुरु शबद सिमरन-ध्यान के अभ्यास से विकारी रंग उतरते गए, प्रगट दयाल का अमीठा रंग चढ़ गया, ऐसे रंग में रंगकर, खुदाया रब्बल का रंग लग गया, फिर ईमान-ऐ-हक की जात जाग उठी।

भजन सिमरन के भंडारी सतगुरु, धरा जगत में सभी आतम रूहों के कल्याण के लिए आते हैं, आदिकाल से फैले भरम गढ़, कुरीतियों, गहरे आडंबरों को तोड़, एक एकस का परम भेद देकर रूहों को उबारते हैं।

साधसंगत जी! जैसे-जैसे भगत शिष्य, गुरुमुख भाव से, मन वचन कर्म से एक होकर सतगुरु की राह पर चलते हैं, वैसे-वैसे सतगुरु मेहर से आतम पर अमीरल न्यारा अमीठा रंग चढ़ता जाता है। इस राह पर जात-पात का कोई भेदभाव नहीं, आप चाहे सिंधी हो, मराठी हो, गुजराती, जैन, मुसलमान या सिख प्यारे हो, प्यारे सतगुरु का नाता तो केवल रूह आतम से है। पूरण हरिराया सतगुरु की शरण संगति से सर्व सांझी रूहों को आंतरिक भगति के रंग प्राप्त होते हैं, गुरुमुख साधक सच्चे सात्विक रंग, न्यारे अमीठे रंग में भीग जाते हैं। हे प्यारां! सतगुरु भगति, नाम भगति के रंगों में रंग रूह को आंतरिक आनंद प्राप्त होता है, आवागमन कट जाता है, सो असल शाश्वत रंगों से जुड़कर सात्विक होली मनाएं।

साधसंगत जी! सतगुरु श्रीचरणों में, हरे माधव रंगोत्सव मनाने का भाव यही है कि हाजिरां हुजूर साहिबान जी द्वारा बरसाई रहमत किरपा के अमृत अमीठे रंगों की बरखा, गुलाल से हम रूहें असल रंगों में भीगें, सच्ची आतम होली मनाएं। फूलों, पत्तों, कांटों, पहाड़-उजड़, काले-गोरे, ऊँच-नीच आदि सभी में वह इकरस रंग, अदृश्य गुलाल गुप्त है। हरिराया सतगुरु की शरण, भगति-प्रीत से वह इकरस गुलाल रंग बरस पड़ता है। हर पल, हर क्षण मन आनंदित हो दिव्य महक से खिला रहता है, यह सर्व सांझा संदेश है होली पर्व का।

Flowers, leaves, thorns, mountains, deserts, dark, fair, highs, lows, everything has an invisible color of oneness hidden within. We can bathe in that color through the shelter of Lord Satguru and devotion towards Him. Then our mind shall joyously blossom every moment, every second with the divine fragrance, this is the universal message of Holi festival.

सो विनती है रंगरेज़ सतगुरु से, हे मेरे माधवे प्रभु करतारा! मुझे ऐसा इकरस का रंग बक्श, कि केवल सबमें आप ही के रंगे हुए, साजे हुए साज को देखूं, आप नूरानी नदर करें, केवल आप में ही रमे रहें, बहुत दुनिया के रंग भोगे, धन पदार्थ ऐशो आराम में जीवन गंवाते रहे, हे माधव ठाकुर! हमें सच्चा रंग सतगुरु भक्ति का बक्श, सेवा का गुलाल बक्श, सतगुरु प्रेम की मस्ती बक्श, जिससे मैं मस्ताना हो जाऊँ, जिससे तेरे साचे इकरस के रंग में रंग मेरी आतम एकाकार हो जाए, दया करो मेरे सतगुरु जी, मेरे हरे माधव बाबल जी।

।। दास ईश्वर सदा कहत है।।
।। मद का रंग चढ़ा जाको, से चौरासी में मनाए होली।।
।। गुरुमुख रमै सतगुरु संगत, आतम नाम प्यारी होली।।

हरे माधव    हरे माधव    हरे माधव