|| हरे माधव दयाल की दया ||

।। मैं कहूँ इक बात साची, सुनो प्यारो सतगुरु संग राची।।
।। नाम नियारा शरण पाओ, भव जल से उतरो तुम पारा।।
।। सिमरन ध्यान सतगुरु बतावे, नाम से सुरत सचखण्ड जावे।।

भजन सिमरन के भंडारी सतगुरु मालिक की शरण छांव में बैठी प्यारी साधसंगत जीयो! आप सभी को हरे माधव। गुरु महाराज बाबल के दर्शन दीदार ओट में बैठे सत्संगियों आज की प्यारी मिट्ठी वाणी हुज़ूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी की बड़ी प्यारी अमृतमयी वाणी है। आप सतगुरु मालिकां जी फरमाते हैं, कि यह सुरति, उस अगोचर दाते से बिछड़ कर माया के भंवर जाल में फंसी हुई है, जीवात्मा उसी अगोचर मालिक का अंश है और वह उसके अंदर ही बैठा है लेकिन जीवात्मा पर मल, विखेप और आवरण के दोष चढ़े हैं, इसी कारण साहिब से मिलाप होना कठिन हो गया है। भंवर से निकलने की अपेक्षा जीवात्मा उसमें और अधिक फंसती जा रही है। जिस तरह महासागर में सुनामी भंवर आते हैं और जो जलयान उसमें फंस जाता है, उसका निकलना दुष्वार हो जाता है। अनेक यतन करने पर भी निकलना संभव कहाँ हो पाता है? जब उसे कोई बाहरी प्रबल सहायता मिले तभी बच पाना संभव होता है। ठीक इसी तरह प्यारे सत्संगियों! सुरति को मन माया की आँधी-भंवर से निकालने के लिए विराट सहायक की आवश्यकता है, जब तक हमारा हाथ पकड़ निकालने वाला समर्थवान सहायक न मिलेगा, तब तक इससे उबरना कठिन है। वह विराट समर्थवान सहायक है, केवल और केवल वक्त के प्रगट हरिराया सतगुरु। वे रूहानी कलाओं और शक्तियों के मालिक, भारी भजन सिमरन की कमाई वाले होते हैं, जो जीवात्मा को पंच रोगों, अनेक अवगुणों की गुलामी से मुक्त करा, अपने साथ लेकर मालिक से मिला लेते हैं। वे अपने भारी भजन बल से आत्मा को सिमरन ध्यान की युक्ति देकर भवजाल से पार करने की सामर्थ्यता रखते हैं, जो कि सत्संग वाणी में आया-

मैं कहूँ इक बात साची, सुनो प्यारो सतगुरु संग राची
नाम नियारा शरण पाओ, भव जल से उतरो तुम पारा
सिमरन ध्यान सतगुरु बतावे, नाम से सुरत सचखण्ड जावे

हरिराया सतगुरु, जीवात्मा को बांह पकड़ बिछड़े मालिक से मिला लेते हैं, मनमाया की अंधेरी दलदल में धंसी सुरति को मेहर का हाथ दे, आसरा दे हरिराया सतगुरु उबार लेते है। सतगुरु शरण के सिवा अन्य जितने भी साधन हैं, वे केवल मन माया के शिकंजे हैं, इन सभी में मनमति समाहित होती है, जब हमें ऐसे हरिराया सतगुरु की शरण आधार मिल जाए तो तुम्हें क्या करना है? सर्वप्रथम मनमति को त्याग कर उनकी शरण में पड़े रहना है और उनसे नाम भक्ति लेकर अमृत रस को घोंट-घोंट कर पीना है, फिर तुम सर्व प्रकार के भयों से मुक्त हो जाओगे। संत कबीर जी वचन कथते हैं-

गुरु को सिर पर राखिए, चलिए आज्ञा माहिं।
कहे कबीर ता दास को, तीन लोक भय नाहिं।।

हरिराया सतगुरु की प्रत्येक मौज आज्ञा को सत्त-सत्त कर, आज्ञानुसार कारज करने से जीवात्मा को तीनों लोकों में किसी का भय शेष नहीं रह जाता, क्योंकि जिनके सहायक समरथ हरिराया सतगुरु देव हैं, उनका काल माया कैसे कुछ बिगाड़ पाएगी। जो सच्चे गुरुमुख हैं यानि प्यारे सतगुरु के ध्यान में लीन रहते हुए सार शबद नाम का अभ्यास करते हैं, श्री आज्ञा का पालन कर सेवा में जुड़े रहते हैं, उन गुरुमुखों की सेवा में तो रिद्धि-सिद्धि भी तत्पर रहती है एवं मुक्ति भी उसका साथ नहीं छोड़ती।

सतगुरु साहिबान जी फरमाते हैं कि सच्चे गुरुमुखों को माया जनित इन्द्रिय आसक्तियों में फंसने और झूठी वासनाओं, इच्छाओं के बन्धनों का कोई भय नहीं रहता क्योंकि वे गुरुमुख, हरिराया सतगुरु के ध्यान और शबदाविलास में मगन रहकर प्रेम, निष्काम भाव से सेवा में रमे रहते हैं और न्यारे राम मालिक जा लीन होते हैं। यही सनातन संतमत में मन माया से मुक्त होने का सरल सहज उपाय है। वह इंसां, सच्चा योगी है जो हर प्रकार के बाहरमुखी हठधर्मां को छोड़ अपनी वृत्ति को सतगुरु शबद की नाद धुन में लगाता है और अजायब मीठा रस प्राप्त करता है। संसार में बेशक नाम की महिमा अनेक-अनेका लोग करते हैं लेकिन पूरण नाम का वास्तविक सार, गुप्त मरम तो केवल भजन सिमरन की भारी कमाई वाले साचे संत ही जानते हैं, पर वे विरले हैं। ऐसे पूरण सतगुरु से पूरण नाम को पाकर, अभ्यास कर शिष्य उसे अपने घट अंतर में पा सकते हैं जो सर्व शक्तिमान है, जो सृष्टि का रचनाकार है, वही जो कर्ता और अकर्ता भी है, लेकिन याद रखो, शक्ति, बुद्धि और चतुराई से तो इसे कदापि नहीं पाया जा सकता, पर हाँ! नींवा होकर, पूरण हरिराया सतगुरु के चरणों में स्वयं को समर्पित कर सहज ही पाया जा सकता है।

ऐ शिष्य! तेरे अंदर अनूप अमृत की धारा अनवरत बह रही है पर तू माया के बाहरी लुभावने दृश्यों में ऐसा उलझा है कि अंतर की ओर ध्यान ही नहीं, इसलिए तू हरिराया सतगुरु का सहारा ले, उनसे अमृत नाम पाकर, सिमरन कर अपने अंदर उसे पाने का यतन कर। हुजूर साहिबान जी ने रब्बी वाणी में फरमाया-

अंतर अनूप अमृत धारा, सुरत सिमरन नाम लागो
साची भगति नाम की करो तुम, सतगुरु पूरे नाम बक्श दियो
मीठी शरण संगत ताकी, जनम-जनम का खोया ठाकुर पायो
मन बड़ा बहु उलझावे, सुरति पकड़ भव धारा बहावे

आप साहिबान जी खुलकर समझाते हैं कि वह न्यारा नाम प्रभु श्री का अति विराट और महान प्रसाद है, सतगुरु प्रसाद है, जिसे पाकर जीवात्मा उस नामी से मिल जाती है इसलिए अक्सर यूं कहा जाता है, जिसके भाग्य लेख में नामी (मालिक) ने खुद लिखा है, उसी को यह मीठा प्रसाद मेहर दया से मिल पाता है।

मीठी शरण संगत ताकी, जनम-जनम का खोया ठाकुर पायो

जिस जीव पर परम प्रभु, अपने साथ मिलाने की दया-मेहर करना चाहते हैं, उन्हें हरिराया सतगुरु की शरण संगत से जोड़कर, सुरति को अमृत नाम से लिव लगाने की सहज युक्ति सिखा देते हैं, सतगुरु के लिए निष्काम प्रेम पैदा करवाते हैं, तब उनके मोह भ्रम के तन्दे ढीले पड़ जाते हैं, जन्मों-जन्मों का खोया ठाकुर प्राप्त होता है और वे स्थाई मुक्ति के अधिकारी बन पाते हैं। इसके विपरीत, हरिराया सतगुरु की शरण संगति से महरूम रहने वाले जीव चौरासी के चक्र में बंधे रहते हैं, वे इससे छूट नहीं पाते। इसलिए ऐ प्यारे! अपने मन को गुरुमति में ढालो, तभी रूहानी मार्ग पर सहजता से चल पाओगे।

O beloved! Mold your mind to follow the will of True Master, only then you will be able to walk on the spiritual path.

हरिराया सतगुरु की मेहर दया, सुहेली नज़र से गूंगों को जीव्हा, अंधन को आँख और बहरे को कान मिल जाते हैं अर्थात् सतगुरु से अमृत नाम को पाकर जीव, प्रभु को देखने सुनने के योग्य हो पाते हैं, फिर कृपा दया से मालिक तक पहुँच ही जाते हैं। इन्सान अपने बलबूते पर कितनी ही बाहरमुखी लम्बी-चौड़ी बंदगी कर ले लेकिन प्रभु की आंतरिक बंदगी तो पूरण सतगुरु खावंद की मेहर से ही हो पाती है, वे बल भी देते हैं और पूरण युक्ति भी। अंत में तो हर किसी को मरना ही पड़ता है लेकिन सच्चे गुरुभगत जीते-जी-मरने का अभ्यास पा लेते हैं। ऐ रब के अंश! जिसे अपने पारब्रह्म मालिक के देश में पहुँचना है, वह इन रम्जों को समझे। जिन्होंने स्व अनुभव कर आतम रस को चखा, फिर उन्होंने बयां किया।

साधसंगत जी! हमारे प्यारे प्रभुजियो हरे माधव बाबाजी ने यह बात बताई, कि इस चंचल मन को वश में करने के लिए अमृत नाम से तार जोड़ी, तभी मैं अंदर सच्चे घर में, दशम द्वार खोलकर, गुरुदेव की मेहर से दाखिल हुआ। सतगुरु के बक्शे अमृत नाम में लीन होकर मन में स्थिरता आ गई और अंतर में अखण्ड ज्योत का प्रकाश दिखाई दिया। जब सुरत और निरत जगे, तो अंदर के वज्र कपाट भी खुल गए, फिर अंदर सहज ही नाम की ध्वनि सुनाई देने लगी, निर्मल श्वेत प्रकाश दिखाई देने लगा। पहले पूरण सतगुरु नाम के बिना सुरति अंधी थी, इसे सोझी नहीं थी, समझ नहीं थी, मालिक अमृत का बोध नहीं था, जब पूरण सतगुरु से पूरण नाम का प्रसाद मिला, मीठी शरण मिली, तभी सुरति को सच्ची टेक एवं आधार मिला, जिसकी कमाई कर यह सुरत सिमरन नाम लागो के योग्य हो गई।

इस पावन अमृत नाम में अकह प्रभु की ताकत गुप्त है, हरिराया सतगुरु प्रगट है और जीवों के अंदर भी उसे प्रगट करने का बल सामर्थ्यता रखते है, लेकिन ऐ प्यारे! जब तक हम मन की तरंगों, लहरों में बहते रहते हैं तब तक हमारे ख्यालात सिमटते कम हैं और फैलते अधिक हैं। प्यारे! हरिराया सतगुरु की शरण में रहते हुए सुरति को स्थिर करो, नाम को जपो, फिर नाम नाद को सहज पा सकते हो, मालिक में मिल सकते हो, कोई बड़ी बात नहीं है, आज तो हम सबको हरे माधव गुरुमहाराज जी की मेहर से यह अनमोल दात मिल रही है, यहाँ किसी जाति, धर्म की बाधा नहीं है, इस सहज साधन मेहर दात को, हरे माधव सत्संग जलसे में सतगुरु श्री चरणों में आकर किसी भी कौम या किसी भी जाति के बंदे, मेहर करूणा को पा सकते हैं।

मौलाना रूम जी कहते हैं, कि ऐ मुरीद! तू मौत में समाने से पहले उठ और मुर्शिद का सहारा लेकर उस रब्बल की दरगाह का दीद कर ले। प्यारे! तुम, लोगों की बात सुनकर मान बैठे हो कि मौत के बाद मुक्ति मिल जाएगी, लेकिन जो जीते-जी-मुक्ति का अधिकारी नहीं बना, फिर मौत के बाद मुक्ति का क्या भरोसा।

गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरित मानस में कथन करते हैं-

ध्यान प्रथम जुग मख बिधि दूजै, द्वापर परितोषत प्रभु पूजें।
कलि केवल मल मूल मलीना, पाप पयो निधि जन मन मीना।
नाम काम तरु काल कराला, सुमिरत सभन सकल जग जाला।

ऐ प्यारे बंधुओं! हमारी बात भी सुनो, सतयुग में तो लोग ध्यान में जुड़े रहते थे, आगे जब त्रेता आया, तब होम हवन यज्ञ से अपने लाभ लेते थे, फिर आगे जब द्वापर आया तब मूर्ति पूजा की विधी से काम लेते याने-

ध्यान प्रथम जुग मख बिधि दूजै, द्वापर परितोषत प्रभु पूजे

लेकिन आज कलयुग में स्थिति यह है, जैसे समुद्र में मछली मगन रहती है वैसे ही जीवात्माऐं मलीन मन को धारण कर पापों में मगन रहते हैं याने पाप पयो निधि जन मन मीना। इस कलिकाल में हर हृदय, घर, शहर, गांव, मुल्क में मलीन मन के भारी उपद्रव बढ़ते ही जा रहे हैं। इन्सान, अंधकार में गिरता ही जा रहा है और निर्मल बुद्धि से हीन हो गया है, आठों पहर अवगुणों के संस्कार गहरे प्रबल होते जा रहे हैं इसलिए इस पर करम धरम का भी कोई असर नहीं हो रहा है, क्योंकि अगर भांडे में पहले से ही मैल भरी है, तो उसमें कितना भी शुद्ध जल डालो, वह भी मैला ही हो जाता है, हाँ! अगर उस भांडे की तह से मैलापन धो दें और उसमें पानी भरें तो फिर वह साफ सुथरा रहता है। सो यह मन, जो जन्मों-जन्मों से मैला है, उसे निर्मल कैसे किया जाए। हरिराया सतगुरु के अमृत नाम सिमरन से। घोर कलिकाल कलयुग में भजन सिमरन की कमाई वाले सतगुरु प्रगट होकर, उस अमृत नाम, मीठे न्यारे राम नाम का खुलकर प्रचार प्रसार करते हैं, क्योंकि यही एकमात्र साधन स्वीकार्य है अकह प्रभु की दरगाह में। अगोचर अमृत नाम कल्प वृक्ष है, जब उसका सिमरन करते हैं तो वह नाम, पाप जंजाल की बेडि़यां काट देता है। याने-
नाम काम तरु काल कराला, सुमिरत सभन सकल जग जाला
हाजि़रां हुजूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी मैं कहूँ इक बात साची अमृत वाणी में फरमाते हैं-

नाम नामी मोहे तू देवो, जनम-जनम की भूख मिटे
नाम बिना रूप न जानूं, सतगुरु दाते हरि ओ दयाले
महर करो दया करो, बहि जात भव धारा माहि
अपनी शरण राख दयाला, नाम सेवा घोट-घोट पीवौं
उतरे रंग काचा प्यारे, मोहे बक्शो नाम प्यारे

प्यारे सतगुरु बाबल ने कृपा मेहर की बारिश कर, मीठे नाम का सच्चा धन बक्शा, महादान बक्शा, उसे जपने का उत्तम बल और युक्ति भी बक्शी, फिर भजन-बंदगी कर अंतर निर्मल हो गया-

नाम सेवा घोट-घोट पीवौं, उतरे रंग काचा प्यारे

अंतर में जो अनहद का तूर बज रहा था, फिर ऐसा ऊँचा परम अमृत, अरूप आनन्द पा लिया कि उस दाते करतार के लोक में जाने की और मुक्ति की भी चाह नहीं रही।

शहंशाह सतगुरु बाबा माधवशाह साहिब जी बड़ी कौतुक लीलाऐं कर, स्वांग धरकर अमृत वेले जाकर जीवों को नाम से जुड़ने व जाप करने को कहते, आपजी ने रब्बी वाणी में यही बात कही-

कलयुग मन मलीन कर दीना, नाम बिन सब विरथै कामा।
जपओ नाम ध्यावओ नाम, पाओ साचे गुरु से।
अवर सारे जतन सब काल के मतना, अवर सारे जतन सब काल के मतना।
भरम छोड़ो नाम जपो, भरम छोड़ो नाम जपो।
कहे माधवशाह सुनो भाई संतो, मैं तो बात सदा सार की कहूं।

आप शहंशाह जी फरमाते हैं कि कलिकाल की मलीन हवाओं का भारी असर इन्सान के मन पर पड़ रहा है और मैले मन के कारण ही इन्सान माया में उलझते जा रहे हैं। इस कलिकाल, अंधकार के समय में हरिराया सतगुरु के द्वारा बक्शा नाम ही सच्ची शाश्वत रोशनी देता है। इसलिए कहा-

भरम छोड़ो नाम जपो, भरम छोड़ो नाम जपो

सच्चे पातशाह जी मीठे नाम का बीज अपने हृदय घट में बोने का भेद दे रहे हैं और कह रहे हैं कि अब इस कलिकाल के दौर में एक अमृत नाम ही सच्चे स्थायी सुख का अनन्त भण्डार है, यह अमृत नाम का प्रकाश भजन सिमरन के भंडारी सतगुरुदेव बांटता है। हम अगर सारे उपनिषदों धर्म ग्रंथो का लोकन अवलोकन करें, तो सभी में एक ही सार बात कही गई कि पूरे गुरु की खोज करो, फिर उनकी युक्ति से नाम का जाप करो, सच्चा अमृत बाहर नहीं है, यह तो अंदर के आत्मिक मण्डल जगत पर मिलता है। शरीर रूपी घर के अंदर दाखिल होकर, पूरण सतगुरु की दया मेहर से, उस अमृत का प्याला पीया जा सकता है, जिससे जीवात्मा सदा के लिए अमर हो जाती है।

ऐ बंदिया! जीवन में सब कुछ पा लिया लेकिन सतगुरु भक्ति नहीं कमाई तो समझना कुछ नहीं कमाया। O being! If you earned everything in life but didn't earn the devoyion for True Master then you never really earned anything at all.

ओ बींग! इफ यू अरनड ऐवरीथिंग इन लाईफ, बट डिन्ट अर्न, द डिवोशन फौर टू्र मास्टर, दैन यू नैवर रियली अरनड ऐनीथिंग ऐट औल।

मराठी में हरिराया सतगुरु की महिमा के यूं बोल आए, जसे उष्णतेच्या वेळी मधुर थंडगार पाणी मिळाले तर शरीरात शीतलता येते, असेच जेव्हा आत्मेला भजन स्मरणाचे खजांची सद्गुरुंचे दर्शन सोवत संगति प्राप्त होते तर आत्मा, जी जन्मोजन्मी भटकत-भटकत जीवन चक्राच्या अग्निमध्ये हीरपळत आहे, तिला परम कोटीची शीतलता प्राप्त होते। यानि-

जैसे तपिश में कहीं मीठा ठंडा जल मिल जाए, तो तन में शीतलता आ जाती है, ऐसे ही जब आत्मा को भजन सिमरन के भण्डारी सतगुरु के दर्शन सोहबत संगति प्राप्त होती है तो आत्मा, जो अनेक जनम भरमते-भरमते जीवन चक्र की अग्नि में झुलस रही है, उसे परम शीतलता मिलती है।

इन्सानी जनम का असल मकसद अंदर छिपे अमृत को पाना ही है और यह ऊँचा ध्येय, पूरे गुरुदेव से ही पूरा हो पाता है, ऐसी सनातन संतमत की रीत है। आगे वाणी में सतगुरू शरण की महीमा यूं गायी गई, जी आगे-

।। मैं बहि जात हूँ सतगुरु ओ दयाले, ढकपाल ओ मेरे माधवे।।
।। पत राखो मोरी अगम गत मैं मांगूं, प्रेम साचा घट में आवे।।
।। कहे दास ईश्वर मोहे पूरे साधू संग देवो, तन-मन-धन वार सब दीनो।।
।। मेरे साहिब हरे माधव, निर्गुन न्यारे राम प्यारे।।

प्रभु करतारे सतगुरु के सच्चे प्रेम इश्क वियोग में डूबी रूह अपनी अबोझ अवस्था का हवाला दे, सुहणे प्यारे सतगुरु ढकपाल को विनती कर रही है कि ऐ मेरे ढकपाल माधवे! मेरे अवगुणों को मत निहारो, मुझ दीन, हीन पर मेहर करो, अगम वाट दसो। मैंने मन के संग तेरी दया, करूणा, मेहर की कद्र ना की, मैं तेरी शरण से दूर हो गर्त में जा गिरी, मेरी पत रखना सतगुरु, ओ दयाल ढकपाल, ओ मेरे माधवे! मैं मन माया, तृष्णाओं के सागर में बही जा रही हूँ-

मैं बहि जात हूँ सतगुरु ओ दयाले, ढकपाल ओ मेरे माधवे

वियोग की तड़प, दर्द में फंसी व्याकुल रूह बड़ी मीठी आह प्रकट कर रही है कि बाबल! मेरा इस मन के आगे कोई जोर नहीं चल रहा है, तेरी पावन शरण में गुनाहों की माफी मांग रही हूँ,-

मैं बहि जात हूँ सतगुरु ओ दयाले, ढकपाल ओ मेरे माधवे
पत राखो मोरी अगम गत मैं मांगूं, प्रेम साचा घट में आवे

जीवात्मा के करम काट सतगुरू बाबल जी समझाते है कि जीव अपने असल उद्देश्य को भूल गंदले विकारों, माया में बहा जा रहा है, पूर्ण पुरूख हमारे विकारों को न देख हमें अपनी शरण मे ले अमृत नाम की बक्शीश देते है जिसके सिमरन से हमारे जन्मों-जन्मों की भटकन समाप्त होती है।

हुजूर साहिबान जी की परमार्थी यात्राओं करूणा मेहर का जिक्र सन् 2018 को हाजिरां हुजूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी की महाराष्ट्र परमार्थी यात्रा में, 23 जून को, आप साहिबान जी की दया रहमत पुणे में हुई। सायंकाल कोल्हापुर प्रस्थान से पूर्व आप साहिबान जी ने पुणे की संगतों को दरड़ा निवास पर दर्शन दीदार रहमत बक्शी। दर्शन की कतार संगतों के समूह में इक बंदा, बड़ा हताश परेशान तनाव से भारी ग्रस्त था, बीच कतार को तोड़ वह आगे आया, अपने आप से वह परेशान सा लग रहा था, सेवादारों ने हथ जोड़ रोका किंतु वह न रुका, श्रीचरणों में आकर कहने लगा, गुरु महाराज जी! मेरे पास किसी दुनियावी चीज की कमी नहीं। वह तीन-चार बार यही दोहराए जा रहा था, आपजी ने उसकी बातें सुन नज़र अंदाज कर दिया। फिर वह कहने लगा, बाबाजी! मेरे अंदर हमेशा नेगेटिव विचार आते हैं, चिंता क्रोध तनाव से ग्रस्त रहता हूं। मैं तीन-चार सालों से चैन से सोया भी नहीं पाया हूँ, बाबाजी, मैंने इलाज भी कराया, नींद की गोलियां भी लेता हूं, फिर भी नींद नहीं आती, दया करें, मेहर करें। मालिकां जी! मैं महिमा सुन कर आपके श्रीचरणों में आया हूँ, मुझे शरण में लें, मुझ पर भी किरपा करें, दया करें।

आपजी ने मुस्कुराकर कहा, भगतां जी! यदि आपकी जिन्दगी उलट सी है, डिप्रेशन तनाव से जीवन भरा है तो याद रखो! सबसे पहले अपने नितनेम में पूरण साधसंगत शरण को शामिल करो और सब कुछ हरे माधव प्रभु का जान भाणे में शुकर में रहने का प्रयास करते रहो। इस बात को स्वीकार करो कि जो वक्त बीता सो बीता, अब नए सूर्यादय की ओर बढ़ना है। आप देखो! कई प्यारों की ये दशा है, वे हर पल यही सोचते हैं कि मुझे ये काम करना था, मुझे ये सौदा लेना था, ये निर्णय करना था पर मुझसे गलती हो गई, चूक हो गई। पहले ये काम करता, यह निर्णय लेता तो लाभ कमाता या यह फायदा होता। मैं यह चाहता था पर मुझे न मिला , फिर सोच सोचकर मन क्रोधित हो उठता है, गुस्सैला भाव, गुस्सैला राग उत्पन्न हो उठता है, मन हर पल चिंता करता है, दुखाता रहता है आतम को। आज दुनि जहान में देखें, किसी को व्यापार में परेशानी, किसी को रिश्तें-नातों की, किसी को अपने बच्चों, माता-पिता या परिवार की चिंता है। भिन्न-भिन्न चिंताओं ने आज सभी को घेर रखा है जिससे उनका सुख-चैन, नींद सब उड़ गया है। सही है न भगतां जी!

हथ जोड़, सिर झुकाए उस प्यारे ने कहा, जी सच्चे पातशाह। आपजी ने मुस्कुराकर कहा, बाबा! चिंता करने से, रोने-धोने से कोई फायदा मिलना नहीं, जो आगे भविष्य उदित होने वाला है, उस पर केंद्रित रहने का प्रयास करो। जीवन में हम जो आशाएं रखते हैं, ज़रूरी नहीं कि वह पूरी हो। कई बार दूसरों के जीवन में देखते हैं कि हमारे जैसी इच्छाएं उस अमुक बंदे की तो पूरी हो रही हैं पर हमारी क्यों नहीं, प्यारे! सभी के प्रारब्ध कर्मां की पोटली जुदा-जुदा होती है। तुम व्यर्थ की कल्पनाएं, तर्क-वितर्क, चिढ़ साड़ के महल खड़े करने में समय बर्बाद मत करो। चिंता करने से कोई फायदा नहीं मिलना, अपने मन को मिठास से भरो, मनोबल और हिम्मत बढ़ाओ, प्रभु के भाणे में रहो तो जीवन सरल हो जाएगा, तुम्हें हर परिस्थिति में रस आने लगेगा।

वह बंदा विनय करने लगा, बाबाजी! हमारे पास इतना बल नहीं कि मन के तनाव युक्त विचारों से जीत पाएं, वह बल कैसे मिले? मालिकां जी, वह बल कैसे मिले?

आप साहिबान जी फरमाए, सर्वप्रथम, याद रखो, तुम्हारे पास जो कुछ है, तुम्हारा नहीं है, तुम्हारा सब कुछ उस हरे माधव प्रभु का है, तुम सदा शुकर भाणे में रहो, और मन में ऐसे भाव बिठाओ-

जींअ हलाईं तीअं वाह-वाह साईं
जींअ हलाईं तीअं वाह-वाह

यानि हे सतगुरु प्रभु! जैसे तू मेरे जीवन को चलाए, वही उचित है, वही मुझे स्वीकार्य है। अपने आतम बल को बढ़ाने के लिए हर पल मन में प्रभु सतगुरु से पुकार करते रहो। हरे माधव वाणी अरदास, मेरे सतगुरां! हम शरण तेरी आए यह अरदास पुकार नितनियम से सुबह उठते ही और रात को सोने से पूर्व परिवार, बाल-गोपालों के संग साथ बैठ श्रवण करो, उच्चारण करो। इससे आप सभी को बड़ा अमृत बल प्राप्त होगा और मन में नैगिटिविटी दूर हो पॉजि़टिविटी आयेगी। मन को बड़ी शीतलता और सुखद अनुभूति मिलेगी। सुबह के वक्त अरदास श्रवण करने से आपको सारा दिन ऊर्जा प्राप्त होगी, अंतर में असीम प्रेम भाव उमड़ेगा।

भगतां जी, यह भी याद रखो! सभी के लिए अपने दिल में प्यार बिठाओ। मन को ऐसा बनाओ कि जो आपसे वैर करे, उनसे भी प्रेम और करुणा दिखाओ, ये नहीं कि उनसे और अधिक वैर ईर्ष्या रखो। दुनिया में अनेकानेक ऐसे जीव मिलेंगे जो ये भाव रखते हैं कि इतने समय पहले अमुक बंदे ने मुझे ऐसे कटु शब्द कहे थे जो दिल में तीर की तरह चुभ गया, मैं बदला लूंगा, बैर रखूंगा। प्यारों! इससे क्या होगा? वरन् आपके अंदर अंशाति बनी रहेगी, का्रेध रूपी ज़हर बढ़ेगा इसलिए सभी से प्रेम करो और यह प्रेम तब प्रगट होगा, जब सतगुरु नाम बंदगी से जुड़ोगे, साधसंगत में भक्ति कर मन निर्मल करोगे। फिर सबमें एक ही रूप दिखेगा।

प्यारे! अपने अंदर चल रहे विचारों के प्रति हर पल सजग रहो। यदि स्वस्थ शरीर चाहिए तो खान-पान के प्रति सजग होना पड़ता है, ऐसे ही विचारों के प्रति भी अलर्ट रहो। जिस तरह मात्र एक कंकड़ फेंकने से पानी में हलचल हो जाती है, उसी तरह एक नैगिटिव विचार आने से मन में अनेक नैगिटिव विचारों की हलचल हो जाती है। इंसानी जीवन, दुनी जहान में देखो, हर चौथे-पांचवे बंदे में आपको ऐसे बंदे मिलेंगे, जो गुजरे हुए वक्त की घटना या विचारों को बार-बार याद कर, चिंता के राग गाते रहते हैं। अनमोल इन्सानी जीवन को तनाव और नैगिटिविटी से भर लेते हैं, डिप्रेशन में आकर गलत राह, गलत फैसले ले लेते हैं।

बाबा! फिर आप देखो! लख-करोड़ ऐसे आदम मिलेंगे, जो भविष्य की चिंता रूपी कढ़ाई में पचते रहते हैं, सोचते हैं कि न मालूम प्रभु ने कैसा भविष्य लिखा होगा हमारा, जीवन में हमारा आगे क्या होगा। उनमें भविष्य के लिए दुनियावी साजो सामान एकत्रित करने की होड़ लगी रहती है, मन में अन्यां खपे, अन्यां खपे यानि और चाहिए, और चाहिए के भाव बने रहते हैं। अधिकांश जनों का मन इन्द्रिय सुखों और दिखावे के भावों से भरा है, और भी संकीर्णता की सेनाऐं मन में भरी रहती हैं। ऐसे विचारों से मन रोगी होता जाता है, तनाव से भरा रहता है। ऐसा ही होता है न? हथजोड़ प्यारे ने कहा, जी सच्चे पातशाह।

सुनो भगतां जी! भूतकाल भविष्य की चिंता छोड़ चितवनाऐं छोड़ अभी वर्तमान हाजि़र की दुरुस्तता करें, सम्भाल रखें, श्री वचनों पर चल, अपने अनमोल जीवन को आनन्दित करें। याद रखो प्यारे! भविष्य और भूतकाल के व्यर्थ विचारों से मन के बोझ तले दबकर अपना वर्तमान समय निष्फल मत करो। रोज़ ही वर्तमान में नित्य नए समय का सूर्य खिलता है, इसका लाभ उठाओ, वर्तमान समय स्वांसो को, फालतू पानी की तरह मत गंवाओ। स्वांसों का कब नगाड़ा बज जाए, उससे पहले ही चेतो, जागो, और कुछ सच्चा सौदा करो अपने लिए। अब जाओ, वचनों पे अमल करो, भला होगा।

हुजूर साहिबान जी के वचन, शस्त्र की न्याईं उसके अंतःकरण पर भारी प्रहार कर रहे थे। सच्चेपातशाहों के वचन तो संगतों! 100 प्रतिशत सत्य, अनुभवी सैलाब हैं। वह हथ जोड़ कहने लगा हुजूर जी! यह निर्मल वचन, मेरे जीवन को मन को आतम ठण्डक दे रहे हैं। यदि आज्ञा हो तो कुछ समय श्रीचरणों की छाया में बैठ, अपनी आत्मा को आनन्दित करूं, मैं बयां नहीं कर सकता कि आपने मुझे कैसी ऊँची सौगात बक्शी है, साचा सुख बक्शा है। जो मुझे दर-दर भटकने, लाखों रूपये खर्च करके भी न मिला, वह आपजी की करूणा मेहर से मिला है। मेरा रोम-रोम आपके पावन वचनों से प्रफुल्लित हो उठा है, स्वासां-स्वांस शुकर मेरे मालिकां, स्वासों-स्वांस अभिवादन।

हुजूर साहिबानों ने कहा, अपने अंदर ही रखो और उस साचे सुख को कमाओ। वह प्यारा आधा एक घंटा आनन्दित मगन होकर श्री चरणों में बैठा रहा। निकट ही गुरुसाहिबान जी के मुखड़े को निहारता रहा और मन को आनंदित करता ही रहा। साधसंगत जी! तब से वह प्यारा नितनियम से हरे माधव वाणियों और अरदास को श्रवण करता जिससे कि उसका प्रेम सतगुरु श्रीचरणों में और गाढ़ा होता गया। अमृत नाम की चाह आतम में जाग उठी। सो उसने हुजूर साहिबान जी को खत लिखकर अर्जी भी लगायी और कटनी में सेवादारों को फोन कर गुरु साहिबान जी से अमृत नाम दीक्षा के लिए अर्जी लगाने को कहता, अंतर में सदा हुजूरों से यही पुकार करता, शरण में राख लेहो मालिकां जी, अमृत नाम की बक्शीश बक्शें।

साधसंगत जी! 27 जुलाई 2018, शुक्रवार को वह गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर सतगुरु श्रीचरणों में परिवार के साथ आया और 28 जुलाई को हुजूर साहिबान जी की दया रहमत अमृत नाम की बक्शीश विभिन्न शहरों-नगरों के जिज्ञासु प्रेमीजनों पर हुई। उनमें वह प्रेमी बंदा और उसका परिवार भी शामिल था, अगले दिन रविवार को साप्ताहिक सत्संग में वह प्यारा, माया की भेंटा श्रीचरणों में रख, अर्ज करने लगा, साहिब जी! मैंने डिप्रेशन के रोग से उबरने के लिए कितने वर्षां से भटका, कितनी गोलियां, टॉनिक लीं, इलाज के पीछे लाखों रूपये खर्च किये, पर मुझे कुछ फायदा न हुआ। आपकी दया से इस महारोग से उबरा हूं, सुख चैन से जीता और सोता हूँ। अब आज्ञा हो तो श्रीचरणों में, यह आपके द्वारा बक्शा हुआ सांसारिक धन, हर साल गुरुपूर्णिमा पर साधसंगत की सेवा के लिए अर्पित करूँ और श्रीचरणों में पूरे परिवार के साथ रहकर, शरण में रह सेवा भी करूं, सच्चे पातशाह जी! इससे मेरे मन आतम का बोझ कम होगा। वह जो भेंटा लाया था, श्रीचरणों में रख हथ जोड़ अर्ज करने लगा, कबूल करें श्रीचरणों में बाबाजी।

आपजी ने वचन फरमाए, जो सच्चा अमृत नाम का धन ले जा रहे हो, अब उसे कमाना, यह आतम मन को, परम अलौकिक शांति, आनन्दित करने की मणी है। हर पल अमृत नाम का सिमरन करो, सेवा में नितनेम रखो। जी सच्चेपातशाह जी! जीवन में सब कुछ धन पदार्थ, मान कमाया, रिश्ते-नातों में मोह लगाया पर साचा सुख न मिला, साचा सुख मुझे मिला तो आपजी के पावन श्रीचरणों में, मीठी शरण में मिला, श्रीचरणों की सेवा में मिला, सांई जी श्रीचरणों से दूर न करना।

बहुत जन्म बिछड़ै थे माधव, इह जन्म तुम्हारे लेखे-2

सच्चे पातशाह जी ने करूणा भरी निगाह कर, सर पर हाथ रख फरमाया, भला होगा, भला होगा।

साधसंगत जी! गुरुवाणी में साचे सुख की महिमा यूं कही गई-

जो सुख प्रभु गोविंद की सेवा
सो सुख राज न लहिए, सो सुख राज न लहिए

हाजि़रां हुज़ूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी फरमाते हैं, यह मन बड़ा गफलतधारी है, हर पल आतम को नए-नए स्वादों, ख्वाबों, भिन्न-भिन्न विचार ताकत से आतम को भरमाता है। यह मन हर पल कोई न कोई नया स्वाद चाहता है, बाहरी खुशियां भरपूर चाहता है। मन की सारी कथा यही, कि यह हर पल नित्य बंदर की तरह उछल कूद करता है, ये खा लूं, ये खुशियां मिलें, यूं धन कमालूं, तो सुख मिले, इस अमुक को धोखा देकर कुछ उठा लूं, ले लूं। मन की बड़ी होशियारियां तुम्हारे दुखों का कारण है। यही तुम्हारी चिंता, तनाव, अकेलेपन, डिप्रैशन, नैगिटिविटी का कारण है। आज 10 में से 2-3 जीवों को छोड़, हर किसी के अंदर ऐसे खेल बन रहे हैं, यह सत्य है न! मन सबको चिंताओं के बाड़े में ले आ रहा है, ऐ सतगुरु के प्यारों! हुजूर महाराज जी अचिंत का हुकुमनामा देते हैं, खुद आपे आप जीवन का आदर्श रखते हैं। चिंता से कुछ न संवरेगा, सदा अचिंत रहो। हुजूर साहिबान जी ने वाणी में फरमाया-

मत कर चिंता मत कर चिंत
सदा कर तू चिंतन अचिंत का भाई
दास ईश्वर अचिंत भंवरा, सतगुरु चरण किया प्रेम भरपूरा
मेरे सतगुरु ने इक बात बताई, चिंता की क्या बात है भाई

जैसे नदी अपने अंदर उतरे मैल को बहाकर महासागर में उड़ेल देती और स्वयं निर्मल हो जाती है, इसी प्रकार आप अपने मन की चिंता को संजोकर न रखें, शुक्र भाणे में रह अपनी चिंता करुणासागर हरिराया सतगुरु को अर्पित कर दें और स्वयं अचित हो जाएं। The river pours out the dirt into the ocean and becomes pure. Similarly do not store worries in your mind, remain under Lord’s will, leave your worries on the merciful Perfect Master to be stress free.

हाजिरां हुजूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी फरमाते हैं, ऐ प्यारां! सुख-दुख, लाभ-हानि, यश-अपयश में सम रहें। विषम परिस्थितियों में विचलित न हों। व्यापार में उतार-चढ़ाव, रिश्तों-नातों में खटास आने पर अपना धैर्य न खोएं। वेला औखा हो या सौखा, भाणे में रह, पुरुषार्थ प्रयास करते रहें, प्रेम से अपने कर्तव्यों को निभाते रहें जी। संसारिक जीवन में अलेप रहकर, न्यारे होकर वर्तण करें।

जिस प्रकार सूर्य चढ़ा हो और बादलों का कारवां उसके प्रकाश को ढक ले तो इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि सूर्य का प्रकाश हमेशा के लिए छिप गया, अस्त हो गया। कुछ समय बाद जब बादलों का कारवां गुज़र जाएगा तो सूर्य और तेजोमय होकर प्रकाशित होगा। सो प्यारों! आज की परिस्थिति में, जीवन काल में दुख-चिंता के रोग के बादलों का जो कारवां है, उससे आप घबराएं नहीं। यह सब कुछ समय के लिए है। इस औखे समय में सतगुरु जी को याद करें, उनका ध्यान करें और आतमबल को बढ़ाएं। यह सब औखे बादलों का कारवां गुज़र जाएगा, फिर आपका जीवन खिलेगा, महकेगा, गुले गुलज़ार होगा, आप और भी अधिक ऊँचाइयों की ओर उड़ान भरेंगे। मन को समझाएं, ये औखे वेले भी गुज़र जायेंगे, सतगुरु मेहर करेंगे, सतगुरु भला करेंगे, सौखा वेला भी आयेगा। बस आप औखी घड़ी में सतगुरु जी का ध्यान सिमरन जारी रखें। सच्चे पातशाह जी की मेहर किरपा अंग-संग है।

साधसंगत जी! दुनिया में जब तुम्हें तुम्हारी परेशानियां मन के दुखों की समस्याओं का निदान, कोई न दे सके, कोई हल ना मिले, बड़ी-बड़ी किताबें ना दे सकें, बड़े-बड़े विद्वान भी न दे सकें, बड़े-बड़े ज्ञानी ऋषि भी ना बता सकें, तो फिर केवल एक ही द्वार खुला है और वह है भजन सिमरन के भण्डारी पूरण तत्वदर्शी सतगुरु का द्वार। साधसंगत जी! द्वार तो केवल बोलना पड़ता है, वहां दरवाजा तो है ही नहीं, ताला केवल लटका हुआ है, बंद नहीं, बस शिष्य को अपने मन का ताला खोलना है, अहं की तिजोरी में जो कचरा भरा है, मन की व्यर्थ मैल भरी है, उसे हटाना है। बस उस द्वार में, श्रीचरणों में खाली पात्र लेकर पवित्र होने के लिए आ जाना, तो ही शिष्य की बात बनती है, वरन् कोरे के कोरे रह जाते हैं, न राम मिलता है, न धाम मिलता है।

संगतों! जो अपने पावन वचनों से जीव के अंतरमन के दुख-दर्द हर ले, वही सच्चे पूरण सतगुरु हैं। आज के सत्संग में आप हम सभी ने जो मीठे वचन श्रवण किए, उन्हें जीवन में अमल में लाएं। आशावादी विचारों को थामों और निराशावादी विचारों को छोड़ें क्योंकि सूरज ढला हो फिर भी आशावादी के लिए विचारों की रोशनी है, परंतु सूरज परम प्रकाशमय हो फिर भी निराशावादी के लिए अंधेरा ही है।

भजन सिमरन के भण्डारी सतगुरु की वाणियां उनके परम वचन उनके दिव्य दर्शन और उनकी आलौकिक लीलाओं को सुनने से श्रवण करने से, मनन करने से जीव के मन को शांति प्राप्त होती है, नकारात्मक सोच साकारात्मक हो जाती है। नितनेम से वाणियां श्रवण करने से इम्यून सिस्टम पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, आतमबल बढ़ता है, घर का आभामंडल पवित्र ऊर्जा से भर जाता है। सो सदा! सतगुरु वाणी वचनों को श्रवण कर, अमृत नाम का सिमरन कर अपना जीवन सात्विक ऊर्जा से भरें। हे मेरे हरे माधव बाबाजी! आज के पावन सत्संग दीवान में हम सभी की यही पुकार है, सदा अपनी मेहर किरपा हम सब पर बनाए रखना, हे करूणानिदान प्रभुजियो! हमें अपने श्रीदर्शन का सुख बक्श शरण प्रीत का भाव बक्श, चाह बक्श। मेरे माधव जी, मेरे सतगुरु जी।

।। कहे दास ईश्वर मोहे पूरे साधू संग देवो, तन-मन-धन वार सब दीनो।।
।। मेरे साहिब हरे माधव, निर्गुन न्यारे राम प्यारे।।

हरे माधव    हरे माधव   हरे माधव