|| हरे माधव दयाल की दया || 

।। मनवा जप तू गुरु का शबद, गुरु का शबद सिमरो सुरति हरि नाम पियारा।।
।। नाम जपत मन निर्मल होत, अंतर चैन अमृत छाया।।
।। नाम लगत अनहद बाजत, आतम निर्भव रूप होए।।
।। सतगुरु खोज साचा, नाम अर्क शिष्य को देवै।।

गुरु महाराज की पवित्र ओट छाया में बैठी संगतों! हुज़ूर साहिबान जी के चरण कमलों में हम सबका बड़ा प्यारा सजदा श्रद्धावंत नमस्कार दण्डवत कबूल हो। सतगुरु की प्यारी संगतों को हरे माधव हरे माधव हरे माधव।

हरि प्रभु रूप सतगुरु की शरण में सत्संग संगति में सभी शिष्य भगतों आत्माओं को बड़ी सच्ची, हरिराया के निजघर की सोझी, भक्ति, सिमरन ध्यान एवं अनूपम सतगुरु लीला की मनोहर छवि का दर्शन मिल रहा है।

पूरण सतगुरु साहिब प्रभु दरगाह की वाणियाँ, अपनी मौज में समय-समय पर फरमाते हैं। आज के सत्संग फरमान की दरगाही वाणी आपजी ने रात्रि 1ः00-2ः00 बजे के मध्य, 11 मार्च 2018, रविवार को फरमाई। प्यारी वाणी के यह बोल-

मनवा जप तू गुरु का शबद, गुरु का शबद सिमरो सुरति हरि नाम पियारा

आप गुरु साहिबान जी अनमोल अमरा करम भाव का उपदेश धुर की वाणी में दे रहे हैं, कि ऐ मना! यह जग केवल सराय खाना है फिर तू क्यों मूरख बन दुखी हो रहा है, इधर-उधर भटक रहा है, ऐ मना! सतगुरु के नाम को सिमरो, सतगुरु के अमृत मंत्र नाम से लाग लपेट रखो, पूरण सतगुरु साचे की चरण-शरण ऐ मना तू हृदय में बिठाओ।

ऐ मन! देख दुनिया के रंग तमाशे, मन इंद्रियों के कितने विकार घट में कूड़े करकट की तरह भर बैठा है। ऐ आतम! सतगुरु नाम को सिमरो। साचे सतगुरु से मिला हुआ अमृत नाम व्यापक अक्षय सुखों का अकूत भण्डार है, ऐ शिष्य की आतम! जितना आप निह नेम से सतगुरु शबद का भजन करते हैं, मन चित शांत निर्मल हो उठता है, जितना सतगुरु के बक्शे हरिनाम में आप प्रीत से सिमरन की बगिया में बैठते हो, तो आपके अंतर में दिव्य अलौकिक गुणों रूपी पुष्प खिल उठते हैं, ऐ शिष्य रूपी आत्मा! आपके विचार निर्मल होने लगते हैं, आँखों पर गफलत चढ़े पर्दे गिर पड़ते हैं, अंतर में पूर्ण समर्पण भाव जागरुक होता है और दिव्य सुख दिव्य नूर हरे माधव का खिल उठता है। ऐ शिष्य! तू जिसका अंश है, वह तुझमें समाया है, उसमें दया है, विराट करूणा है, पर यह ज्ञानाधिक बातों से हल नहीं होना, ऐ मन! तू पूरन सतगुरु के नाम का पूजन कर, नाम का सिमरन कर, फिर तुझे विराट करूणा, अमरता का खुमार माधव हरिराया का इकमत शाश्वत सुख मिलेगा।

हरे माधव लॉर्ड! ऑलवेज ब्लेसेज हिज़ बेनेवालेन्स अपॉन दोस हू बिहोल्ड गुड थॉट्स एंड सर्व फॉर द वेलफेयर ऑफ अदर्स।

सतगुरु बाबा माधवशाह साहिब जी से शिष्य ने पूछा ऐ मालिक! संसार में गुरु सतगुरु की तादात काफी है, न हमारी आँख है, न हमारी कमाई है, कि वे पूरन रसाई वाले हैं। करतार के रूप उस दुनिया से आए, पर हम जीव उनकी किस प्रकार पहचान करें। तो आपजी ने कहा, जिनके मुख से हर पल वाणी बहती हो, वही दरगाह से आए हैं, जिनके मुख से प्रभु निरंकार की वाणी वचन बहते हैं, वही करतारा रूप पूरण सांचा सतगुरु है, बस वहीं समर्पण कुर्बान हो जाना, इससे और कोई ऊँची उपमा नहीं हो सकती, बस मुख से दरगाही वाणी बहती है, तो कहा-

साध की रसना प्रभु वसै-2

हरि प्रभु सतगुरु रूप में प्रगटा है और अपने मुबारक संदेश वह अपनी दरगाही वाणी के द्वारा देते हैं। हरे माधव पंथ के उन्नायक हाजि़रां हुजूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी प्रभु के हुकुम से अपने पावन श्रीमुख से रब्बी वाणीयाँ फरमा कर, अनुपम लीलाओं द्वारा चहुंवर्णों की रूहों को आंतरिक अमरता का फरमान दे रहे हैं। हरे माधव अचल अखण्ड पथ की नींव रखकर यथार्थ उपदेश अमरता की ओर जाने वाला अमरा पथ जीवजगत को दे रहे हैं।

आप गुरु साहिबान जी, आज के सत्संग की वाणी फरमान में समझा रहे हैं-

नाम जपत मन निर्मल होत, अंतर चैन अमृत छाया
नाम लगत अनहद बाजत, आतम निर्भव रूप होए

ऐ शिष्य! सतगुरु नाम वो साबुन है, जो जन्मों से मैले मन को धोकर निर्मल कर देता है। जो हर पल जीव के मन की लहरें मैली हो बहती हैं, इसी मन के कारण जीव दुखी अशांत मन गंदला है, तो आपजी कहते हैं, बाबा! सुनो चित्त लाए मन की नाम से प्रीत रखो, अमृत नाम की चाह हर पल बनी रहे, उस नाम को सिमर सिमर फिर सिमरन करो, अभ्यास जुड़ाव का हो तो आज नहीं तो कल, यह मन सतगुरु के नाम में सुख ही सुख पा लेगा, फिर ऐ शिष्य! जैसे कमल का पुष्प पानी में खिला तैरता रहता है, हमेशा निर्लेप अछूता रहता है, इसी तरह तुम सतगुरु के अमृत नाम में रसकर, भवसागर की कीचड़ से निराले होकर खिले रहोगे, मन मायावी मलीनता में नहीं घिरेगा, इसीलिए याद रखो, जो हरिनाम हरिराया के अमृत नाम की अराधना सिमरते हैं, सतत् अभ्यास करते हैं, अंतर में अनहद की तान को सुनते हैं उनकी आतम निर्भव रूप होती है। वे सदा निर्लेपी आनंदित जीवन जीते हैं।

नाम लगत अनहद बाजत, आतम निर्भव रूप होए
मनवा जप तू गुरु का शबद, मनवा जप तू गुरु का शबद

सतगुरु बाबा नारायणशाह साहिब जी के प्यारे फरमान, कि मन का स्वभाव चंचल है, मन स्वभाविक ही बाहरी संसार के प्रीत से
बंधा रहता है, हरपल भोग पदार्थों के नए-नए प्लान बनाता फिरता है यह मन। ऐ शिष्य! यह सदा याद रख, कि जब सतगुरु की शरण आओ, तो सतगुरु के शबद में उनकी चरण प्रीत में मन को रमाओ, सतगुरु दरशन इक टिक करो, सुहिणे दरस में मन को रमाओ, अंतर में नाम का जाप रहे, सत्संग में मन तुझे भरमाएगा, ऐ प्यारे! मन कितना भी दौड़ाए दलीलें देगा, कि घर का काम करना है, अमुक काम दुकान, हाट में छोड़ आए हैं, सत्संग बहुत बड़ा है, आज सत्संग सेवा में जल्दी आया था, या आज सत्संग सेवा से घर जल्दी जाए या मन सेवा साध संगत करते-करते मन में द्वैष भाव रहे, कि इस सेवक ने ऐसा कहा, अब मैं उसे वैसा कहूंगा, इससे साड़ रखूंगा, अमुक से सत्कार से बोलूंगा, आपजी ने कहा-

बाबा खाली थी अचो, बाबा खाली थी अचो
मन को भाव प्रेम नाम में टिकाओ

साध संगत जी जब यह मन साधसंगत में, सत्संग में आपको भरमाए, आप सतगुरु प्यारे के मनमोहक सुन्दर सुहणे दरस करते-करते पुकार कर, मन को वश में कर सत्संग में मन को टिकाओ, जब यह मन सतगुरु दरस कर सत्संग वचनों को श्रवण करेगा, सतगुरु मेहर से मन बस में होगा और सिमरन में रचेगा, जब यह मन नित नियम सतगुरु नाम चाकरी में रमा रहेगा, फिर ऐ शिष्य! तेरे मन में वैराग्य त्याग एवं अजायब शाश्वत सुख मन पर चढ़ा रहेगा, सतगुरु दरशन, सत्संग का अमीठा सुख आतम को भाएगा, हरिराया सतगुरु की प्रीत का, ऐ जीवात्मा! जैसे जीभ मुंह में कैसे पिरोइ गई है, दाते के द्वारा, हम घी युक्त चिकनाई भरे पदार्थों को खाते हैं, लेकिन मुख में वह जीभ चिकनाहट भरी नहीं हो पाती, इसी तरह सतगुरु बाबाजी यह नहीं कहते, कि फर्ज कार्य व्यवहार दायित्व निर्वहन न करें, आप मालिकां जी का यही संदेश है, कि दुनिया के हर एक पदार्थों को अपनी सहुलीयत और जरूरत हो, उसी के अनुसार जीवन प्रयोग में लाओ और मन को गुरु शबद में लगाओ, आतम को सिमरन में रमाओ, कमल के फूल की तरह खिलो, डूबो नहीं निर्लेप रहो, तभी आपको यह शाश्वत सुख प्राप्त होगा।

ओ हरे माधव एमपरर, बी द चैरिएटर टू माय लाइफ’स् चैरियेट एंड गाइड माय फिकल माइंड टूवर्डस् राइट डायरेक्शन।

ऐ रब के अंश! मन को जो सतगुरु सत्त शबद से हर पल जोड़े रहता है, निरंतर अभ्यास द्वारा जिनकी सुरति कमाई वाले सतगुरु के ध्यान में लीन रहती है, वे जीवात्मा संसार सागर में सारे फर्ज अदा करते हुए मक्खन के समान निर्लेप रहते हैं।

संत कबीर जी बड़े प्यारे फरमान दे रहे हैं-

साध संगत गुरुदेव ऊहां चलि जाइये-2
भाव भक्ति उपेदश तहां ते पाइये
अस संगत जरि जाव न चरचा नाम की
दूलह बिना बरात, कहों किस काम की

संतजी ने बड़ी प्यारी बात कही, कि पूरन साध संगत करो, सतगुरु दयाल के पवित्र दर्शन हों, सतगुरु पूरन साधु की पवित्र शरण संगति से भाव भक्ति प्रेम प्रीत का शरण की चाह आतम को झोली में प्राप्त होता है, कहा, ऐसे पूरन गुरुदेव के शरण संगति में जाओ, जहाँ पर वे तुम्हारे मन को सोधकर जुगति दें। मन को निर्मल दर्पण की जुगति दें, इसके लिए हमें सतगुरु भाव भक्ति प्रेमा भक्ति का भाव बढ़ाना चाहिए, अब इसके विपरीत संत जी कहते हैं-

अस संगत जरि जाव न चरचा नाम की

उस संगति को जला देना याने छोड़ देना चाहिए, जहाँ नाम अमृत पावन भक्ति की चर्चा ही नहीं होती है और केवल शरीर इन्द्रिय संबंधी चर्चा होती है, बेशक संसारिक कार्य व्यवहार में वर्तण करना भी आवश्यक है लेकिन सार वस्तु तो हरिराया का नाम है, उसकी भक्ति है, उसी का प्रेम है, बाकी सारा विषय गौण ही है।
संत जी प्यारा तर्क दे कह रहे हैं-

दूलह बिना बरात, कहों किस काम की

खाना पीना सोज सजावट सब हुआ, पर दूल्हे के बिना बरात किस काम की, इसी तरह संत जी कहते हैं, हरि नाम हरि भक्ति के बिन यह मानव जीवन भी किसी काम का नहीं। सतगुरु बाबा नारायणशाह साहिब जी फरमाते हैं,

गुरुअ बिना गत न, शाह बिना पत न

ऐ प्यारों! पानी से भरे तालाब चश्में में हमें अगर तैरना सीखना है, तो जो उस्ताद तालाब चश्में के तैराकी हुनरकार हैं, हम उनके शागिर्द बन तैराकी सीख लेते हैं, अगर समुद्र महासमुद्र में तैरना सीखना है, तो महाविराट सागर वाला वह ऊँचा उस्ताद, हमें समुद्र महासमुद्र की लहरों थपेड़ों से बचके आगे बढ़ना सिखाता है और वही हमें महासमुद्र पार उतार सकता है। इसी तरह भारी भजन सिमरन की कमाई वाले प्रत्यक्ष पूरन सतगुरु के बिना आज तक कोई भी आतम रूह संसार भवसागर से पार होकर, हरिराया में अभेदी नहीं हुई है। हाजिरां हुजूर गुरु महाराज जी वाणी में फरमाते हैं-

सतगुरु खोज साचा, नाम अर्क शिष्य को देवै

हिज़ होलीनेस वोकलाइज इन वानी द स्ट्रेंग्थ एंड एबीलिटी ऑफ शोइंग द पाथ ऑफ लॉर्डस् डिवोशन एंड युनियन विथ हिम। हिज असाइन्ड टू लॉर्ड सतगुरु ऑफ प्रजेन्ट टाइम बाय द लॉर्ड हिमसैल्फ। द सतगुरु बेस्टोस द एलिग्ज़र ऑफ लॉर्डस् होली वर्डस् टू द डिसाइपल्स दैट इरेडिकेट्स, ही इल्यूज़न्स ग्रेजुअली एंड द अकाउंट ऑफ कर्मास् एंड शॉवर्स ब्लिसफुल कलर्स ऑफ द सुप्रीम हरे माधव लॉर्ड।

पूरन सतगुरु के चरण कमलों में जब शिष्य अनन्य प्रेम अनन्य श्रद्धा का भाव प्यार बिठाता है, शिष्य की रूह याचना पे याचना करती है, कि हे दयाल सतगुरु! मुझे परम तत्व मीठा नाम बक्शो, दयाल सतगुरु पूरन शबद का दान दे, पूरण सतगुरु शिष्य के हृदय घट में बंदगी साधना बीज अर्क डाल देता है, जो कि अभ्यासी शिष्य के लिए आंतरिक रूहानी पड़ाव है, राह है, माधव रब में एकाकार होने का। जो भजे सतगुरु नाम को सदा, सो ही परम पद को है पाए।
जो कि सत्संग की पावन शबद वाणी में फरमान आया, जी आगे-

।। पाँचऐं चोर दौड़े भागै, माधव रब पुरुख मिलावै।।
।। कहे दास ईश्वर आवन जावन दुख छुटऐ।।
।। सतगुरु शबद तत्व कौ विरला पावै।।
।। हरे माधव ज्योत मिलावै, सतगुरु शबद न्यारा संतो।।

गुरु महाराज जी फरमाते हैं, ‘‘ऐ मना! ऐ हरे माधव प्रभु की अंश आतम! तू अपने निज असल निज शाश्वत घर की ओर ले जाने वाले समय के कमाई वाले सच्चे सतगुरु से पवित्र नाम आसरा पवित्र नाम का जपन कर उदम करो, पाँच चोर मन में कितने ही अरुची भाव, चंचल कामनाओं से डगमगाए, फिर भी अडिग हो, प्यारे सतगुरु की प्रीत सतगुरु शबद को अपने ख्याल मन विचार उसी में लगाओ, फिर आपके हृदय में माधव भक्ति माधव प्रेम, सतगुरु सिमरन ध्यान, वैराग्य, उत्तम विवेक हर पल उसी के भाणें में मीठे भाव मन में आ प्र्रगट होते हैं’’ और आतम को माधव रब्बल का सुख मिलता है।

पाँचऐं चोर दौड़े भागै, माधव रब पुरुख मिलावै

प्यारे सतगुरु के यह परम वचन, ऐ मना गांठ बांध लो। हाजि़रां हुज़ूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी से एक प्यारे गोले शिष्य ने जिज्ञासा की, हुज़ूर जी! सतगुरु सिमरन के समय यह मन बड़ा भरमाता है। हे प्रभु जीयो! भजन सिमरन के समय जीयरा मायावी विचारों से इतना भर जाता है, हजारों बखेड़े यह मन खड़ा कर देता है, इस मन की दशा आपे के बाहर हो जाती है। हम बैठ ही नहीं पाते, बैठक करते भी हैं, बाबाजी, तो यह मन बस में नहीं हो पाता, दया करें बाबाजी, मेहर करें सांई जी, मेहर करें। आप गुरु साहिबान जी ने रूहानी मुस्कुराहट भरे मुखड़े से यह वचन विलास फरमाए, ऐ प्यारे! आप देखो, दूध को जल में डाल दें, तो वह यकायक उसमें मिलनसार हो जाता है, मिलनसार हो जाता है न?

वह प्यारा कहने लगा, जी साहिब जी। आपजी फरमाए, फिर इसी दूध की दही जमाकर उसे साफ बर्तनों में धोकर मांजकर उसी दही को मथकर मक्खन निकाल लिया जाए, तो यह बात हो सकती है। हथ जोड़ वह प्यारा कहने लगा, जी गरीबनवाज। आपजी ने कहा, फिर उसी मक्खन को जल में मिलाया जाए, अब तो वह जल में नहीं मिलता, ऊपर ही ऊपर तैरने लगता है, प्यारा कहने लगा, जी सच्चे पातशाह। हुजूरों ने फरमाया, तो बेटा! इसी तरह युगों जन्मों से यह जीवात्मा भी दूध के सम है, जब मन माया रूपी जगत की संगति मिली, तो उसी में माया रूपी जगत में घुल मिल एक हो विचरती है। जब साधसंगत में जीवात्मा रूपी दूध को, माया के द्वंद में, नाम भक्ति, सतगुरु प्रेम और सत्संग की मथनी से मथ कर (याने सतगुरु भगति, बंदगी का अभ्यासी होकर) उसे मक्खन के समान बना दिया जाता है, मायावी जल में रहते अर्थात् (संसार में रहते हुए भी) मक्खन के समान ऊपर ही ऊपर तैरते रहते हैं, वे अपने अंतर सच्चे ध्यानी गुरुमुख हंस बन जाते हैं। ऐ प्यारों! यह सब केवल और केवल सतगुरु भक्ति श्रीचरणों में पुख्ता प्रेम हो, बंदगी गाढ़ी हो, नियमित अभ्यास हो, तो यह मन आपको नहीं भरमाएगा। नाम शबद अभ्यास में बैठक पुख्ता होकर करें, मन भरमाए, दलीलें दे, पर आप सिमरन दृढ़ होकर करें, मन भले ना रमे बंदगी से, पर आप उठे नहीं, सिमरन अभ्यास से उठे नहीं। आप सतगुरु श्री चरणों में पुकार प्रार्थना करें, अंतर में भाव से पुकार करें, आँखों से अश्रु बह उठें, फिर मन को पुनः नाम सिमरन में रमाऐं, यह मन रमेगा, सिमरन पकेगा, सतगुरु मेहर से नाम सिमरन का महारस अंतर में प्राप्त होगा।

साधसंगत जी! जिस तरह आप लोग मोबाईल से अमुक स्नेही से कोई मशवरा काम काज के सिलसिले में कॉल लगाते हैं, तो नेटवर्क ना होने के कारण कभी-कभी मोबाईल कॉल नहीं लगता, पर आप प्रयास करते रहते हैं, एक दो या दस बार, जब नेटवर्क आ जाता है, फिर मोबाईल कनेक्ट हो जाता है, जिससे कि आपका स्नेही जनों से सम्पर्क जुड़ जाता है और बात मशवरा कारज हो जाता है, सो प्यारे इसी तरह सिमरन अभ्यास का नियम भी जारी रखें, यह मन शब्द से भले ना जुड़े, पर अभ्यास करते रहें, नाम को जपते रहें, हरिराया सतगुरु से अंतर ही अंतर सुरति की तार जुड़ जाएगी।

मनवा जप तू गुरु का शबद

गुरु महराज जी! अनमोल सार वचन सत्संग वाणी में ऊँचा गहबी संदेश दे रहे हैं, कि मन को बार-बार सतगुरु शबद के सिमरन से जोड़ यह मन रूपी भूत हर पल हर क्षण बाहर ही बाहर दौड़ा करता है, इसे हर पल सतगुरु के अमृत नाम से जोड़ते रहो, बाहरी जगत से तोड़, सतगुरु शबद से अपना लाग बनाते रहो। बाबा! सतगुरु के शबद का सिमरन शांत भाव प्रीत भाव से करते रहो, पूरण सतगुरु, पूरण शबद ही शिष्य को दीक्षा के समय बक्शता है, जब तक सतगुरु शबद से सुरति का पूरा राग नहीं बिठा, वह अज्ञान संतापों से नहीं उबर सकता, इसीलिए ऐ प्राणी! सच्ची निर्मल प्रीत तो सतगुरु शबद का ध्यान है, अमृत नाम निःकरम प्रीत भगति है, हरे माधव पारब्रम्ह में लीन होने का एको साधन है, हरे माधव ज्योत में मिलने का एको साधन है। सतगुरु शबद की साधना।
सत्संग वाणी में फरमान आया-

कहे दास ईश्वर आवन जावन दुख छुटऐ
सतगुरु शबद तत्व कौ विरला पावै
हरे माधव ज्योत मिलावै, सतगुरु शबद न्यारा संतो

साधसंगत जी! आवन जावन के छुटकारे का एको मात्र साधन सतगुरु पूरन के अमृत नाम का भजन है, ऐ मन! तू अपने निज मूल को पहचान। संगतों! कर्मों का नाता मन से है, बेशक आतम कोई भी करम भाव में भरी है, मन ही इसे इंद्रियों के तटों पर मोहित कर घसीट कर ले जाता है, भिन्न-भिन्न तरह करम करा भरमाता है, चौरासी के बंधन में फंसा देता है, इसीलिए गुरु महराज जी कहते हैं-

मनवा जप तू गुरु का शबद
कहे दास ईश्वर आवन जावन दुख छुटऐ

मन अमृत नाम की डोर को पकड़ अभ्यास करते-करते कमाई वाले सतगुरु के नूरी स्वरूप में जप कर लीन होकर, गगन घर निजघर शाश्वत घर हरे माधव निज चैतन्य लोक में मिल जाता है, यह मन और आतम की जकड़न जिसे सिंधी में गन्ढ या गाँठ खुल जाती है, पाप-पुण्य आया मनसा के फन्दे टूट जाते हैं, मन सतगुरु के नाम से लौ लगाते लगाते अमृतमय हो उठता है। जनम-जन्मान्तरों की अतृप्त भूख खत्म हो जाती है। आपजी कहते हैं, संगतों! फिर यह मन निहचल निश्चल हो उठता है, बाकी आप नाम शबद की कमाई करो और ताजा अनुभव खुद कर देखो, बच्चे जब पानी में उतरेंगे, तो तैरना सीखेंगे। मन के ख्याली पुलाव बनाते रहोगे, कि कहीं डूब न जाए, मुंह में पानी न चला जाए, अन्य भी कई कमजोर ख्याल हमें घेर लेते हैं-

सो प्यारों! पूरन सतगुरु भवसागर रूपी तालाब में कुशल तैराक, तारू है जी, आओ उतरो, इस नाम बंदगी के तार से जुड़ो, पूरन संगति साधसंगत से जुड़ो, फिर कहा-

हरे माधव ज्योत मिलावै, सतगुरु शबद न्यारा संतो

हाजिरां हुजूर, हरे माधव बाबाजी की मौज सन् 2014, 4 मार्च, मंगलवार को जबलपुर शहर में हरे माधव सत्संग की मौज हुई, वहां एक गुरुभगत सुखाराम, जिसकी उम्र 57 साल थी, उसने मालिकों की दया मेहर का, बड़ी अंदरूनी यात्रा का बड़ा गहरा लुत्फ़ सुनाया, आतम रूहानी राह का कि मैं सत्रह-अठारह सालों से बगैर सतगुरु के नाम का अभ्यास बड़े प्रेम चाह से सात-आठ घण्टे नित्य नियम से करता था, सभी पूर्ण संतों ने देही के अंदरूनी भिन्न-भिन्न जगत और उसके बाद के अमृत मण्डल का जिक्र किया है, उसका मैं खूब खोजी था। खूब बाहरमुखी राहें पकड़ी, तीर्थों व्रतों को भी धारण किया, शास्त्रों कर्मकाण्डों में भी खोज लिया, पर कहीं न मिला, मुझे मिला तो भारी कमाई वाले साचे सतगुरु की दया मेहर से, हरे माधव बाबा जी की मेहर।

जब हाजि़रां हुज़ूर मालिकां जी हमारे नगर में आए, वहाँ मैंने सतगुरु प्यारे का दर्शन किया, जब चरण हुज़ूरी में माथा टेकने गया, तो आपजी ने कहा, बड़े सत्य के प्रति लालायित हो रहे हो आप? नूर की नज़र हो गई, मैंने चरणों में विनती की, मालिकां जी, मेहर करें, अमृत नाम की बक्शीश घट अंतर अमृत बक्शों। मालिकों की मेहर हुई, सुबह के समय आपजी द्वारा अमृत सतगुरु शबद की बक्शीश हुई, कमाई वाले सतगुरु से नाम शबद प्राप्त कर, अभ्यास करते-करते, मेरी आत्मा ने अपने अंतर अक्षय फलों को पाया, मैंने अपने अंदर इतनी बेशुमार दुनिया के नज़ारे देखे, मेरे मुख से कुछ शब्द न निकल सके, बस वाह-वाह के, वाह-वाह के, शुकर ही शुकर। मैं श्री चरणों में माथा टेक अपने घर को आ गया, मैं ज़ारो-ज़ार रोने लगा, यह मेरा रोना खुशी का था, क्योंकि अभ्यास करते-करते, मैंने जो सभी पूर्ण संतों की वाणियां में अंदरूनी जगत की रूहानी यात्रा के खूब बेशुमार कथाएं पढ़े सुने और वह अमृत, जिसकी महिमा मैंने सुनी वह मैनें अपने अंदर उस न्यारे सतगुरु शबद में अमृत ही अमृत कितना अनोखा नूर छुपा है वह सब पाया। मैं इतने सालों तक कठिन परिश्रम से लोकमत शास्त्रमत का आधार ले नाम जपता था, पर सभी कहते प्रत्यक्ष पूर्ण सतगुरु कमाई वाला, अपने पावन मुख से पूर्ण नाम का शबद, अर्क गुरुमुख के घट में रखता है और वह सुहेली नज़र से अंदरूनी दिव्य अलौकिक नजारों को हमें दिखाता और अमृत महारस अपनी नूर की आँख से पिलाता है, पर इसके लिए चाहिए पाक दिल, शुद्ध भावना पिपासा।

साधसंगत जी! ऐसी रूहें फिर जब अभ्यास कर, नूर में ऊपर गई, तो सतगुरु के दिव्य स्वरूप में कितने सहस्त्र कमलों के नज़ारे दिखे, उसके बाद सतगुरु रूह का हाथ थाम इस तरह ले गए, जैसे बच्चे का हाथ थाम बुर्जुगजन, पिता घुमाता है, इससे अधिक का तो कहाँ जिक्र हो सकेगा। जिसका गुणगान, आप हरे माधव बाबाजी ने अपनी परम रब्बी वाणी में कह फरमाया-

मैं ढूँढ थका तिस राम न्यारे जी को, जाको अन्तर मांहि बसा
गुरु से मैं जब नाम लिया, नाम सुनत मन मांहि प्रकाशा
नाम गुरु का मीठा लागै, नाम गुरु ते पाया सब कुछ
तीरथ ढूँढे जंगल खोजत, खोजत केते बीया बाना
जोग में वो नाहिं मिलिया, भोग में वो जाको नहिं मिलिया
‘‘दास ईश्वर’’ अंतर मिलिया, जब गुरु शबद ध्यान लगायो

साधसंगत जी! कमाई वाले प्यारे सतगुरु की महिमा तो अतुलनीयमय है। जो सतगुरु में अटूट विश्वास भोले भाव से रहते हैं, उनकी रूह जल्दी ऊपर चढ़ाई करती है और जो बड़े चतुर स्याने बनकर रहते हैं याने उनकी चेतना सारा दिन मन के ख्यालों में बहती रहती है, उन्हें समय लगता है, लेकिन सत्त् अभ्यास करने से ऐसी रूहें भी आज नहीं तो कल अभ्यास कर, सतगुरु की मेहर से ऊँची उठेंगी। प्यारे सतगुरु में मन, वचन कर्म से सच्चे होकर शबद को जपते रहें।

मनवा जप तू गुरु का शबद-2

साधसंगत जी! जैसे आप मौसंबी के छिलके उतारकर गूदे के अंदर छिपे हुए विटामिन्स तक पहुँच जाते हैं, उसी तरह पूरण सतगुरु नाम-अभ्यास की वादियों से होते हुए, आप अपनी रूह के गिलाफ उतारकर हरे माधव निज पुरुख में एकाकार हो जाते हैं।

हरे माधव ज्योत मिलावै, सतगुरु शबद न्यारा संतो-2

सो विनती है, हे दीनन दुख हरन सतगुरु देव! हम दीनों को भी अमृत शबद नाम मंत्र रस की बरकत बक्श, आशीष बक्श। सच्चा सुख नाम का दे, अपने श्रीचरणों की पुख्ती डोर बक्श, बाबाजी नाम आशीष बक्श, नाम आशीष बक्श।

।। कहे दास ईश्वर आवन जावन दुख छुटऐ।।
।। सतगुरु शबद तत्व कौ विरला पावै।।
।। हरे माधव ज्योत मिलावै, सतगुरु शबद न्यारा संतो।।

हरे माधव     हरे माधव     हरे माधव