|| हरे माधव दयाल की दया ||

वाणी हरिराया सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी

।। भज लीजै रे मना, भज लीजै रे मना ।।
।। हरि जीओ नाम साँचा, भज लीजैरे मना नाम साँचा ।।
।। सगलै धंधे छोड़ दुनी के-2 लाओ सतगुरु नामए ध्याना ।।
।। मात-पिता पुत बंधुआ सारे-2 धन न आवै कौ कामा-2 ।।

पारब्रम्ह सतगुरु पातशाह जी के श्री चरणों में हम सभी भगतों संगतों का नमन वंदन समर्पण, हथजोड हरे माधव हरे माधव हरे माधव। आज के पावन पवित्र सत्संग की प्रभुमय वाणी भजन सिमरन के भंडारी हाजिरां हुजूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी द्वारा, 23 अप्रैल 2021 दोपहर 1 बजकर 20 मिनट पर हरे माधव दरबार साहिब में फरमाई परम प्रकाशी, सर्व सांझी, शाश्वत, नित्य सुख में एकरस होने का भेद देने वाली पावन वाणी है, मिश्री सा फरमान-

भज लीजै रे मना, भज लीजै रे मना

पारब्रम्ह पुरुख सतगुरु, कालखंड में आकर, काल के सराय खाने में आकर मन आतम को होका दे रहे हैं-

भज लीजै रे मना, भज लीजै रे मना
हरि जीओ नाम साँचा-2, भज लीजै मना नाम साँचा

कि ऐ मना! शाश्वत सुखों का तू अंश है, फिर क्यों तू मन-माया का संग कर दुखों में फिर रहा है। ऐ आतम! साचे जागृत सतगुरु की संगति कर फिर तेरे मन की सारी मैल धुलेगी, साचे हरिराया सतगुरु से अमृत नाम को पाकर उसका भजन कर। ऐ मना! ऐसे नाम अमृत से तेरी दुरमत दूर होगी। ऐ मना! मान लो यह प्यारे मिठड़े वचन हमारे। थिर शाश्वत सुखों को बरसाने वाला, हरि सतगुरु जी का साचा मिठड़ा अमृत नाम है, कमाई वाले पारब्रम्ह में अभेदी सतगुरु, जीवात्माओं पर ऐसे अमृत नाम का आलौकिक भजन सुख बरसाते हैं। आपजी ने गहन भजन साधना, व्यापक अमृतमय भरपूर कर फरमाया कि सतगुरु द्वारा बक्शा अमृत नाम हमारे समस्त दुखों का निबेरा करने वाला, दुखभंजन नाम है, तभी धुरवाणी में हुजूर महाराज जी ने फरमाया-

हरि जियो नाम साचा भज लीजै मना नाम साँचा

बाबा! वह पारब्रम्ह अगम पुरुख साचा है, उसका नाम साचा है, उसका अलौकिक शाश्वत दरबार साचा है, फिर साचा हरिराया सतगुरु भी सत्त पद में थिर अखण्ड अडोल भरपूर है। ऐ मना! छोड़ सब मन के बाहरी स्वप्न ख्याल, बस बैठ सच्चे अमृत सतगुरु नाम को भज, पावन अमृत नाम को भज, ऐ मना! तू भी पावन रूप हंस बनने की उड़ान उड़। साधसंगत जी! प्राणीजनों का यह मन युगों-कल्पों से भय, संताप, आशाओं, तृष्णाओं की मायावी बाढ़ से भरा रहता है, ऐसी मायावी बाढ़ में सुनामी ख्वाहिशों में यह मन बहता जा रहा है और उत्तम नर तन, किमती स्वांस, चैदह भवनों का मूल्य भी अर्थहीन, इक स्वांस के आगे बेहिसाब ही रहता है। सांईजन फरमाते हैं, ऐ बाबा! यह मन दुनिया की नाना उलझनों, संतापों से हर क्षण, हर पल भरा रहता है। मन की हालातें देखो, अगर आप शांत चित्त होकर कभी मन को टटोलोगे तो आपको अपने ही मन पर हंसी आयेगी कि यह मन कितनी ही कोरी कल्पनाओं से व्यर्थ घिरा है।

दिव्य पुरुख फरमा रहे हैं, यह मन 96 करोड़ लहरें हर रोज उत्पन्न करता है, जो कमाई वाले पुरुख मन के पार पहुँचे मन की बीमारी की दशा बयां की कहा, अधिकांश 75-80 प्रतिशत लहरें, यह मन नकारात्मकता निगेटिवटी से बंधा रहता है, जब कमाई वाले पारब्रम्ह की शरण प्राप्त हुई, अमृत नाम का अभ्यास, सतगुरु का पावन दर्शन होता रहा चंद्र चकोर की न्याई, आप देखोगे, पाओगे मन में सकारात्मकता पाॅजिटिवटी की लहरें उमड़ पड़ती हैं। जीवन के अंधेरे मोड़ों पर दुख कष्ट के वेले भी ये सकारात्मक लहरें, हमारे मन को सबल करती हैं। सांईजन वचन वाणी से जगा रहे हैं, बाबा! यह बीमार मन है, बेहोशी वाला मन है, नाना स्वादों कल्पनाओं में बहने वाला मन है, इस मन को रोको, जो हर पल संसार के बेहिसाब स्वादों, भ्रमों में रमा है, जड़ अहं से भरा है। संगत जी! सभी जीवों भगतों के पटों में, घटों में, तह में एक मूल बात ज़रूर उमड़ती है कि अंतर मन आतम में निःरसपन का सागर भरा है, यह निःरसपन कैसे दूर हो, हरिरूप सतगुरु फरमाते हैं, भगतां जी! अपने मन को अमृत सतगुरु नाम, हरि भजन में तासिरमय करो, जहाँ भी आप बैठो, मन को प्रेमामय भाव से सतगुरु, हरि नाम में भिगोते रहो, अंतर में गोते लगाते रहो, मन की लाग लपेट सतगुरु हरि नाम में जोड़ते रहो जिससे नाम का मिठड़ा, माधुर्य महारस सागर अंतर में उमड़ पड़ेगा।

हरे माधव यथार्थ संतमत वचन प्रकाश 1131 में आपजी के वचन फरमान आते हैं कि बाबा! जब हम हरिरूप सतगुरु के नाम का प्रेम प्रीत चाव से अभ्यास दृढ़ करते हैं, तब हमारे अंदर रब्बी सूर्य खिल उठता है, परमत्व की गहन दुनिया भी जाग उठती है।

Hare Madhav Yatharth Santmat Vachan 1131 states the sermons of His Holiness that Baba! When Lord True Master’s holy word is practiced upon with utter love, faith & devotion, a divine radiant sun rises up within us; the realm of Pramatva state unveils

हरे माधव साटिक ध्यान भाव संतमत वचन प्रकाश 1313 में गुरु महाराज जी फरमाते हैं, अमृत सतगुरु नाम को कमाते-कमाते भजते-भजते कभी हमें आतम मन में घाटे का खाता मालूम होता है पर घाटा उसी में है, जो हमारी ही देनदारियाँ कुछ इकट्ठी की हुई होती हैं। बाबा! जब हम सतगुरु नाम को सिमरते भजते जाते हैं तो हमारी यह देनदारियाँ भी राख हो जाती हैं, सतगुरु नाम जपते-जपते भजते-भजते हमारे मन आतम के खाते में नफे के रूप में कुछ नई जमापूंजी होने लगती है परम अमृत सतगुरु पद की। बाबा! अमृत सतगुरु नाम की कमाई कर, पहले हम पुराने कर्जे भुगताते हैं, चुकाते हैं फिर यह मन, यह आतम हंसमय बन परम प्रभु के दिव्य लोक में पूरे सतगुरु की नाव संगत से निजघर जाती है।

सांईजन फरमाते हैं, जिस तरह, जब वायुयान ऐयरपोर्ट पर खड़ा रहता है, आप उसमें जाकर बैठते हो तब आपको आकाश की चीज़ें दिखाई नहीं देतीं, जब सफर आरंभ होता है, वायुयान लम्बी उड़ान को आकाश में उड़ता है तब नीचे का संसार चींटी की न्याई दिखाई देने लगता है, उसी तरह बाबा! पारब्रम्ह पुरुख की मौज रजा से जो भी रिश्ते-नाते प्राप्त हुए, धरा जगत में किसी से हमारा लेना-देना, किसी से हमारा जीवन भर का मैं-मैं, तोता-मैंना..तोता का भाव यानि मैं ऊँचा, तू छोटे, पद मान, तन-मन-धन, सब कुछ ऐ सयानेजनों आप सभी समझदार हैं, वह सब प्रभु हरे माधव परमेश्वर की अमानत समझो, मन सहज सीधा भी होगा और मन पर ममत्व काई भी नहीं बैठेगी। तभी आपजी ने रसीले वचन फरमाए-

मात-पिता पुत बंधुआ सारे, धन न आवै कौ कामा
भज लीजै रे मना, भज लीजै रे मना

फिर चितावन वचन-

संगले धंधे छोड़ दुनी के, लाओ सतगुरु नामए ध्याना

ऐ जीयरा! याद कर जब तू जठर अग्नि में था, तूने हरिराया प्रभु को पुकारा, उस हरिराया प्रभु ने तेरी पुकार सुन तुझे उबारा पर ऐ मना! जगत मन माया के फंद में आकर तू गंदला हो उसे भूला बिसरा है, अब जागो, अपने अंदर सतगुरु नाम को भजो, अमृत नाम की लौ ज्योत को जगाओ। ‘‘इस नाश काया के नाश होने से पहले’-2 तुझे परम कमाई वाले पूरे सतगुरु की ठण्डी छांव में बैठ पवित्र दर्शन, पावन सत्संग फिर अमृत नाम, सेवा निष्काम इस राह पर चलकर ऐ मना! तू गंदला नहीं निर्मल होगा, तू बंधन मुक्त होगा, तू अनित्य नहीं शाश्वत होगा, तू दुखी नहीं सुखकारी रूप होगा। क्योंकि याद कर ऐ मना! पूरा सतगुरु, कमाई वाला सतगुरु पारब्रम्ह पुरुख के हुकुम आदेश से शिष्य आत्माओं को अखण्ड प्रकाशी मंत्र नाम तो भरपूर देता है। नाम को जपना, नाम को भजना यह शिष्य आत्माओं का साचा धर्म है। सांईजन फरमाते हैं, ऐ मना! काहे नाश अनित्य की धमाचैकड़ी आठों पहर कर बैठा है इसलिए चेेत ऐ मना! साचे नाम धन को भजकर, जपकर अपने साथ रख लो। बाबा! यहाँ की वस्तुएं यहीं रहनी हैं, यहाँ के रिश्ते नाते मसानों तक, यहाँ की राजायी-प्रजायी यहाँ तक। ऐ मना! दिव्य आलोकित सतगुरु नाम को जप, फिर पूरा सतगुरु तुझे सर्वत्र ज्योर्तिमय कर देगा ‘‘पर अभ्यास ऐ मना! तुझे करना है।’-2

साधसंगत जी! हुजूर गुरु महराज जी, आतम रूहों को नाम के अभ्यास से जुड़ने वास्ते हरे माधव वाणी की अगली तुक में वचन राह बक्श रहे हैं, गौर से श्रवण करें, जी आगे-

।। मना जपो गुरु सचि नामा, मना जपो गुरु सचि नामा ।।
।। देखउं साधो माया फाँसा-2, जग दुनी तह ललचाना ।।
।। जग माया फंद फँसाना, मना भज लीजै हर नामा-2 ।।
।। मना ऐह जग खान मुसाफिर, भज लै साँचा हर गुन नामा ।।

आप सतगुरु महाराज जी फरमाते हैं, ऐ मना! साचे सतगुरु के साचे नाम मंत्र का जाप करो, बाबा! अमृत नाम को भज कर हृदय कंवल चहक उठेगा, नाम को जप मस्तक का फल मस्तक की ज्योत जल उठेगी। नाम के, चिंतन के सुख की महिमा अपरम्पार है इसलिए,

मना जपो गुरु सचि नामा, मना जपो गुरु सचि नामा

आपजी ने हरे माधव यथार्थ संतमत वचन 113 में फरमाया, बाबा! महासागर से अगर बूँद बिछड़ जाती है तो महासागर का कुछ नहीं बिगड़ता, वह निहचल भरपूर शाश्वत लहराता भरा हरा ही रहता है। इसी तरह बाबा! दूसरा पार्ट देखें उस बूंद का, अंश का, महासागर सेे विमुख होकर बूंद, अंश रूपी मन आतम माया संग गंदला हो, मन इंद्रिय कीचड़ फिर संताप तपना, चिरंकाल तक इसका लेखा भाग उस अंश बूंद का बन जाता है। पर जब परम प्रभु की असीम कृपा से कमाई वाले पूरे सतगुरु की पवित्र संगत प्राप्त होती है तो इसे वापस अपने महासागर यानि पारब्रम्ह दिव्य पुरुख में मिलने का परम भाग्य प्राप्त होता है, फिर जब अंश, आत्माएं नाम को भजते हैं, पूरे सतगुरु में अनन्य प्रेम पारब्रम्हमय भाव को धरते हैं तब वह अंश आतमएं अकथनीय शाश्वत परमत्व के निहचल खुशी को प्राप्त करते हैं, निज थांव प्राप्त करते हैं। फिर जगत दुनी की ओर हंसवृत्ति का बहना नहीं होता, क्योंकि-

देखउ साधो माया फांसा, जग दुनी तह ललचाना
मना एह जग खान मुसाफिर, भज लै साचा हर गुन नामा

गरूड़ पुराण के 230/40 में आया,

प्रणाममीशस्य शिरः फलं विदु स्तदर्चनं पाणिफलं दिवौकसः
मनः फलं तद्गुणकर्म चिन्तनं, वचस्तु गोविन्द गुण स्तुतिः फलम्

अर्थात् प्राणी के पापकर्म की जो राशि सुमेरू और मंदराचल के सम विशाल हो गई है, वह सम्पूर्ण पाप राशि हरि प्रभु के स्मरण मात्र से, भजन से विनष्ट हो जाती है।

प्यारी अंशी आत्माओं! केवल और केवल भजन सिमरन के भंडारी करुणा निधान ज्योर्तिमय निराकार पूरण सतगुरु ही संतापों और दुखों के गिलाफ से जकड़ी जीवात्मा को उबार सकते हैं, अपना आलोकित भजन नाम, मंत्र दान बक्शकर प्रभुरूप सतगुरु अंतरमुखता की अभ्यास युक्ति को जीवात्मा के, गुरुमुख के घट अंदर रख परमत्व में विलीन कर देते हैं।

आपजी ने फरमाया, हरिराया सफल मूरत कमाई वाले सतगुरु का पवित्र नाम भजकर आतम मन शााश्वत मोक्ष सिद्धी का फल प्राप्त करती है। बाबा! ऐसी पावन संगति में इस मन की ना-ना लहरों, जो बाहरमुखी है, वो अंतरमुखी होकर हर इक लहर मन में प्रेम, सर्वत्र भाव भगति का अमृत भर देती हैं। आतम के अंदर संजीवनी वचन सत्संग वाणी में फरमाए, सच्चे पातशाह जी ने,

जग माया फंद फसाना, मना भज लीजै हर नामा-2

सच्चे पातशाह जी फरमाते हैं, बाबा! देखो, यह मन स्व ही नाना विचारों के तंदे बना, आठों पहर उसी में जकड़ा है, उसी में खोया और संसार के सारे कार्य, व्यवहार करते हुए, अंध खुह में पड़ा है, यह मन कितने ही बेहिसाब अनगिनत तंदे बनाता है, भाव बनाता है, कभी क्रोधी, कभी शांत, कभी नम्र, नाना दुनिया के विषय रसों की महक और सबसे बड़ी ताकतवर चीज़, वह है अहंकार, जीव के घट में अहं भरपूर पड़ा रहता है। अब प्राणी कैसे उबरे? जीव तो निर्बल है, आतम तो निर्बल है। पुरनूर सतगुरु संजीवनी वचन तासीर, अचल वचन बक्श रहे हैं, जब जीव मुक्त पुरुख सतगुरु की ओट शरण में जाता है, तब प्यारा सतगुरु उसे अपनाता है, फिर जीव जब नाम भजन, प्रभु भजन के तासीर में अपनी चेतना का रुख करता है, विदुर मीरा वाले भावों को मन में भर, थिर होकर सतगुरु पूरे का दर्शन करता है, शांत हो परम ध्यान, सच्चे सतगुरु के जागृत नुक्ते में प्रेम भाव धरता है, तब जीव मन के तंदों से, अहं से उबरता है, उसके अंतर में अलौकिक दिव्य प्रकाश प्रगट होता है। आपजी ने फरमाया,

मना जपो गुरु साचा नामा

उत्तम रम्ज देकर, जागृत समझाइश देकर, सांईजन समझा रहे हैं कि जैसे एक कूकर शीशों के महल में, शीशों के घरौंदों में पहुँचता है तो वह अपना अक्स देखकर भौंक-भौंक कर दुखी होता है। फिर आगे मन की दशा का, बाबा! जैसे एक बंदर घाघर में जिसका मुंहाना छोटा है पर चने (भुगड़े) को खाने के लोभ में वह अपना हाथ डाल लेता है। अपने हाथ को चनों से भरता है पर उसमें ही उलझ जाता है। वह लोभवश अपना हाथ नहीं खोलता क्योंकि चने गिरेंगे। फिर वह घाघर की पकड़ में आ जाता है, छटपटाता रहता है। इसी तरह यह जीव का मन, माया तृष्णा ममता के मोह में फंस बेहिसाब करम करता है और बेहिसाब दुखों का कारण बनता है, संत बाबाजी वचन वाणी में ऐसे दुखों, संतापों से उबरने के लिए फरमाया, जो कि मिठड़े पैगाम आए, ध्यानपूर्वक श्रवण करें, जी आगे-

।। उत्तम नर तन कौण बिकाना, भारी माया अगन सुहाना ।।
।। जाग प्राणी जाग मना तू, भज हर नामा चित्त हर नामा ।।
।। साँचे सतगुरु संगत मानौ-2, आतम अमीरल मूल पछानौ ।।
।। मना करो भजन ध्याना, भवजाला टूटै हरि महि समाना ।।

रब्बी मिठड़ी वाणी के मिठड़े कौल आए,

जाग प्राणी जाग मना तू, भज हर नामा चित्त हर नामा

गुरु महाराज जी फरमान दे रहे हैं,

उत्तम नर तन कौण बिकाना, भारी माया अगन सुहाना

बाबा! उत्तम नर तन पाकर भी, यह मन सदा अस्थिर सत्ता के पीछे दिन-रात ललचाने का धोखा भ्रम गढ़ बैठा है। यह मन हर पल हर क्षण निशदिन इंद्रियों के नाना स्वादों के पीछे चिंतन, उसके सुपन, उसके ख्वाबों में पड़ा रहता है। बाबा! इस मन को इंद्रियों के परे ले जाओ, इंद्रियों के पार जो अविनाशी सुख है, भक्ति का भाव का साधसंगत का उसमें टिकाओ। बाबा! इस मन को स्थिर सत्ता, सतगुरु के नाम, परम आतम रूप की स्थिति में टिकाओ लगाओ, इस मन की चंचलता को स्थिर करने के लिए नाम सतगुरु का हर पल आराधते रहो, सिमरते रहो। इस मन को हर पल अंतरमुखता की ताड़ी, प्रीत-रीत में जमाते रहो। बाबा! इस मन को सतगुरु के अमृत नाम, प्रभुजियो के अमृत नाम में गटक-गटक कर भरने का स्वभाव और साधना करो। ऐ मना इस जगत के जितने भी सारे धंधे, इस जगत के जितने भी सारे रचनाकार हैं, यह सब धंधे छूटन जाने हैं।

ऐ मन! जागो! जागो मनहा!

ऐ मनुआ! इस असार संसार की मिथ्या दौड़-धूप में कब तक दुखी होगा। नहाना, खाना-पीना, कमाना-सोना, यह जीवन की सार्थकता नहीं। असल सार्थकता तो निज को जानना है। ऐ मना! तू उस अविनाशी अजरता का अंश रूप है, स्वरूप है, अपना मूल पछान। मन ही मोक्ष और बंधन का कारण है। ऐ मना! इस माया फंद से तू निकलो, इस मन को हर पल हर क्षण नाना विचारों के खू से उबारने के लिए ऐ प्यारों! आप सतगुरु के नाम को आराधो।

भज लीजै रे ऐ मना! लाओ सतगुरु नामह ध्याना

फिर फरमाया-

भज लीजै रे मना हरिजियो नाम साचा भज लीजै रे मना

बाबा! इस मन को भजन आदत डालने का नित्य साधसंगत में बैठ यतन पुरुषार्थ करो, यह चंचल मन जो बेलगाम घोड़े की न्याई है, बड़ी सहजता से सतगुरु नाम अमृत भजन से वशीभूत किया जा सकता है। यह बाहरमुखी मन नाना विषय रसों में मोहित हो विमोहित हो इंद्रिय रसों में उलझा, व्यर्थ चिंतन में पड़ा रहता है पर बाबा! ऐसे चिंतन से तू संसार के बंधनों से कैसे मुक्त होगा? हरिराया प्रभुजियो का जो कि कमाई वाले, आंतरिक मंडलों के साहूकार पूरण सतगुरु के द्वारा बक्शा जो अमृत नाम है, एकांत में हो भज मना।

भज लीजै रे मना हरिजियो नाम साचा

एकांत में हो भज मना।

सांईजन ने आगे हरे माधव यर्थाथ संतमत वचन 52 में फरमाया, एक निश्चित अटल इरादा बांध के बैठो कि सगले दुनिया के लेनदार-देनदार, किसी ने कटु शब्द कहे तो मन में कांटा लगा, यह सारे ख्याल निकाल कर निश्चित अवधि के लिए इस मन को सिमरन अभ्यास में बिठाना चाहिए। प्रेम, तीव्र लगन से पूरण सतगुरु के बक्शे पावन नाम के सिमरन ध्यान से घट में पारब्रम्ह प्रकाशमय प्रगट हो उठता। प्रेम की डोरी में बंधे जिसकी आतम अंश है, वह अगोचर प्रेमी के घट में आ प्रगट होता है पर यदि रंगो इस मन को।

प्यारों! सांईजन फरमाते हैं कि चाहे मन माने ना माने, मन को कभी प्रेम से कभी ताड़ से सतगुरु नाम भजन में लगाना ही नर तन का उत्तम खरा सौदा है। आप सभी स्यानेजनों ज़रा गौर करो, आपको किसी से मिलना हो, अपने स्नेही से, आपने मिलने का समय भी दे दिया, अगर आप अपने स्नेही प्यारे के पास समय पर नहीं पहुँचते, वचन न निभाने के कारण शर्मसार होते हैं, हैं न प्यारों और वह स्नेही भी आपका इंतजार करता रहता है कि कब आयेगा।

इसी तरह सतगुरु पूरण नाम भजन अंशी रूह का एको पारब्रम्ह से मिलने का अनुबंध ही मानो, कौल मानकर बैठो, फिर आहिस्ते-आहिस्ते यह मन भजना रस में बैठ जाता है। गुरुमहाराज जी फरमाते हैं, फिर ऐ आतम! अलौकिक आनंद, अलौकिक भाव घट आतम, मन हमारा भजते-भजते भावमय अमीरल बन जाता है।

हरे माधव वैराग्य, यथार्थ संतमत वचन 21 में आपजी फरमाते हैं, ऐ मनां! यह स्वांसों का बनाया पिंजरा और यह संसार केवल एक विश्राम गृह है, याद रख ऐ मना! इसे तू टिकने और रहने वाला ना समझ। ऐ सुत्ते मन! सुत्ती आतम! जाग। ज़्यादा नींद भी खुशवाल नहीं, उठो, अपने मन से सतगुरु नाम भजन कर मन से जंग जीत, जीवन स्वांस बहते जा रहे हैं।

His Holiness sermonizes in Hare Madhav Vairagya, Yatharth Santmat Vachan 21 that O being! This cage of breaths and the world of illusions is a mere rest house. Remember, o being! Do not mistake it for your permanent home. O slumbering mind & soul! Wake up! Don’t just go on sleeping, wake up, meditate upon Satguru Naam and win the battle against the mind for the life is washing away.

मना ऐह जग खान मुसाफिर, भज लै साँचा हर गुन नामा

सांईजन आगे फरमाते हैं, इस देही के लिए बाबा! बेशक आराम भी ज़रूरी है, पर्याप्त सोना यानि नींद के समय नींद लेना ठीक है, खाने के समय खाना लेना हितकर है पर यह संसार विश्राम गृह है, ये वो देश है जहाँ लंबे सोने के लिए जगह नहीं, कुछ क्षणों का आराम है, इसलिए जागो, आलस्य छोड़ो। अपने मन में अलौकिक स्फूर्ति, गहन शांति, फिर जागो, अपनी रूह आतम को, अपने ख्यालों को हरिराया सतगुरु की नाम भगति से भरते रहो, मन निर्मल होगा, फिर आतम सारी दूरियां तय कर लेगी और ‘‘हरे माधव अहनिष में एक होगी’’2

ऐ मना! जागो, भजन करो। ऐ मना! जागो, भजन करो। ऐ मना! देह तेरा जामा है, देह के कारण तू दुखी मत हो, कि मुझे ये संताप है, मुझे ये तकलीफ है, नाना प्रकार के मन लुभावने नकारात्मक भाव पैदा करता है। जागो! जागो मना, जागो मना, जागो मना, जागो मना।

साचे सतगुरु संगत मानो, आतम अमीरल मूल पछानो
मना करो भजन ध्याना, भवजाला टूटै हरि महि समाना

आपजी फरमाते हैं, न्यारे सतगुरु नाम रूपी प्रकाशी ज्योत मेरे सतगुरु ने मेरे घट में रख दी। हमने सतगुरु के बताए भजन रीत से दिव्य नाम जो सतगुरु के द्वारा ह में अमृत नाम बक्शा गया क्योंकि सतगुरु के द्वारा जो बक्शा हुआ अमृत नाम है वह परम उत्तम, परम शाश्वत, परम निर्मल करने के लिए मन को उसी तरह आवश्यक, उसी तरह ज़रूरी है जैसे हम कोई डाॅक्टर से पर्ची लिखाकर ही मैडीकल स्टोर से दवाइयाँ लेते हैं। साधसंगत जी! अगर खुद मैडीकल स्टोर के मालिक को भी तकलीफ हो और उसे यह पता भी हो कि मुझे अमुक बुखार या अमुक तकलीफ है तो भी वह मेडिकल स्टोर वाला डाॅक्टर के पास जाता है, डाॅक्टर नब्ज़ें देखकर या अन्य मशीनों द्वारा उसकी जाँच परखकर उसे टैबलेट टाॅनिक, अन्य उपचार के लिए उसे दवा खुराक वह लिख देता है, पर्ची बना देता है। फिर मैडीकल स्टोर वाला अपनी ही दुकान से सब दवा खुराक लेता है, अगर चाहे तो वह डायरेक्ट भी ले सकता था पर यह विधान नहीं है और उसके मन के भयखाने में भय का दीपक जलता ही रहता है, इसलिए वह अनुभवी डाॅक्टर के पास जाकर मर्ज़ की दवा पूछ स्वास्थ्य लाभ पाता है। सो बाबा! कमाई वाले सतगुरु के भजन से हमारा मन आतम भगवन्त निर्भवमय बनता है, मोक्ष अमृत फल पाता है।

साधसंगत जी! यह मन जन्मों से दिव्य मंडलों, दिव्य चक्रों से, दिव्य मुकामों से कोसों दूर रहा है यानि उन मंडलों पर न रोशनी इस मन को दिखाई देती है, न आतम को, न जीवात्मा को। अब हमें ऐसा कोई भजन सिमरन की कमाई वाला हरिराया सतगुरु चाहिए जो अपने अंदर के मंडलों को गहन कमाई द्वारा ज्योति ज्योतमय प्रकाशमय कर चुका हो, जो सारे आंतरिक मण्डलों, मुकामों का साहूकार हो, जो सारे जड़-चेतन की गांठों को खोलने वाला उत्तम वैद्य, दिव्य पुरुख हो, वह जीवात्मा को आतम स्वस्थता की युक्ति बक्शे, इसलिए उनकी मेहर को पाने के लिए उनकी शरण छांव में पंगत लगा। हमें नाम का भजन, नाम की बंदगी और अपने सारे ख्यालातों को तिल में टिकाना, चित्त वृत्ति को साटिक में टिकाने का अभ्यास होना चाहिए।

सत्संग शबद वाणी की अंतिम तुक में हंस रूपी आत्माओं के लिए फरमान आया, जी आगे-

।। ‘‘दास ईश्वर’’ कहे सुण(सुनह) मना तू, देस बिराना छोड़ मना तू ।।
।। बैठ नामै ध्यान धरा तू, हरे माधव हंसै राह पावै ।।
।। घट में ध्यावो साँचो नामो ।।
।। जह तह होवै आप रसाता, हऊं रातो आप रसाता ।।

सांईजन कमाई वाली वाणी फरमाकर गूढ़ वचन अर्क परमत्व का भेद दे रहे हैं, ऐ प्राणी! पूर्ण सतगुरु सदा जागृत पुरनूर हैं, आप अपने मन को सतगुरु नाम में रसाते रहो, बसाते रहो-

‘‘दास ईश्वर’’ कहे सुण(सुनह) मना तू, देस बिराना छोड़ मना तू

हाजिरां हुजूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी जब दैहिक नींद से उठे, साहिब जी नींद से उठ मुस्करा रहे, अमुक भगत ने विनय की, साहिब जी मिठड़ी मुस्कान की महिमा क्या है? सांईजन, परम खुमारी में परम वचन फरमाए, कि बाबा! नींद की कल्पनाएं कौन कहे, अब तो जागन के वचन है ये सब जागृत स्वप्न सुषप्त आदि अवस्थायें है ये सब मन माया के द्वारा कल्पित हैं, सब मिथ्या है हम तो बाबा! एको अखण्ड परम दिव्य अनन्तमय अथाह में आनन्दित हो रमण कर रहे, तब आपके प्रभुमय मुख से वाणी बह निकली-

‘‘जह तह होवै आप रसाता-2’’, हऊं रातो आप रसाता

परम अद्वितीय बेहिसाब अमृत है, अमृत ही है, बाहर अंदर एकारत्त अमृत का खुमार है। साधसंगत जी! अब यह गूढ़ यथार्थ वचन दात है। यह वचन वाणी श्रवण कर प्रेम-प्रीत हृदय वाले शिष्यों, भगतों, हंसों, बंदगी जपन वालों का मन परम आतम हंस हो उठता है, ना ललचाए ना तिरके ना फिसले, बस बैठक कर ले हरिरूप सतगुरु पूर्ण जीवन मुक्त की भजन ओट में। फिर जब सतगुरु पूरे की जागृत तवज्जू, अलौकिक अभ्यास, तत्वदर्शी नाम प्राप्त हुआ तो मालूम हुआ जपकर कि पूरण सतगुरु में पारब्रम्ह सदा मौजूद प्रगट है। लकड़ी में अगन छिपी रहती है पर जिसे चाहिए, पुरुषार्थ भाव प्रेम से युक्ति से उस लकड़ी को रगड़कर उसमें से अग्नि को प्रगट कर सकता है।

साधसंगत जी! भगत-भगवान, शिष्य-सद्गुरु, आत्मा-परमात्मा, नर से नारायण जीवन के सुखद निर्मल भाव, सतगुरु भगति, प्रेमा भक्ति, नाम भगति सारे मायावी बंधनों को काट, आतम को परमत्वमय भरपूर कर देती है, आतम को निज घर का प्रकाश प्राप्त होता है।

हरे माधव प्रभु की अंशी आत्माओं! सतगुरु की दिव्य लीलाओं को, महिमाओं को, प्रभु की दिव्य रचना की कुदरत को, मन को अंतरमुखी करके नाम जपते हुए निहारो। हर एक वस्तु, हर एक पदार्थ, हर एक क्षण, हर एक तत्व, हर एक पक्षी, हर एक जीव, हर इक रचना में केवल परम तत्व को निहारो, सतगुरु के नाम को आराधते हुए। ऐ मना! काहे इस दुनिया के मोह प्रीत में पड़ा है, मन को अपने अंदर नाम में टिकाओ, उठत-बैठत मन का स्वभाव है चंचल लहरों को बनाना, नाना विचारों को बनाना, नई-नई सृष्टियों का ख्वाब यह जीव के अंदर धारण कर लेता है। इस मन की प्रकृति के आगोष में दिनो पहर पड़े रहते हैं, चैबीसों घंटे पड़े रहते हैं। रात को सोते समय मन की काल्पनिक प्रकृतियां हमें लुभाती, भुलाती, भयभीत करती रहती हैं। चलते, फिरते, खाते, पीते, उठते, बैठते नाना जगत के कारज करते हुए यह मना हमें चिंताओं में घेरे रखता है, कभी वर्तमान की चिंता, कभी भविष्य की, कभी अतीत की। सांईजन फरमाते हैं, ऐ मना! अचिंत रहो, ऐ मना! अचिंत रहो, ऐ मना! अचिंत रहो।

सांईजन फरमा रहे हैं, ऐ प्रभु के प्यारों! जिस प्रभु परम प्यारे ने जठरा-अग्नि मंे तुझे जहाँ न हिलने-डुलने का समय था, जहाँ पर हम उल्टे लटके थे, उस समय भी प्रभु ने हमें अपना जीवन, अपना विरद, अपना प्यार, अपनी करुणा, अपना अंश समझकर प्रतिपालना की, तो क्या प्रभु अब हमारी प्रतिपालना नहीं करेगा। प्यारे जागो! ऐ मना! यह जग मुसाफिर खान है, नींद से जागो, तू चिरंजीवी सत्य है, ऐ मना जागो! ऐ मना जागो! ऐ मना! इस भवजाल, इस मायावी जाल में, ऐ मना! अपने अंदर हर पल परमत्व नाम भजन करते रहो, सकारात्मक बल अर्जित करते रहो, ऐ मना! तू अनंत अनंत अनंत अनंत दुनिया का इक छोर इक कतरा महासागर में ही पिरोया हुआ है, जैसे पुष्प के अंदर खुशबू है, तैसे ही तेरे अंदर वह परमत्व है। फरमाया सांईजन ने-

‘‘दास ईश्वर’’ कहे सुण(सुनह) मना तू, देस बिराना छोड़ मना तू

हरे माधव भांगा साखी वचन उपदेश 90 में फरमान आता है, 24 नवंबर 2019, रविवार के साप्ताहिक हरे माधव सत्संग दीवान में, संसारपुर गांव के एक भोले भगत ने हाजिरां हुजूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी से विनती की, हे सतगुरु महाराज जी! हम नाम का सिमरन, या कीर्तन या पुकार प्रार्थना करते हैं पर मन में यदि भाव न हो तो क्या हमें फल मिलेगा? मेरा एक बंधु कहता है कि बिना भाव के नाम-जप, कीर्तन करने से फायदा क्या! आप हुजूर महाराज जी मंद-मंद मुस्करा रहे और वचन फरमाए, बाबा! नाम-जप, कीर्तन तो बिना भाव के भी करें, यदि आप सोचोगे भाव आयेगा तो करेंगे तो इससे न भाव आयेगा और न कीर्तन होगा।

भाव कुभाव अनख आलसहुँ, नाम जपत मंगल दिस दसहुं

यानि, आप भाव से, अभाव से या आलस्य से जैसे भी नाम जपें, आतम का मंगल कल्याण होता है। हूजुर महाराज जी ने उस भगत से फरमाया प्यारे भगतां जी आप खेती किसानी करते है ना, हथजोड़ भगत ने कहा, जी महाराज जी, तो भगतां जी, जब आप बीज बोते हो तो तकवारी देख भाल करते हो समय-समय पर कुएँ से पानी निकाल जहाँ बीज बोये हुए हैं उस जमीन में पानी की बौछारे लगाते है और कभी-कभी खाद या अन्य छिड़काव की आवश्यकता पड़ती है तो छिड़काव करते हैं न, वह भगत कहने लगा, जी, जी महाराज जी आपजी फरमाए, प्यारे! फसल तो हरिराया के हुकुम मौज से प्रकृति में जो मुद्दा होता है, उतने समय में बुटे खिल पड़ते है, हरे खेत हो जाते है और जो धान बोते है कनक चावल या अन्य जो हम बोते है, हमें प्राप्त होता है पर आप अपना सबल पुरुषार्थ नहीं छोड़ते कैसी भी गर्मी बारिश, आँधी या ठंण्ड हो और आप जब बीज बोते है, तो ये कभी नहीं देखते कि बीज टेढ़ा जा रहा है कि उल्टा या सीधा जा रहा है, आपको बीज बोने से मतलब, एक बार खेत में बीज बो दिया तो वो उगे बिना नहीं रह सकता, इसलिये सतगुरु नाम को कैसे भी जपो भजो।

तुलसी रघुवर नाम को रीझ भजो चाहे खीज
उल्टो सुल्टो ऊगसी धरती पड़ियो बीज

सतगुरु नाम को जपो, कीर्तन, पुकार, प्रार्थना करो, भाषा की शुद्ध-अशुद्धि मत देखो। साधसंगत जी हो सकता है भोले भाव प्रेम भाव से की गई अरदास पुकार भजन में भाषा की अशुद्धि हो और कोई दूसरा विद्वान भक्त पूर्ण भाषा शुद्धि के साथ पुकार प्रार्थना करे लेकिन इससे पूरण सतगुरु भक्ति के मार्ग में कोई भेद नहीं होता, पूरण सतगुरु भगवान भेद नहीं करते बल्कि लगन देखते हैं, प्रेम देखते हैं। कोई विद्वान हो, मूर्ख हो, गुणी हो, अवगुणी हो, जो भी हो, बस लागी लगी रहे, सतगुरु से प्रेम लगा रहे, पुकार जप न छूटे, जप की पकड़ (लगन) बनी रहे घट में ध्यावो साचा नामा। न्यारे राम रुपी अंश आतम शिष्य को अपना पुरुषार्थ करना है, सतगुरु शब्द को साधसंगत में आकर प्रेम के पानी से सींचते रहना है और सतगुरु दर्शन की प्यास, विरह आतम के भजन को गाढ़ा करती है, भगतां जी! आप अपना पुरुषार्थ अभ्यास पुरजोर लगन से पारब्रम्ह सतगुरु की शरण ओट में करते रहे हिम्मत ना हारे।

हरिराया सतगुरु का नाम-जप करो, शबद वाणी गाओ, आप शबद वाणी कीर्तन को जितना लय से गायेंगे, उतना ही सतगुरु श्री चरणों में भाव बढ़ता है, संसार की हर चीज ऐसी है कि खर्च करने से वह कम हो जाती है, लेकिन शबद भजन की स्वर लहरी को जितना गायेंगे, उतना ही सतगुरु श्री चरणों में प्रेम भजन बढ़ता रहेगा, आतम तृप्ति मिलेगी। सच्चा सुख, भगवत्व सुख पाने के लिए सतगुरु प्रेम, सतगुरु सेवा, सतगुरु शरण ही सच्चे साधन हैं।

नाम-जप, कीर्तन से प्रभु सतगुरु में प्रेम, श्रद्धा और समर्पण तीनों बढ़ेगा, जिससे आपके अंतर में प्रबल एवं अविरल भाव का संचार हो जायेगा। ऐ रब के अंश! हरिरया सतगुरु शब्द नाम-रुप में शिष्य भगत के अंग-संग सदा सहाई है-2

सच्चे सतगुरु इस लोक में ही नहीं, परलोक में भी सदा अंग-संग सहाई होते हैं। ऐसे अनगिनत मनोहर करुणामय लीलायें, हाजिरां हुजूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी की प्रकाशमय हैं। जिन शिष्य आत्माओं को पूरण सतगुरु की अलौकिक सुखद छत्र छांव प्राप्त है, धरमराज ऐसी आतम रूहों से कर्माें का लेखा-जोखा नहीं पूछता। सांईजन फरमाते हैं, बाबा! सुरति की तार सतगुरु सिमरन से जुड़ी रहे, जिससे आतम परमातम में एकमय हो जाएगी। प्यारों! यदि सुरति की तार खण्ड-खण्ड में अथार्त् माया, रिश्ते-नातों, दुनियावी पदार्थो से जुड़ी रहेगी तो, अंत समय में उन्हीं के ध्यान आने से जीव को चैरासी के चक्रों में जाना पड़ेगा। सांईजन फरमाते हैं, भजन सिमरन के सिवा जो कुछ भी कर्म किया जाता है, वह इसी लोक में बंधकर रहने वाला खान-पान, पद-मान, पाप-पुण्य सब बंधन ही हैं, इनको छोड़कर जो सतगुरु भगति वाला कर्म है अर्थात् मन को निरंतर साचे अमृत सतगुरु नाम में लीन रखें तो पाप-पुण्य सब सतगुरु भगवंत को अर्पित हो जाते हैं, यही साची भगति हैं, यह भगति ही भव बंधन काटने वाली हैं-

भवजाला टूटै हरि महि समाना

जो मन के बिदके सो आवागमन के बंध में फंसे। कलिकाल में सतगुरु नाम भजन ही साधन है, भवजाल से पार होने का,

भवजाला टूटै हरि महि समाना

प्यारों! अपने मन के ध्यान को बाहरमुखी विचारों से हटा अंतरमुखी करें, सतगुरु नाम का जप ध्यान करें जिससे आतम आनन्दित होगी। हरिराया सतगुरु के नाम का चिंतन आत्म परिवर्तन की सीढ़ी है, हरिराया सतगुरु की भगति ही भवजाल से पार होने की साची राह है, इसलिए ऐ मना! करो भजन ध्याना चलत-फिरत, उठत-बैठत, सोवत-जागत, खावत-पीवत।

भज लीजै रे मना, हरि जीओ नाम साँचा-2

सो प्यारी साधसंगतों! आईए, दोनों हथ जोड़ हुजूर साहिबान जी के श्री चरणों में केवल और केवल यही पुकार विनय करें कि, हमें मन की उलझनों से दूर करें, सच्ची भक्ति का बल बक्शें, सांईजी! हमारे दिल में अपने पावन श्री चरणों का पुख्ता प्रेम बक्शे, हम नितनेम से आप जी के बक्शे अमृत नाम का सिमरन, बड़े प्रेम, प्रीत, लगन से करें जिससे हमारी आतम रूह निजघर में वासा करे। बस सच्चे पातशाह जी झोली फैलाए यही आशीष मांगे-

मेरे बाबा मैं मांगूं आशीष, मोहे देवो नाम आशीष
दया करो बक्श लेहो, दया करो बक्श लेहो
मैं अवगुण बड़ा भारी, मोहे देवो नाम आशीष

हे सतगुरु दयाल, आपजी की दया मेहर आशीष का हाथ सदा सर पर बना रहे, दया करें, मोहे देवो नाम आशीष। मेरे सतगुरु जी मेरे माधव जी।

।। ‘‘दास ईश्वर’’ कहे सुण(सुनह) मना तू, देस बिराना छोड़ मना तू ।।
।। बैठ नामै ध्यान धरा तू, हरे माधव हंसै राह पावै ।।
।। घट में ध्यावो साँचो नामो ।।
।। जह तह होवै आप रसाता, हऊं रातो आप रसाता ।।

हरे माधव   हरे माधव   हरे माधव