|| हरे माधव दयाल की दया ||
वाणी संत सतगुरु बाबा नारायण शाह साहिब जी
।। तेरा भाणा सद सद भाये मीठा।।
।। हुकुम साहिब का सद सद मीठा।।
यह संत सतगुरू बाबा नारायणशाह साहिब जी की धुर की वाणीहै, जिन्हें शौक है परमार्थ का या जो परमार्थ में लगे हैं, उन्हें साहिबानजी अनमोल नसीहत दे रहे हैं कि हरे माधव प्रभु ने तुझे इन्सानी जामा बक्शा, सुन्दर शरीर, धन-माल वैभव बक्शा, जन्मों-जन्मों से वह तुझे दिये ही जा रहे हैं और बन्दे तू उनसे लिये ही जा रहा है, सतगुरू बाबाजी फरमाते हैं मालिक की रजा में राजी रहना यहीप्रभु प्यारों के उत्तम, अति उत्तम आत्मिक गुण हैं, उसके प्रेम में मस्त रहें, सेवा, सिमरन, ध्यान में रमे रहें, कभी दुखी, कभी सुखी, कभी यश,कभी अपयश, सब उसी का जानकर उसके प्रेम में मस्ताना मस्त होकर रमे रहें, ऐ सन्तों याद रखना उस साहिब की रजा में सदा टिकने का भाव यह है कि दुख- सुख में हमारा मन कभी न डोले, सदवै स्थिर रहे,उसी प्रभु परमात्मा के सिमरन में सदैव रमा रहे इसलिए हे बन्धुओं!इस मन को मोड़ने का पुरजोर यत्न करें। हमेशा याद रखें ना तो हमें धर्म छोड़ना है, ना हीं पुरषार्थ से हटके रहना है, सारे सांसारिक पुरूषार्थ धर्म निरवाह कर उस करीम की कला में राजी रहना है तथाजी हुजूर, प्रेम भाव सदैव अंतर में धारण करना है, सब कुछ मालिकप्रभु हरे माधव के हुकुम से हो रहा है, चिन्ता ना करें।
आप हाजिरां हुजूर सांई जी ने रूहों को अंचित रहने का बड़ा ही सुन्दर उपदेश दिया है-
मतकर चिंता मतकर चिंत।
सदा कर तू चिन्तन अचिन्त का भाई।
चिन्ता ते कछु कार्ज न सवं रे, चिन्ता कारण सब जगत हुआ दुखदाई।
मेरे माधव सबको दिया रसक रजाई।
मेरे माधव सबको दिया रसक रजाई।
दास ईश्वर अचिन्त भवंरा, सतगुरू चरण किया प्रेम औरा औरा।
तिन चरणन की छावं बैठ, मैं रहूँ सदा अचिन्त अविचल मुकामा।
ऐ सन्तों! जो खदु कुल-ए-मालिक हैं, वे सदैव उस प्रभु परमात्मा जो ताकतवर रहमत का साहिब है, अनेक रंगों में दिव्य ढंगों में यत्र-तत्र सर्वत्र विराजमान है, उसी की रजा-ए-हक में रहते हैं, वेप्रेमी रूहों को उस प्रभु की दिव्य विस्माद कला, भाणे तथा शुक्र में चलने की नसीहत देते हैं। जरा सोचें, क्या हम सभी उसी की रजा में राजी हैं? हमने रूहानी रजा को अभी समझा ही नहीं। पूर्ण सन्तों ने सच्चे मार्ग की तालीम दी, क्योंकि वे उसी में रमे-रते हैं, परन्तु हमारेअन्दर उस साहिब का प्रेम, साध-संगत के साथ सच्चा इश्क प्रेम नहीं है। जब हम इश्क प्रेम में भीगेंगे, तभी हमें सारी रचना व वात्सल्य प्रेमका अनुभव होगा। फिर आत्मा सदैव उसी के अमृत भाणें में भीनी-भीनीसी रमी रहती है, क्योंकि इस भाणे के अन्दर ही उस करतार,सजृणहार का लाबयान नूर महक रहा है।
संत कबीर जी ने सत्य फरमाया-
रवि को तेज घटै नहीं, जो धन जुड़े घमण्ड।
साध वचन पलटै नहीं, पलट जाए ब्रम्हण्ड।।
सतं जी ने समर्थ साध सन्तों की रजा का बडा़ अनूठा जिक्र किया कि जिनके वचन से पलट जाए ब्रम्हाण्ड यानि वचनों में पुर्ण सामरथता।प्रभु मालिक पावन वचनों को आत्मसात कर रूहों को सिमरन का हुनुर बक्शते हैं, सदैव उसी की रजा में राजी रहते हैं, हम दखें, आलादरवेश तो उसी प्रभु साहिब के घट-घटता में रजा ही रजा को जान विमल, अमल, अकल रूप बन हमें महकना सिखाते हैं। इन्सान के कहेसे कुछ नहीं होता, आज सभी दुखी इसीलिए हैं कि हमें उसकी रजामें राजी रहना आता ही नहीं, बेशुक्रे हो कभी इस दर, तो कभी उस दर भटकते हैं, पर प्यारे सदैव याद रखें उसी के भाणे रजा में सच्ची खुशी व स्थाई आनन्द है। जो सदा उसी के हुक्म-ए-रजा में राजी हैं वही सच्चे इन्सान प्रभुभगत हैं,वे कभी भी अपने स्तर मन, बुद्धि की दुनियादारी के वशीभूत हो, उसकी रहमत की शिकायत नहीं करते। दुख भी तेरा सुख भी तेरा का भाव रख, प्रभु सतगुरु का भाणा स्वीकार करते हैं।
बाबाजी सत्संग शबद वाणी में फरमाते हैं, जी आगे -
।। जैसी चलावै कार तैसी मैं करूं कार।।
।। मन डोलै न भाणा तेरा निज घर बोले।।
।। जैसी दे तू मत, वैसी पाऊँ मैं गत।।
बाबाजी फरमाते हैं कि हे परमात्मा! आप तो जाननहार हैं,भूत-भविष्य के ज्ञाता हैं, आपके श्री चरणों में विनती है कि ‘‘जैसी चलावै कार तैसी मैं करूं कार’’ अर्थात हम सदैव आपके भाणे में राजी रहें, आप हमसे जैसा कर्म कराऐं, जिस हाल में रखें, हम सत-सत करउसे निभाएं। वाणी में भी आया है ‘‘जैसी दे तू मत, वैसी पाऊँ मैं गत,जैसी दे तू मत, वैसी पाऊँ मैं गत’’ अर्थात आपके द्वारा बक्शी मति केआधार पर चलने से ही हमारा उद्धार होगा।
साधसंगत जी! सतगुरु के प्यारे शिष्य, भगत, प्रेमी अपने-अपने अनुभव, अपने प्यारल के कुर्ब करुणा के ज़िक्र , अपने हुजूर बाबल की दया रहमत के वृतान्त बतलाते रहते हैं, अनगिनत वृतान्तों का ज़िक्र साधसंगत बयां करती है। प्रगट या अप्रगट रूप से आप दयालु हरे माधव बाबाजी विरद करुणा उन पर करते हैं। गुरु गरीबनवाज है,अपने शिष्यों की लाज रखना उनका बिरद है। वह अपने शिष्यों की लाज इस संसार में तो रखता ही है, पूरा सतगुरु शिष्य की मौत के समय, जो सबसे अधिक कष्ट का समय होता है, उस समय भी वह स्वयं हमारे अंग-संग होता है, वह रूह को स्वयं आ कर ले जाता है,शिष्य की सुरति को साथ ले जाता है। इस दुनी जहान के लोगों ,मित्रों, रिश्ते नातों, वस्तुओं का साथ कच्चा अस्थिर है। ये सभी,कठिनाई कष्टों के समय हमें छोड़ देते हैं पर पूरा सतगुरु शिष्य का सच्चा हितैषी होता है, सदा अंग-संग होता है, जीने के वक्त भी, मृत्यु के वक्त भी और मृत्यु के बाद भी।
सतगुरू बाबाजी हमें चिताते हुए होशियार कर रहे हैं कि उस मालिक ने हमें इन्सानी जामा दिया, अनमोल स्वांसें बक्शीं, जिसके लिए देवी-देवता भी तरसते हैं, वह परमपिता परमात्मा हमें मिला,कामिल मि शर्द की दया महर से। पूर्ण सतं सतगुरू की शरण-सोहब्बत मिली, जिससे हमें सेवा, सिमरन, भक्ति, ध्यान की इस ऊँचाई तक पहुँचने का रूहानी इल्म भी मिला। बड़े-बड़े ऋषि महर्षि भी उस साहिब-ए-दीद न्यारे माधव पुरुख में नहीं मिल पाते। ऐ प्यारों! हम जरा गौर करें यह सारी रहमत तो रहमान के नूर सतगुरू साहिबान जी की चरण-शरण से प्राप्त होती है। यह रजा बड़ी निराली अति उत्तम चैतन्य भक्ति है, जिस दिन हमारे अन्दर सदा शुक्र-सदा शुक्र के भाव होते हैं, उस दिन मन इन्द्रियां भी अमृत नाम सिमरन में मस्त हो जाती हैं। फिर रूह उस माधव यानि प्रभु करतार की अभेदता परम निज कैफियत में मस्त हो हकीकत से रूबरू हो जाती है, यह सारी परम कृपा की बारिश वक्त के आला पूरन सतगुरु ही कर सकते हैं,कर रहे हैं और करते रहेंगे।
ऐ रब के अंश! जिस मारग से यह रूह इस लोक से उस लोक तक गमन करती है, तब वह अकेले रहती है, लेकिन जो सतगुरु नामके बौरे हैं, अभ्यासी हैं, उनके साथ तो सतगुरु नाम रूप में अंग संग हैं और उनकी राह बड़ी सुहेली हो जाती है, प्यारे पूर्ण सतगुरु अपनी विरद करुणा दरगाही कलाओं से रूहों का कर्मबल ढीला कर उस रूह को मुक्त कर देते हैं, यह सतपुरुखों की अलस्ती दुनिया है, शिष्यों भक्तों को तेरा भाणा मीठा लागे को भाव दिल में पिरोना चाहिए।
तभी हाज़िर हुजूर सतगुरु साहिबान जी ने पावन शबद वाणी में फरमाया-
केते तरै उबरै ऐह नाम सिमर सिमर
दीन दयाले शरण नाम देवो, मन की तपत सब छुटै
सत पद में आतम रमै, रमैया सतगरु मोहे अमतृ नाम बक्शो
कहे दास ईश्वर सुनों भक्तों, नाम भगत सार है
हरे माधव रब्बल यह भदे पग्रटाया, हरे माधव रब्बल यह भदे प्रगटाया
सत्संगियों! कमाई वाले हरिराया रूप सतगुरु के बक्शे नाम से कितने तरे, गणना नहीं, कितने उबरे गणना नहीं, आरै कितने जप-जप कर उबरेंगे, पता नहीं, अगणित अतुल्य है, गणना नहीं अतुल्य है,याने-
केते तरै उबरै ऐह नाम सिमर सिमर
सिमरन ध्यान कर आज नहीं तो कल तुम भी तर जाओगे, जो सतगुरु संगत की नाव में बैठा, नाम की वीज़ा ली, वो दुनिया रूपी सागरों को पार करेगा, जो किनारे पर बैठ गए, वो मूढ़ कैसे उबरेंगे,इसीलिए नाम जपो, नाम सिमरो, साटिक ध्यान को गाढ़ा कर भव सेपार हो, बात सत्य है, बात अकथ है, ‘‘केते तरै केते उबरै’’।
हाजिरां हुजूर सांई जी बड़ी सच्ची बातें कहते हैं, आशिक अपनेप्यारे महबूब बाबल प्रभु दातार का शुक्र कर उसी के सार में उसी साहिब करीम महबूब का रूप बन जाता है।
सतगुरु बाबाजी सत्संग अमृत वाणी में फरमाते हैं, जी आगे
।। कहे नारायण शाह सुनो भाई भक्तों।।
।। जिना भाणा मीठा न लगे ।।
।। से मंद खुवारी भ्रमे जन्में।।
शहंशाह सतगुरु बाबा नारायणशाह साहिब जी समझाते हैं इस संसार में वही जीव पुर्णयात्मा है, जो सदैव सतगुरू जी के भाणे में राजी रहे, उन्हें ही सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हुई। साधसगं त जीओ! जीवन की क्षणभगं रुउपमा का सदपुयागे कर लें, ऐसी राह पर चलें,ऐसा सत्य घट में पग्रट हो, जो मिटे नहीं याने हरे माधव अजान सतपरुख। पुर्ण संतों के पास, ये सारे भदे हैं, लिकन जबहम ऐसी चाह शाकै रखें! वे खालेकर सत्य कहते हैं, कभी यथार्थ हाकेर कहते हैं, कि रते के महल मत बनाओ आरै इसका गुमान क्या करना,कागज की नाव बनाकर मत चलाओ, ये डबूनी है, ऐसी जिन्दगी का क्या गुमान करना, क्योंकि जीवन तो क्षणभगुर है।
पूर्ण संतपरुख कहते हैं, एक नाव ऐसी भी है, जो हमें भवसागर सेपार ले जाती है आरै वह नाव है,सिमरन-ध्यान, जो कि वक्त के परूे हाज़िर सतगरु जागतृ तवज्जू दीक्षा के समय हमें देते हैं, फिर हमारी चतेना ऐसे जागतृ तजवज्जू के ध्यान में जटुकर, अपने निज घर में पहँचुजाती है, ऐसे सिमरन-ध्यान की नाव अगर हम बना लें, तो सहज ही हम भव से पार हो जाते हैं ।
साधसंगत जीयो! आज का भावपूर्ण दिवस, हरे माधव परमार्थ पंथ के महान उन्नायक हाजिरां हुजूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जीएवं आप हम सभी की परम पूज्य गुरुमाता हेमादेवी जी की स्मृति में समर्पित है।
हमारी पूज्य गुरुमाता जी ने 26 जून 2014 को निर्वाण पुरुख में विलीन हो हरे माधव धाम में गमन किया। आपकी भोली-सी सूरत समत्व भाव को बिखेरती है, आपका निज स्वभाव सादगी, माधुर्य,संतोष एवं अपनी निजता ममें सदा मगन रहना था। आपकी रहणी-करणी हम सभी के लिए सदा आदर्श प्रेरणा स्त्रोत है।
ममतामयी माता कोमल हृदय का प्रतीक हैं, श्रद्धा प्यार विश्वास,सहनशीलता, कर्त्तव्यनिष्ठा का सागर है, वह करूणा प्यार का भण्डार,ऊँचा संस्कार है, जीवन पयर्न्त माँ का कर्ज चुकाना सम्भव नहीं। परम श्रद्धेय गुरुमाता श्रीमति हेमादेवी पेसवानी जी का सम्पूर्ण जीवन प्रेम प्यार सदाचार का पर्याय रहा, जीवन के प्रत्येक श्रणों में आप माताजी धैर्य का परिचय देते हुए सदा शान्त हंसमुख एवं प्रभावशाली व्यक्तित्वकी धनी बनी रहीं। हम सब खुशकिस्मत हैं, कि हमारे सिर पर सदैव माताजी का ममतामयी हाथ रहा।
मानवीय गुणों एवं संवेदनाओं की महामहिषी गुरु माता, श्रीमतिहेमादेवी पेसवानी का के देह विलय के दिन विश्वास ही नहीं हो रहाथा कि हम ममतामयी, करुणामयी गुरु माता के साये से महरूम हो गए, जो अपने प्रेम करुणा से, सदा हमारी सार सम्भाल करती रहीं, ध्यन है ऐसी पाक पावन आतम, उसका जीवन, जिसके वियोग में प्रकृति को भी बिलखना पड़ा, हजारों लोगों ने देखा सुना, जब करुणामयी, पूज्य गुरु माता श्रीमति हेमादेवी पेसवानी हरे माधव परमलोक में गति कर गई। यह हृदय विदारक समाचार सुन सभी स्तभ्ध रह गए।
माँ ही मंदिर माँ ही पूजा, माँ पूजा की थाली
बिन माँ के जीवन ऐसा, ज्यों बगिया बिन माली
परम श्रद्धेय गुरुमाता श्रीमति हेमादेवी पेसवानी जी का सम्पूर्ण जीवन महानता का परिचायक है, आपकी जीवन यात्रा संयम के दिव्य मार्ग पर समर्पित व अनुशासित रही, यह ईश्वर की असीम कृपा व हमारा सौभाग्य रहा, कि उस परम स्नेही गुरुमाता का हमें सानिध्य मिला व स्नेह भरा हाथ, सदा हमारे सिर पर रहा, आपकी सादगी पूर्णसाधारण बातें भी प्रेरणा से परिपूर्ण होती, आप सतत् कमर्परायण कल्याणभाव, सहज ज्ञान व भक्ति की प्रदीप्त ज्योति स्वरूप थी, पूज्य गुरुमाता जी स्नेह व त्याग की प्रतिमूर्ति थी, उनका जीवन हम सबके लिए आदर्श है।
हमारी पूज्यनीय गुरुमाता, हेमादेवी जी अपने नरू -ऐ-चश्म दिलके कलेजे से बेहद प्यार, इतना गहरा लगाव, कि दिन-रात मन में केवल, सुध-बुध अपने प्यारे लाडले पुत्र की, जो हम सारी संगतों केदुलारे, हमारे सच्चे पातशाह जी हैं।
अंजामों की शहशही अजन्मी होती है, आज भी जब अजन्मा सतगरु अपनी ज्याेतियों के रूहानी प्रकाश का भण्डार खाले ते हैं,उनकी अजन्मी रूहानी शक्तियां,उनके रूहानी भदे समझाते हैं, यही खले उस वक्त नहीं समझ पाए थे, क्योंकि हम सबके ऊपर मायावी रगं चढा़ था, जिससे उस वक्त हम नहीं समझ पाते थे, लिकन आज जब हुजूर बाबाजी बारीक से बारीक सारे परम वचनों के रहस्य खोलते हैं, तो वे सारे खले आंखों के आगे उभर आते हैं।
प्यारे सत्सगं प्रेमियों! जब आप हम सबकी परम पूज्य गरुमाता का दहे विलय हुआ, उसी दिन दहे विलय से पूर्व आँखों देखा यह वतृातं नैनपुर वासी माता ने अपनी जुबानी बताया, नैनपुर शहर में जब माताओं के हरे माधव सत्सगं का समापन हुआ, तब मैं एवं मेरै साथ एक आरै बहन अपने घर की आरे जा रही थी, तब मैंने आकाश में देखो , बहतु ही सुंदर डोली, फूलों से सजी हुई, आकाश में गति कर रही थी, तब मैंने अपने साथ वाली बहन को कहा, देखो डोली आकाश में चल रही है, हमने शाम को 7ः30 बजे आकाश से वह दिव्य डोली जाते हएु देखी, तब उस बहन ने कहा, बड़े भाग्य होंगे, उसके, जिनको यह डाली लने जा रही है, बडी़ ही नके कमाई वाली पवित्र आत्मा होगी, जिनको लिवाने के लिए प्रभु सजी सवंरी डोली भजे रहे हैं आरै फिर उसमें बिठा हरे माधव लाके ले जाऐंगे,हम दोनों ने डोली को नमन किया आरै यही विनती की, कि हे सतगरु जी! हमें भी ऐसी नके पवित्र रूह बनाना, कि हमें काल न लेने आए, आप सतगरु बाबल आऐं, आपका सवेक काल आपजी के हकु से हमारे लिए भी ऐसी सुंदर डोली लकेर आए, जिससे हमारी रूह भी हरे माधव अगम लाके में गति कर।
ऐसा दिव्य नजा़रा देख, हम दोनों अपने-अपने घर पहचुँ गए आरै अचानक रात्रि 9ः00 बजे कटनी से यह शाके सचूना मिली, कि पूज्य गरुमाता हेमादेवी 8ः30 बजे हरे माधव परमधाम में गति कर गई हैं।
यह हृदय विदारक खबर सनु मैं अवाक रह गई आरै उसी समय मेरे सगं जो माता थी, उसके पास गई आरै बताया, कि देखो आकाश से वह दिव्य डोली हमारी प्रेमामयी, ममतामयी गरुमाता जी को लेने जा रही थी।
सो प्यारे सत्यसंगियों दिव्य परुख, कमाई वाली प्रेमी रूहों के अतंकाल के समय, पारब्रम्ह अकह करतारा, सतगरु स्वयं आकर, उन्हें अपने पास बुलाते हैं, अपने साथ ले जाते हैं, उन प्रेमी रूहों के अतं समय में काल परून सतगरु के हकुमु आदेश से ही वर्तण करता है। कि-
आयेगा जब रे बुलावा हरि का, छोड़ के सब कछु जाना पड़ेगा
साथ चलेगा नाम गरु का, आरै तो कछु न जाऐगा
आयेगा जब रे बुलावा हरि का,छोड़ के सब कुछ जाना पड़ेगा
आप गुरुमाता जी के जीवन में,हम निहार के देखें,आपजी ने हर एक रिश्ते को कितनी सहजता, सहनशक्ति, महान धीरज से हर एक खटास को, अमृत का प्याला मान कर, तेरा भाणा मान निभाया।आपजी का पूरा का पूरा जीवन तपोमय ही था, जो कि संत कबीर जीने भी कहा है-
गृहस्थ में जो रहे उदास,कहे कबीर तां को मैं दास
दहे छोड़ने से पूर्व,एक बार गरु माता जी, अपने प्यारे नरू -ऐ- चश्म,सच्चे पातशाह जी के साथ भोजन कर रहीं थीं, उस समय वचन विलास की चर्चा हो रही थी, आप गुरुमाता जी के वचन, बेहद आगाध ममता युक्त, मर्म युक्त, आध्यात्मिक गुणों से परिपूर्ण रहते।
बाबाजी ने उस दिन आप गुरुमाता जी से, जिन्हें आप मम्मी कहते, आपजी ने फरमाया मम्मी! नीम मीठी हो या कड़वी, हमें क्याकरना चाहिए, तब आप गुरुमाता जी ने कहा, सबका भला हो, चाहे वह मीठे स्वभाव का हो, या कड़वे स्वभाव का हो, सभी खुश रहें, सभी मालिक प्रभु के बने हैं, बेटा! आपको केवल सूर्य के समान, सबको प्रकाश देना है, सभी का भला करना है। कर्मगत के आधीन सबका अपना-अपना स्वभाव है। बेटा! आपको मेरी तरफ से यही आशीष है,आप सदैव जीवों का भला करते रहें।
इस संसार में कमाई वाली आत्मा की यह पहचान है, कि उन्हें सचखण्ड जाने के पूर्व, अंतर में यह आभास हो जाता है, कि कब यहनश्वर देह छोड़कर प्रभु के धाम में जाना है, उस वक्त भले ही हम उन इशारों को ना समझें, लेकिन बाद में याद कर, हृदय भर आता है, ऐसेही गुरुवार के दिन, जब गुरुमाता जी प्रातः उठीं, तो देखा कि पापा ताराचंद जी तैयार होकर, कहीं जा रहे थे, तो माताजी ने कहा, हमें अब जाना है, हमें अब जाना है, यह सुन पापाजी स्तब्ध रह गए, औरपूछा, कहाँ जाना है, तब माताजी कुछ श्रणों के लिए मौन हो गई, फिर अनायास ही कहा, आज मुझे मेरे बबू (साईं जी), मेरे दिल के टुकड़े के पास, हरे माधव वाटिका ले चलिए, तब पापाजी ने कहा, हां ले चलेंगे,ले चलेंगे किसी कारणवश पापा ताराचंद जी घर विलम्ब से पहुँचे और गुरुमाता जी को नहीं ले जा पाए और आप पापाजी ने गुरुमाता हेमादेवी जी से कहा, आज थोड़ी देर हो गई, बाद में चलेंगे, गुरुमाता जी का हुजूर बाबाजी से अति स्नेह, दुलार वात्सल्य प्रेम रहता, पूरन सतगुरु तो घट-घट के जाननहार हैं, गुरुमाता जी की कशिश देख, बाबाजी ने एक सेवक से कहा, जाओ, घर से मम्मी जी को ले आओ, आज्ञा पाकर सेवक जब घर पहुँचा, तो उसने देखा, गुरुमाता जी बाबाजी के स्परूप को एकटिक निहार रही थी, यह देखसेवक ने कहा, गरु माता जी, बाबाजी ने आपको याद किया है, यह सुन माताजी के आँखों से आंसू छलक आए और आपजी ने दादी अम्मां से कहा, अम्मा जी मैं दरबार साहिब जाऊँ। तब अम्मां ने कहा ठीक है, तारे सां गडु वन्यु याने पापा ताराचन्द के साथ जाओ, आप गुरुमाता जी को पापा ताराचन्द जी गुरु दरबार साहिब लेके गए।
गुरुमाता जी जैसे ही दरबार साहिब पहुँची, आप बाबाजी ने मम्मीजी को गले लगाया और फरमाए, इतना वात्सल्य, इतना प्रेम, हम भी आपको आज सुबह से बहुत याद कर रहे थे, मम्मी ने प्रेम करुणा, दुलार भाव से कहा, बब्बू आज मैं अपने हाथों से आपको भोजन खिलाना चाहती हूँ, तब बाबाजी ने मुस्कुराकर कहा, जी जी, गुरुमाता जी ने आपजी को प्रेमपूर्वक, अपने हाथों से भोजन कराया, माँ जब हमारे पास रहती है, तो प्रेम का खजाना हमपर लुटाती है, और आज गुरु माता जी अपना सम्पूर्ण प्रेम अपने बब्बू (साईं जी) पर लुटा रही थीं। यह देख ऐसा प्रतीत हो रहा था, कि मैया यशोदा, कन्हैया को अपने हाथों से माखन खिला, प्रेम लुटा रही हो। उस समय मानो गुरुनानक देव जी को माता सुलक्षणी, माखन युक्त वात्सल्य बरसा रही हो, ममता का वह मंगल कलष है, जिससे बहने वाली प्रेम और संस्कारों की रसधारा ने, हमारा भरपूर पोषण और पलवन किया है।
भोजन के पश्चात् भी माताजी देर तक आपको निहारती दुलारकरती रहीं, आपकी दोनों बेटियां, छोटी बेटी आशू बहन, बड़ी बेटी पिन्की बहन, छोटा बबलू सोम और निहाल, लगभग सवा चार बजे तक आप वहीं बाबाजी के संग साथ थे, तब बाबाजी फरमाए, आज घर नहीं जाना है, तब गुरुमाता जी ने कहा, पता नहीं आज क्यों आपको छोड़कर जाने की इच्छा नहीं हो रही, जी करता है, बस यहीं बैठी, आपको निहारती रहूँ, तब बाबाजी फरमाए, मैं तो सदा आपके साथ हूँ। कुछ समय के पश्चात बाबाजी ने सेवक कैलाश को आज्ञा दी कि मम्मीजी को घर छोड़ आओ। गुरुमाता जी ने साईं जी से कहा, अब मुझे आज्ञा दें, तो मैं जाऊँ ,बाबाजी ने वचन फरमाये, जी, जी।
गरुवार शाम को जब आप गुरुमाता जी को देह छोड़ने की इच्छा हुई, देह छोड़ने के पूर्व आप परिवार के साथ हंस बोल रही थीं, आपजी ने बहु को अपने गले लगाया एवं अम्मा जी का हाथ पकड़कर इच्छा मौज से सोफे में लेट इस नश्वर देह का त्याग बड़ी सहजता सरलता से हरे माधव कह हरे माधव लोक में गती की। कमाई वाली आत्मा सदैव खुद को छिपाए रहती है, जो कि आपके सम्पूर्ण जीवन में हम सभी ने देखा, कुछ समय के बाद दादा आत्माराम खानवानी जी, दादा रामचंद रीझवानी जी एवं कुछ अन्य सेवादार बाबाजी की चरण हुज़ूरी में गए, तब हुज़ूर सच्चे पातशाह जी ने फरमाया ‘‘बड़ा मीठा भाणा, बड़ा मीठा भाणा।’’
आप गुरु माताजी को सदैव ममतामयी, करुणामयी गुरुमाँ के रूप में, स्मरण किया जाऐगा, आपने जीव जगत को, पूरन सतगुरु की अनमोल सौगात बक्शी, जिससे यह सारा संसार धन्य हो गया, हम सब आपके सदैव ऋणी रहेंगे, जिस तरह सूर्य से अमर प्रकाश की किरणें निकलती हैं, वे अमर हैं, उसी प्रकार आपका यह परम उपकार, सदियों तक कायम रहेगा।
हरे माधव प्रभु दाते का बनाया यह खेल एवं भाणा सत्त-सत्तकरना, बंदे जीव का धर्म है। ऐसी ऊँची पवित्र आत्मा के उद्देश्यों का पालन करना ही, उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है। पूज्य गुरुमाता जी के व्यक्तिव एवं गुणों की सुरभि से, समाज व हरे माधव परिवार का पुष्प उद्यान, सदैव सुरभित रहेगा। आपके हरे माधव लोक गमन पर, सभी समाज के वर्गों में शोक, दुख की लहर दौड़ गई, प्रकृति ने भी शोक रूपी आँसू बारिश के रूप में बरसाए।
शुक्रवार को जब आप गुरुमाता जी का पार्थिव शरीर तैयार किया जा रहा था, तभी एक पुन्नी अम्मा आई और रोकर कहने लगीं, कि कुछ समय पूर्व मेरा स्वास्थ इतना ज्यादा खराब था, कि मुझे तीन बार डॉक्टर ने जवाब दिया और तीनों बार मुझे गुरुमाता, जिन्हें मैं प्यार से बेबी कहकर बुलाती, मुझे तीनों बार, आकर बेबी ने कहा, कि उथी-उथी मासी, छाहे, कुछ कान्हे, ठीक आहियो, और तीनों बार मैं उठ खड़ी हुई और मुझे नया जीवन प्राप्त हुआ और आज मुझे वही छोड़कर चली गईं, यह व्यथा सुनाते-सुनाते अम्मां जी की आँखों से झर-झर नीर बरसने लगे।
प्रभु मालिक की असीम कृपा से मानुष जन्म मिलता है, कुछ विरले ही इसे सफल कर पाते हैं। पूज्य गुरुमाता जी ने एक चित्त हो गुरु भक्ति, नाम सेवा कर मानव जीवन को सफल बनाया, जो कि पूज्य गुरुमाता जी के मुख मण्डल पर स्पष्ट नजर आता, तेजस्वी मोहिनी मूरत आज भी आँखों में छायी रहती है, जो हमें गुरुमाता जी की उपस्थिती की अनुभूति कराती है। पूज्य गुरुमाता जी सभी सेवकों, बाल-गोपालों, सेवादारी माताओं बहनों को सदा समझाती समर्पण, निष्ठा, त्याग, बलिदान, निष्काम भावना, निर्मलता के बिना कुछ भी प्राप्त नहीं होता, सुख पाने की इच्छा है, तो सुख को बांटना व त्यागना सीखो। आपजी को सदैव साधसगंत का पूरा पूरा ख्याल रहता, आपजी नितनियम से अपने हाथों से भोजन बनाकर गुरुदरबार साहिब भेजाकरते और गुरु साहिबानों द्वारा बक्शी हुई सेवा को निष्ठा से पूर्ण करते। पूज्य गुरुमाता जी की कथनी करनी में समानता को सभी ने अनुभव किया, जो अविस्मरणीय है।
पूज्य गुरुमाता अपने गृहस्थ जीवन के कर्तव्यों-दायित्वों को निभाते हुए प्रभु मालिक की भक्ति एवं निष्काम सेवा कर संगत को ऐसा सुहिणा लाल दिया, जो आज हम सभी को आत्मीय उद्धार का मार्ग प्रदान कर रहे हैं, जिससे पूरा मानव समाज धन्य हो रहा है। ममतामयी पूज्य गुरुमाता श्रीमति हेमादेवी पेसवानी जी के लाडले पुत्र हमारे प्यारे सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी हरे माधव नाम का अलख जगा, हम गफलत की नींद में सोए जीवों को जगा रहे हैं, चहुँवर्णों को सांझा मारग दे, सेवा, सत्संग, सिमरन, ध्यान का रूहानी मार्ग समता भाव से प्रदान कर रहे हैं।
हे सतगुरू साहिबान जी! हम अज्ञानी जीवों की आपके श्रीचरणों में बारम्बार यही विनती है, हमें ऐसी सुमति ऐसा बल बख्शें, जिससे हम सदैव आपके भाणे में राजी रहकर जीवन यापन करें, शुक्र-शुक्र कर प्रत्येक सुख-दुख में भाणा स्वीकार करें अडिग हो आपकी राह पर बढ़ें। ऐसी दया करें कि हम सभी पूज्य गुरुमाता जी के प्रेरणादायी जीवन से अनमोल नसीहतों के मोती चुनकर अपनी रूह और जीवन को संवार सकें। यह समस्त भू-मण्डल युगों-युगांतरों तक पूज्य गुरुमाता जी का ऋणी रहेगा। आप गुरुमाता जी के श्रीचरणों में हमारा, सारी संगत का दण्डवत नमन, शत्-शत् वंदन, शत्-शत् वंदन।
। । कहे नारायण शाह सुनो भाइ भक्तों। ।
। । जिना भाणा मीठा न लागे । ।
। । से मंद खुवारी भ्रमे जगमें । ।
हरे माधव हरे माधव हरे माधव