|| हरे माधव दयाल की दया ||

वाणी सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी

।। जिन जन नाम सदा ध्याया, से जन हुए सफल जन आतम रस पूर्ण।।
।। जिन नाम रतन धन पाया सतगुरू से, से सतरूप सहज समाए।।
।। जिन नाम भक्ति साध संग सदा कर लीना, से सदा रहे मुख ऊजले।।

हरिराया सतगुरु जी के पावन दर्शन दीदार, सत्संग में बैठी संगतों, आप सभी को हरे माधव, हरे माधव, हरे माधव। गुरु महाराज के चरण कमलों में नीह प्रीत गाढ़ी हो, अर्पण हो, कबूल हो। हमारी प्रीत-भगति टूटी-फूटी है, यह विश्वास है सच्चे पातशाह जी! आप हमारी झोली में अपना सच्चा प्रेम, अंतरमुखी भक्ति बक्शेंगे।

सतगुरु की प्यारी संगत! आज के सत्संग की वाणी
जिन जन नाम सदा ध्याया, से जन हुए सफल जन आतम रस पूर्ण
हाजि़रां हुज़ूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी की अमृत रब्बी वाणी, सतगुरु नाम महिमा की वाणी है, आपजी फरमाते हैं, ऐ प्रभुराया की अंशी आत्मा! यह सृष्टि प्रभु की बनी है, उस हरि प्रभु ने यह मारग बनाया है, कि रूह रूपी बच्चे सतगुरु से नाम पाकर, अपने निजघर आ सकते हैं, लेकिन शर्त है, सतगुरु पूरा हो, जीवन मुक्त हो।

कमाई वाले पारब्रम्हमय पुरुख अपार सर्वत्र स्नेह, सर्वत्र प्रकाशपुंज के प्रभुताई पुरुख, धुर के भजन भंडारी रब्बी मुख से वाणी फरमा रहे हैं-
जिन जन नाम सदा ध्याया, से जन हुए सफल जन आतम रस पूर्ण
हुजूर सतगुरु महाराज जी अनमोल दात का वचन फरमान बक्शते हैं कि ऐ आतम! सतगुरु साचे से नाम का रस पाकर मीठे नाम को ध्याया करो। सच्चे सतगुरु वचनों को, नाम भक्ति को रस रस कर भाव प्रेम से कमाया करो। तो प्रेमी व्याकुल आत्मा विनती कर बोली, हे साहिब जी! ‘नाम को रस कर कमाएं’ इन वचनों पर चलकर हमें क्या प्राप्त होगा?

पारब्रम्ह पुरुख सतगुरु ने फरमाया, ओ आतम! तू सतरूप में सहज समा, हर पल आनंदित और अपने मूल निजघर में ठौर पा लेगी। ऐ आतम! ऐसी पावन पवित्र, कमाई वाली साधसंगत की मंगलमयी छावनी में बैठ, तेरा मुख दरगाह में ऊजला होगा। किस रीत से होगा, कौन सी प्रीत से होगा, तो फरमाया-
जिन नाम भक्ति साध संग सदा कर लीना, से सदा रहे मुख ऊजले

मन के सारे द्वंदजालों से निकलने की साची कुंजी है यह रीत। हरे माधव वाणी में आगे कौल आए-
जिन नाम रतन धन पाया सतगुरू से, से सतरूप सहज समाए

पूरा सतगुरु मुक्त नाम देकर, आतम को अलख मते में समाने का, अंतरमुखी मारग देता है, जो पूरन शबद, सतगुरु देता है, जब गुरुमुख साधक उसे जपता है, तो इक रस, इक रंग, एकस रूप में जा पहुँचता है, ऐ शिष्य! सतगुरु नाम की राह, सार सच्ची प्रभुराया की भक्ति है।

पूर्ण संत सत्य कहते हैं और सत्य ही कहते आऐंगे, अलख अगोचर नाम, पूरन शबद रचना का सृजन एवं सम्भाल करता है, विनय की भगत ने, हे प्रभुजियो! जीव के घट में जो साहिब है, वह कैसे प्रगट हो? फरमाया साहिब जी ने, ऐ साधकजनों! हरिराया सतगुरु, ऐसे नाम का भण्डारी हैं। जब रूह आत्मा को इस मृत्यु जगत में आकर पूरन सतगुरु की संगति मिली, निर्देशन दिशा उनसे मिला, तब नाम शबद का अभ्यास कर मन पर से मलीनता उतर गई और घट में साहिब प्रगट हुआ, रूह सच्चे घर में पहुँच गई।

साधसंगत जी, हरे माधव मत के सांझा वचन उपदेश कि सतगुरु नाम की अंतरमुखी साधना सर्वाच्च साधना है। सतगुरु बाबा नारायणशाह साहिब जी ने फरमाया-
अंतरमुखी सदा सुखी

हाजिरां हुजूर सच्चे पातशाह जी आज हमें इस गूढ़ वचन को खोल कर बक्श रहे हैं। सेवक जन ने विनय की, महाराज जी, रूह अंतर में कैसे टिकाव करे? आप साहिबान जी फरमाए, प्यारे भगतां! आप अंतर में गुरु शबद को बिठा लो, बक्शनहार का नाम बिठा लो फिर रूह का टिकाव होगा, मन शांत रहेगा। बाबा! जीव का मन, नित नई इच्छाऐं ख्वाहिशें संजोए रहता है। नित्य नये स्वादों, रोटी, कपड़ा और मकानों, नित्य नये भोगों को चाहता है यह हमारा मन। साधसंगत जी! तो इसका मतलब साफ हुआ, पहले जितने सारे रसायन पदार्थ, भोग मिले, मन ने सभी स्वादों रसों को भोगा पर उन सबसे न सच्चा सुख मिला, न आंतरिक शान्ति मिली, अर्थात् जीव को सातों द्वीप या समस्त भू-मण्डल का राज क्यों न मिल जाए, तृष्णा बढ़ती जाती है, तपिश बढ़ती जाती है, इच्छाओं की अग्नि शान्त नहीं होती, यह ‘‘धधकती रहती है’’-2, यह खा लूं, यह पहन लूं, इस मन को खाने की, अर्जित करने की, दिखाने की आदत पड़ गई है। विभिन्न प्रकार के स्वादों में यह मन रत्ता रहता है, सब कुछ पाकर के भी अतृप्त है और फिर यह मन दुखी रहता है।

हाजिरां हुजूर सतगुरु महाराज जी हरे माधव पीयूष वचन उपदेश 511 में फरमाते हैं, जीवों को संसार की सच्चाई दिखाते हैं, कि आखिर किसके लिए हम स्वांसों रूपी पिण्ड शरीर रूप में आए और सच्चे सुख में जीवात्मा को किस तरह पहुँचना है, ऐ बुद्धिजनों! मन की सारी युक्तियां कर लो, गंदले से गंदले रस चख लो, कई स्यानों के साथ घूम लो, बाहरी तीर्थों में गोते लगा लो, लेकिन वह सच्चा सुख नहीं मिलता, कहा सच्चा सुख नहीं मिला। जिन्हें,
जिन नाम भक्ति साध संग सदा कर लीना, से सदा रहे मुख ऊजले

पूरन सतगुरु का नाम आन्तरिक रस देता है, नाम अपरम्पार है, मैले से मैले दृश्य मलीन विचारों को, नाम से तार जोड़कर निर्मल किया जाता है, यह रचनाकार कितने ही बार रचना की बिछात बिछा चुका है और भी फिर बिछाऐगा, फिर यह नाश विनाश भी हर बार करता आया है याने सब नाशवान है, नाश होना है, मौत की बीन का डर, अंतर बाहर डरा रहा है, अब ऐसी आशा रखना, कि बाहरी नाशवान पदार्थों से शाश्वत सुख मिलेगा, तो प्यार! यह नहीं होना, इसीलिए प्रभु की अंशी आत्मा! दयाल सतगुरु पुकार-पुकार कहते हैं, कि ‘‘नाम जपो-2’’ जब जपेंगे, अंतर में रूह का टिकाव होगा, तब ही असल आत्मिक रस, साचे सुख को जानेंगे, अपने मूल हरे माधव हरिराया में मिल सकेंगे। प्यारों! स्थायी सुख और शांति के लिए कहीं भी भटकने की आवश्यक्ता नहीं, अंतरमुखी होकर सतगुरु नाम शबद की कमाई करेंगे तो अपार आनंद और शांति का भंडार आपको अंदर ही प्राप्त होगा।

There is no need to wander around in search of eternal peace and happiness. Incline inwards and meditate upon the holy word of True Master and you shall experience the eternal joy and peace within.

सत्संग शबद वाणी में वचन आए, जी आगे-
।। जिन जन नाम का अमृत जाणा, से अमर तत्व का भेद जाणा।।
।। जिन जन नाम का प्रेम जाणा, से प्रेम रूप भगवंत समाना।।
।। बिन नाम जपै ब्रम्ह ज्ञान न होवे, तत्व शबद से निज प्रगटाए।।

सत्संग में वाणी में आपजी ने कहा, संगतों को, अंतरमुखी नाम भक्ति की ही वचन बात कही, इससे देह के अंदर पारब्रम्ह का अखण्ड प्रकाश जागृत हो उठता है। देही के अंदर परमेश्वरीय अखण्ड प्रकाश अगर ना हो, तो यह देही निर्जीव हाड़ मांस का थैला ही बनकर रह जाए, अंदर ज्योति है और इस ज्योति की ताकत से ही जीवन शरीर दुनिया प्रगतिशील है, गतिशील हैं, आप सब देखो, सोचो, समझो, यह शरीर कितना गंदला है, अंतर की गंदगी के एक आद दो नहीं, नौ कचरों के द्वार हैं, जागृत प्रभु रूप पूर्ण संतों ने, इस देही को प्रभु का प्रगट मंदिर कहकर, देही को सम्मान दिया, ऐ मुरीद! घट में अखण्ड ज्योति मौजूद है, हक है, हुजूर सच्चे पातशाह जी ने फरमाया-
जिन जन नाम का अमृत जाणा, से अमर तत्व का भेद जाणा

हाँ! यह परमेश्वर हुकुम सत्य है, कि पूरी अखण्ड नूर की दुनिया के साकार प्रगट रूप याने पूरन सतगुरु से निष्काम प्रेम नाम बंदगी गाढ़ी की, तब आतम को निजता की पहचान सच्चे साहिबी साहिब का सुख मिला, ऐ साधकजनों! घट में उजाला, मिठड़े नाम से होना है, उसको खाने याने जपने से होता है, नाम को जपकर तत्व जो घट में है, वह जाहिर हाजि़र होता है, नाम का अंतर ही अंतर, संगीत में जाप करो, इसी के द्वारा प्रभु को हृदय में प्रगट करने का यतन भी करो, जो मंत्र नाम दुनिया को बनाने वाला है, चलावनहार भी वह नाम है, शबद नाम का दीपक अखण्ड है, साहिब प्रभु अपनी निर्वाणी मुक्त सचखण्ड में रहता है, वह दूर कहाँ, हमारे मन के हर एक विचार, दिमाग की सोच, मुँह से निकली हर बात, हर वक्त, उस हरे माधव प्रभु साहिब के विराट कर्णों में दस्तक देती है, हमारी हर एक बात बबात, हरकत बेहरकत, उनकी विराट दिव्य आँखों से न ओझल होती है, न हो सकेगी, वह हर समय हमारे समक्ष सन्मुखता के आसन पर सुशोभित रहता है, जब सतगुरु शबद को पचाया, तभी असल तत्व के अस्तित्व को अनुभव में हम ला पाते हैं।

सतगुरु बाबा माधव साहिब जी वचन वाणी में भेद दे रहे हैं-
संतन भगति नाम भेद जनाऐं
संतन सदा आतम राम रस जणाऐं, संतन साचे साच सिऊं रचाए
पूरे संतन वेद कतेब तत्व मथ-मथ तत्व जणाऐं
कहे माधवशाह मेरे पुरखदाता
अनहल रूप रंग अचरज निज रूप हमारो
सब गावें ताकी सदा तत्व रब महिमा

कितने प्यार सत्कार से, गुरु साहिबान जी हरिराया के अंश रूहों को चिताते हैं, कि ऐ आत्मा! सतगुरु भगति, प्रभु नाम की महिमा से जुड़ो, मन की लगन नाम से जोड़ो, जिससे हउमें रोग छूटे, आतम हरिराया में मिल उसी का रूप बन जाए, सत्संगति में हरिराया प्रगट बसा है, जानो कि सुरति रूह आतम नाम को जपकर, निर्मल से निर्मल हो जाती है, बड़े भागों से पूर्ण संतों की संगति मिलती है, जहाँ आतम को नाम का भेद खुलकर मिलता है-
संतन भगति नाम भेद जनाए, संतन सदा आतम राम रस जणायें
सब गावें ताकी सदा तत्व रब महिमा

नाम की कमाई हरिराया की भक्ति प्राप्ति का साचा मारग, गुरुमुखता वाला पथ बताया, कि नाम की कमाई प्रभु की एक मात्र सत्ता में लीन होने का अटल भेद है, सतगुरु नाम की भक्ति के तुल्य दूसरी कोई भक्ति कबूल नहीं दरगाह में।

हरे माधव पीयूष वचन उपदेश 416 में फरमान आया जी, पूरा गुरु पारब्रह्म ही है, तनिक किंचित भी भेद नहीं और वह जीवात्मा को अमृत नाम मंत्र का भजन कराकर, उन्हें भय भवसागर से उबार, न्यारे भगवान में मिलाता है, इसीलिए ऐ प्यारे स्नेहीजनों! सतगुरु नाम से लिव जोड़ो, सतगुरु नाम से प्रीत रखो, सतगुरु नाम को अंतर ही अंतर जपते रहो, फिर घट ही घट में हरिराया सतगुरु के सत्तरूप में आप मिल पाते हैं।

पूर्ण संत सतगुरु ही इस भेद को जगत में प्रगट करते हैं, सतगुरु अमृत नाम के ज्ञान को, उसके शाश्वत थिर रस को जीवात्मा को देते हैं। सो स्नेही रूहों! रोज नाम शबद का भजन करो, निर्मल सतगुरु नाम का सिमरन करो, सतगुरु नाम अमृत को पीने की कोशिश करो।

गुरु महाराज जी फरमाते हैं, ऐ आतम! जो निर्मल सुखों का भंडार है, तू उसे भूल बैठी है। हर पल मन के संग नाना विचारों की विषयुक्त बेहिसाब लहरें उमड़ रही हैं। तो याद कर, जो सतगुरु नाम के भजन सिमरन से अपनी तार जोड़ते हैं, वे अंतरमुखता में एक अमरा तत्व का भेद पा लेते हैं, लीन हो जाते हैं। जब कमाई वाले अमरा रूप सतगुरु के मुख से अमरा दात मिली तो फिर ऐ प्यारी आतम! तू निश्चल निहचल प्रेम रूप भगवंत समाना। पर यह भी याद रख, बिना नाम रसाए चखाए ऐ आतम! ब्रम्हज्ञान में टिकना न होगा, भ्रमज्ञान नहीं हटेगा।

साहिब जी फरमाते हैं-
बिन नाम जपै ब्रम्ह ज्ञान न होवे, तत्व शबद से निज प्रगटाए

पूरा सतगुरु, हरिराया रूप सतगुरु, हरिमय पुरुख वह तत्व शबद देते हैं जिससे कि अंशी आत्माओं का निजत्व प्रगट हो। जैसे कि अनुभवी हाकिम को हम कहते हैं कि भूख नहीं लगती या हाजमा नहीं बना है, तो वह हाकिम वैसे अर्क वाली गोली टॉनिक देता है, जिसे यदि हम नियमित लेते हैं, आहार-व्यवहार में चलत करते हैं, तो कुछ समय बाद हाजमा बन आता है और स्वस्थता आ जाती है।

परमत्व रूप सतगुरु आतम की ओर इशारा कर रहे हैं, याद कर ऐ आतम! हाड़ मांस का शरीर तेरा नहीं और एक धागे से करोड़ों गुना तो शरीर के अंदर ग्रंथियां भरी हैं, यह भी तेरी गलियां नहीं ऐ आतम। बाबाजी फरमाते हैं, परमत्व शबद के सत्त रूप सतगुरु के अथाह भजन प्रसाद से, जिस जागृत गुप्त प्रसाद का बल मिला और फल मिला, ऐ आतम! उस फल को खा। न स्वांस अमर है, ना जीवन, ना शरीर, ना समूरा जगत, अमृत दिव्य रूप देही के अंदर ही है। जीते जी, जीते जी ही उसे पा। अब जिनके अंदर वह निहचल अमर रूप प्रगट है, ऐसे प्रभुरूप सतगुरु की शांत दिव्य मूरत को, उनके श्री चरण कमलों के ध्यान को, तत्व शबद को अपनाओ और टिकाव बनाओ तो आप भी दिव्य सुख, दिव्य रूप को प्राप्त कर, अमरा रूप को पाओगे।

ऐ प्रभु के अंश! सतगुरु का आतम स्वरूप शबद है, जागृत पूर्ण संतों ने देही तो, हम जीवों को, जगाने समझाने के लिए धारण की हुई है, सतगुरु शबद है, अमृत शबद ही सतगुरु है, जो कि सत्संग शबद वाणी में आया, जी आगे-
।। जिन नाम जपया तिन की ऊँची सदा है शोभा।।
।। जिन नाम पूरा पाया सदा रहे लिव लाए, रिद्ध सिद्ध ताकी करे चाकरी।।

सत्संग वाणी में फरमान आया कि, जो भगत प्रेमी गुरु चरणों के प्रेम के भंवरे बने, सब कुछ अर्पण समपर्ण कर दिया, फिर उनका यश दसों दिशाओं में होता है-
जिन नाम जपया तिन की ऊँची सदा है शोभा

ऐ साधकजनों! हम दुनिया के कितने भी पदार्थों को चख लें, सतगुरु नाम महारस है, उस महारस के बराबर कोई पदार्थ सार नहीं, सच्चे पातशाह सख्त हिदायत करते हैं, कि ऐ बंदे! गुरुनाम जपो, अभ्यास करो, सतगुरु नाम का अभ्यास करो। आतम जो जन्मों-जन्मों से मन-माया की रोगी है, उन मन-माया के रोगों से निबेरा केवल सतगुरु नाम औषध से ही होना है। सो सतगुरु नाम जपो।

जिस तरह शरीर के रोगों, बुखार के समय डॉक्टर की सलाह मशवरे से गोली को लेते हैं, खाने-पीने में पाबंदी रखते हैं, तो अंदर हम स्वस्थ हो जाते हैं, बुखार रोग छू मंतर हो जाता है, बाबा! इसी तरह सतगुरु शबद अमृत नाम पचाना याने जपना याने हजम करना और बाहरी रस भोगों की पाबंदी कर सतगुरु नाम की कमाई हर पल, हर क्षण हमें करनी है, हरिराया के ग्राहक बन हमें करनी है, लक्ष्य प्राप्ति मिलना, सच्चा प्यार, सच्चा इश्क हमें उस हरिराया सतगुरु के पवित्र निर्मल नाम से करना है, जिससे हमारी आत्मा भी पूर्णतः स्वस्थ हो जाए। वाणी में फरमान आया-
जिन नाम पूरा पाया सदा रहे लिव लाए, रिद्ध सिद्ध ताकी करे चाकरी

पूरन सतगुरु प्रगट हरिराया जिस नाम को हमें देता है, उसकी कीमत नहीं आंकी जा सकती, उसकी तुलना तौल नहीं की जा सकती, क्योंकि जब नाम का मीठा स्वाद लेते हैं, तो हरीराया ही अंतर में जाहिर हो उठता है, अब अतुल्य की क्या बात कहें, नाम के अभ्यासी ऐसे रस को पीकर, सुखद अनुभव मंगलकारी निगाह वाला बन जाता है, वह हरिराया के भाणे में ढल जाता है, मन जो निर्मल हो गया है और वह सब हुआ गुरुशब्द से नाम रस को पीकर।

प्यारी संगतों! पूर्ण संतो ने सत्य आतम को, निर्मल पथ दिखाया, कि जीव के घट में हरिराया अपना सच्चा तखत लगा, मौजूद है। शरीर जीवन की हर इक हरकत, उसी के आसरे चल रही है, संत बाबाजी आप मौजे निज खुमारी में संगतें, सुबह से दुनियावी इच्छाऐंं अभिलाषाऐं दिल में भरकर ले आती हैं, मौज में मालिकां जी इनकी भावना देख बक्श देते, सतगुरु बाबा नारायणशाह साहिब जी दोनों हाथों को बंद कर यूं वचन कहे, ‘‘एक हाथ की मुट्ठी में दुनियावी पदारथ और दूसरी मुट्ठी में नाम है, ऐसे नाम के पदार्थ को लेने कम अभिलाषी आ रहे हैं, लेकिन आगे ऐसे अमृत नाम का रस, प्रथम शिरोमणि खुलकर बाँटा जाएगा, शिष्यों को’’ आज वह वचन सत्य सत्य और सत्य अडोल हैं।

सतगुरु बाबा नारायणशाह साहिब जी के परिपूर्ण वचन यथार्थ कि आगे चलके सतगुरु भक्ति के अमीठे गुलाल में रूहें मस्त मगन होंगी, सो आज हम सभी सांझी रूहें उन परिपूर्ण वचनों को पूरन होते देख रहे हैं, स्वयं अनुभव भी कर रहे हैं। हाजि़रां हुज़ूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी की हुज़ूरी में अनन्त ही अनन्त सर्व सांझी रूहें नाम की दात को पाकर भक्ति के रंग में रंगी मस्त मगन हैं, माधव नगर ही नहीं, अपितु गांव नगरों, कस्बों शहरों, देश, विदेश में आपकी दया मेहर से रूहें नाम भक्ति के मार्ग से जुड़ आत्मिक आनन्द पा रही हैं, आप हरे माधव गुरु महाराज जी सर्व सांझी रूहों को तारने जिस नगर थांव जाते हैं, संगतों के हुजूम आपजी के पावन श्री दर्शन पा मस्त हो, आत्मिक रंग में रंग सेवा सत्संग, सिमरन में प्रेमापूर्वक श्री चरणों में भाव विभोर हो, सच्चे प्रेम, इश्क में डूबे रहते हैं। प्यारी साध संगत जी! हरिराया पूर्ण सतगुरु, अमृत नाम, तीनों का रूप एक है, स्वरूप भी एक है और वह है, साचा प्रेम। प्यारा सतगुरु शिष्य को जब दीक्षा अमृत नाम की दात बक्शता है, तो अंतर में अमृत नाम हरिराया की प्रेम प्रीत की निर्मल धारा से जोड़ देता है, सतगुरु जी फरमाते हैं-
अंतर बैठिया राम न्यारा, अमृत नाम रस भर भर पीवां

साधसंगत जी! हरे माधव भागां दूसरे में अमृत वचन साखी उपदेश 56 में जि़क्र आया, हाजिरां हुजूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी का सन् 2016 में उत्तर प्रदेश की धरा पर, जीव तारण हेतु सत्संग का दौरा हुआ, एक गुरु भगत ने जिज्ञासा से अर्ज किया श्रीचरणों में, हे सच्चे पातशाह जी! कमाई वाले सतगुरु से जो अमृत नाम प्राप्त हुआ, तो उस नाम मंत्र को कभी कहीं पढ़ते हैं या कई ज्ञानियों से भी सुनते हैं, तो मेरे मन में यह हलचल हो उठती है कि महातम नाम का है कि पूरे सतगुरु का?

आप हुजूर सतगुरु जी ने फरमाया कि महातम तो वक्त के जीवन मुक्त कमाई वाले सतगुरु का ही है जिनके अंदर अचल पारब्रम्ह पुरुख प्रगटो प्रगट है। ऐसे भारी परमत्व सिद्ध पुरुख जिनके रोम-रोम परममय द्वार खुले हैं, अलौकिकमय हैं, बाबा! जगत या आप ऐसी कदावर भारी कमाई वाले पुरुख को पहचान नहीं पायेंगे, जब वे स्वयं अपना करुणामयी अभेदी भेद, अपार भाव प्रगट करते हैं, और कमाया हुआ अमृत नाममंत्र अपने अनंत के प्रताप से जीव को देते हैं तो वह सतगुरु नाममंत्र जागृत रूप में मिलता है, उसी नाम को पाकर आत्मा जाग सकती है। यदि ज्ञानियों के द्वारा या इधर-उधर से पढ़कर उस नाम का मूल अर्थ जान भी लो, तो ना मुक्ति मिलती है और ना ही हरिराया, ना ही निजता का अनुभव मिल पाता है, ना ही मोक्ष का कुछ चक्र बन पाता है क्योंकि बिना पूरे सतगुरु के वह नाम तो मुर्दा होता है। उसे चाहे कितना भी जपें, कितना भी ध्यायें, आत्मा ऊँची खुमारी में नहीं बैठ पाती, बाबा! संतमत में भजन-सिमरन के भंडारी सतगुरु के कारण ही नाम का महातम है।

भगतां जी! अगर किसी को फ्लाईट से कुल्लू की यात्रा करनी हो, तो वह एक निर्धारित काउंटर से टिकट प्राप्त कर, फ्लाईट में अपना सीट नम्बर देख बैठता है और कुछ समय बाद मंजि़ल पर पहुंच जाता है। अगर आप कहो कि मैं अपनी नकली टिकट बनवाउं और उससे हवाई यात्रा करूं, या रेल्वे की टिकट या ऑटो की टिकट करवा कर फ्लाईट में बैठूं, मन के हठी भाव से अड़ जाए, तो क्या होगा? वह बंदा हाथ जोड़ कहने लगा, सच्चे पातशाह जी! फिर तो वह बंदा यात्रा ही नहीं कर सकता।

आप साहिबान जी ने फरमाया कि इसी तरह प्यारे! महातम प्रकट पूरे सतगुरु का है, वह जीवन मुक्त, प्रगट पारब्रम्ह पुरुख, अचल सिंहासन पर अपनी अलस्ती मौज गहबी मौज में सदा पुरनूर रमत्व है। वह अपने अंदर विदेही मुक्त पद पर स्थित है। जब अमृत नाम का दान प्रत्यक्ष पूरण सतगुरु से लेते हो, तो ही वह नाम सिद्धिदायक होता है, बाकी वह नाम जिसकी आप बात कर रहे हो, उससे जीव का भला कभी नहीं हो सकता। लोकमत, मनमत, शास्त्रमत ये तीनों खेल, काल मन माया के देशों तक सीमित हैं, गुरुमत का पड़ाव इनसे ऊपर है। कमाई वाले सतगुरु के किसी भी वचन को प्रेम चाव से जब शिष्य उठाते हैं, तो इससे शिष्य की रूह निर्मल भाव भक्ति में डूब जाती है।

ये शिष्य के प्रेम प्रीत श्रद्धा विश्वास पर निर्भर करता है। बाबा! आप भले रसगुल्ला नहीं खा सकते पर चाश्नी तो सदा मीठी ही है। वैसे ही शिष्य पूरण सतगुरु के प्रेम में कितना बौरा हैं और उसकी योग्यता कैसी है, यह उसके अटूट प्रेम की चाश्नी पर निर्भर करता है।

हरिराया सतगुरु को हमारे मन की पवित्रता अत्यंत प्रिय है, फिर क्यों न हम सतगुरु नाम के नित्य सिमरन द्वारा मन को निर्मल बनाते रहें। The present True Master is pleased by the purity of our mind, then why not purify our mind through regular meditation of Satguru Naam.

अब जब शिष्य को अमृत नाम का प्रसाद मिला, वह प्रेम पाबंदी से अमृत नाम से अपना निह लगाए, ऐ मुरीद! सतगुरु के नाम में महारास की मिठास है, मिठास ही नहीं, रब ही बैठा भरपूर है, तुम ऐसे प्यारे गुरुनाम के भंवरे, चकोर बनो।

पूरे सतगुरु के नाम में अमर तत्व मौजूद है, जब आप ऐसी लिव तार को अंतरमुखी होकर गाढ़ा करोगे, तो अंतर के पर्दे खुलेंगे, अंतर न्यारे राम हरिराया के अकथ कथा का भेद जान पाओगे। प्रभु की इस रचना काल जगत में अनगिनत रंग हैं, लेकिन सारे निहरस फीके हैं, सतगुरु उस अनामी हरिराया, अपार शाश्वत रंग के भण्डार से रंगा हुआ, नाम दीक्षा के समय रूह को भी आतम रंग में, रंग देता है, सत्संगियों! अगर हम पेड़ से कच्चा आम तोड़ते हैं, बेशक! दिखने में वह कभी पका हुआ दिखाई देता है, काट कर फाक को चखते हैं, तो खट्टा स्वाद जीव के शरीर में दौड़ पड़ता है, हाँ यदि उस कच्चे आम को पकने के लिए, उसे गोली कारबाइड पत्थर में रखते हैं, कुछ दिनों के बाद वही कच्चा फल, मिठास से भर जाता है, चासनी से भर जाता है, आप हम सब मौसम के अनुसार, इस प्रक्रिया का ताजा अनुभव करते हैं। उसी प्रकार, पूर्ण संत अमृत के खुद मुख़्तयार सरोवर चश्मे हैं, जिसमें स्नान कर भाग्यशाली जीव जन्म जन्मांतरों के पापों कर्मां की मैल को धो लेते हैं, जो कि सत्संग शबद वाणी में आया, जी आगे-

।। दास ईश्वर कहता सोई बात, आदि-जुगादि का हुकुम जिन बणाया।।
।। मेरे सतगुरू किया पूरा मस्त हयाना।।
।। वाह वाह हरिराया हरे माधव मेरे प्राण आधारा।।

हुजूर सच्चेपातशाह सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी फरमाते हैं, कि यह सारी कुल कायनात हरे माधव पुरुख दाते की बनायी रचना है, प्रत्येक जीव उस प्रभु दाते के हुकुम से संसार में वर्तण कर रहा है, जो कि वाणी वचनों में आया-
आदि-जुगादि का हुकुम जिन बणाया
मेरे सतगुरू किया पूरा मस्त हयाना
वाह वाह हरिराया हरे माधव मेरे प्राण आधारा

हरे माधव भागां दूसरे में अमृत वचन साखी उपदेश 113 में मनोहर लीला के वचन आए जी, सन् 2013 में हाजि़रां हुज़ूर हरे माधव गुरु साहिबान जी, सागर-दमोह की परमार्थी यात्रा के पश्चात् जब माधवनगर कटनी की ओर रुखसत हो रहे थे, तो आपजी से प्रेमी सेवादारों ने विनती की, हुज़ूर मालिक जी! शहर से दूर संग्रामपुर के जंगल में एक बड़ा मनोरम, मनोहर क्षेत्र बना है, आप वहाँ चलें एवं हम सेवकों को भी अपने संग वहाँ ले चलें, आपजी उन प्रेमियों की विनती स्वीकार कर, वहाँ पहुँचे और कुछ दिन वहीं विश्राम हुआ। हुजूर महाराज जी, सादे से वेश में रोज़ शाम को भ्रमण करने के लिए अकेले ही पैदल निकल पड़ते, दो-तीन किलोमीटर चलने के बाद आपजी एक चबूतरे पर बैठ जाते, आखरी दिन जब आपजी शाम को सैर के लिए निकले, तो सेवादारों को आदेश दिया, कि दो-तीन किलोमीटर दूर जो चबूतरा बना है, आप सभी वहाँ पहुँचे, हम भी भ्रमण कर वहीं पहुँचेंगे। सेवादारी आज्ञा पाकर उस चबूतरे की ओर चल दिए, कुछ समय पश्चात हुजूर महाराज जी भी भ्रमण कर वहाँ पहुँचे। आप साहिबान जी चबूतरे पर विराजमान हुए, सेवादारी जलपान ले आए, उसी चबूतरे के समीप अक्सर एक बुजुर्ग बंदा, रहीम, जिसकी उम्र 80-85 वर्ष थी, जो थोड़ी बहुत करामातों के लिए उस कस्बे में जाने जाते, उस बुजुर्ग बंदे ने उठकर, सेवकों के पास जाकर, हुज़ूर बाबाजी की ओर इशारा कर पूछा, कि ये साहिबान जी कौन हैं? सेवकों ने कहा, ये हमारे मुर्शिद सरकार हरे माधव बाबाजी हैं, वह बंदा भाव प्रेम से भर गया, आँखें भीग गईं, हाथ बंदगीमय हो उठे, रोम-रोम खिल उठा और वह अपने मुख में मंद-मंद कुछ बोलकर विनती पुकार करने लगा। फिर वह सेवादारों से कहने लगा, मैं पचास सालों से बंदगी के नियम का बहुत पाबन्द हूँ, पर नमाज़ बंदगी में मुझे जिस रबियत की तलाश थी, विगत कुछ दिनों से वह रबियत मुझे मिल रहा है, बंदगी के वक्त मुझे इतनी रोशनियां और खुमारी मिल रही है, जिसे मैं बयां नहीं कर पा रहा हूँ। मैं वही सोच रहा था कि इतने वर्षों से मुझे उस रबियत का सुकून नहीं मिला, जो मुझे इन चार-पांच दिनों से मिल रहा है, हो न हो, मैं किसी ऐसी पाक ऊँची हस्ती से मिला हूँ या उनके आस-पास हूँ। गौरतलब यह कि चार-पांच दिनों से यही मुर्शिद बाबाजी इस चबूतरे पर आकर विराजमान होते हैं जिस वक्त मैं बंदगी में बैठता हूँ। आज मैं वह अनुभव कर रहा हूँ जो सूफी रसाई वाली कदावर आत्माओं ने अपने रब्बी वचनों में अमृत में भीगने की बात कही है, उसी का अनुभव कर रहा हूँ।

साधसंगत जी! ऐसी बातें कहते हुए, वह बड़ा ही गद्गद् हो रहा था। जब वह प्रेमी बंदा चबूतरे के पास आया, जहाँ हुजूर साहिबान जी विराजमान थे, बाबाजी ने मधुर वचनों में कहा, प्यारे! जो रबियत का आनन्द मिल रहा है, उसमें आप और गहरे सागर में उतरो। वह श्री चरणों में सजदा कर कहने लगा, मैंने कई सूफी दरवेशों, बड़ी कमाई वालों के पैगाम पढ़े-सुने हैं, सभी ने मुर्शिदे आज़म का जि़क्र किया है, उनकी पनाह में अमृत का भण्डार मिलता है यानि वह हमारे रोम-रोम को, आतम को उस परम अमृत से नहाने का बल देता है और हुजूर जी! जो मुझे लंबे अरसे से की बंदगी से नहीं मिला, वह सब मैंने आपजी की चंद पलों की हुजूरी में ही पा लिया। वाह वाह सतगुरु मुर्शिद जी।

आप गुरु साहिबान जी ने फरमाया, कि इस राह में हर एक मुरीद को अपने अंदर एक स्तर में जाना होता है, जहाँ पर वह इस पात्रता या स्तर वाला बन जाता है, तभी वह ऐसा रबियत का अमृत पी पाता है, आप पर प्यारे रब का रब्बी कर्म है, आप पर हौज़-ए-कौसर का सुरूर बरसा है। लेकिन उसने कहा, बाबाजी! यह सब तो आपजी का ही फज़ल-ए-करम है, वरन् मैं तो खोजी था, गुमनाम था, आपके दीद-दरस से मेरा रोम-रोम अमृत से भर गया, मैं निहाल हो गया।

सो प्यारों! पूरन सतगुरु के दर्शन, उनकी चरण रज हमारी खोजियत को मुकम्मल करती है, रूह को मंजिल तक पहुँचाती है। जो कि सत्संग वाणी में आया-
मेरे सतगुरू किया पूरा मस्त हयाना
वाह वाह हरिराया हरे माधव मेरे प्राण आधारा

सो गुरु शरण संगत में बैठे स्नेहीजनों! सतगुरु नाम शबद के अभ्यास के लिए आज का समय निश्चित रखें क्योंकि समय का चक्र बहता ही जा रहा है। आज का समय कल नहीं आयेगा, सतगुरु नाम का जाप आज से करें, हर रोज़ करें। Devote time for the meditation of Satguru Naam today for the time has been running out. Time once lost will never return, so meditate upon the holy word from now
itself and do it everyday.

सत्संग के परम प्यारे वचन हमें अंदरूनी रोशनी से जुड़ने की ओर इशारा, प्यारे मालिकां जी वचन मेहर के बक्श रहे हैं, हमें उठाने हैं। प्यारों! नाम का सिमरन निशदिन करें, साधसंगत में आकर, पंगत लगाकर नाम जपें। गुरु शरण सत्संगत में नित नियम रखें और सेवा की महत्वता महानता में घुलमिल जाऐं, प्यारे सतगुरु के परम प्यारे वचनों के अंदर, सुमत का भण्डार छिपा है, मन, वचन, कर्म से भवरें बनने की ओर अपना रुख करें। सो विनती है, महारस के सच्चे पातशाह सतगुरां के श्री चरणों में, कि हमें सतगुरु नाम सिमरन की आशीष देवो-2 मेहर करो माधव जी, दया करो मेरे सतगुरु जी।

।। दास ईश्वर कहता सोई बात, आदि-जुगादि का हुकुम जिन बणाया।।
।। मेरे सतगुरू किया पूरा मस्त हयाना।।
।। वाह वाह हरिराया हरे माधव मेरे प्राण आधारा।।

हरे माधव    हरे माधव    हरे माधव