।। हरे माधव दयाल की दया ।।
वाणी सतगुरु बाबा माधवशाह साहिब जी
।। मेरा सतगुरु पुरुख अपारा, मेरा सतगुरु पुरुख अपारा ।।
।। ओह सतगुरु सतपुरुख साधो, आए जग में अमृत संत खेल रचे ।।
आज की पावन निर्मल वाणी हमारे प्यारे सतगुरु पुरनूर अनहल मौज के बेपरवाह साहिब सतगुरु बाबा माधवशाह साहिब जी कि रूहानी रब्बी वाणी है, जिसके माध्यम से आपजी समझाते हैं, मेरा सतगुरु पुरुख अपारा वह सतगुरु, पूरा गुरुदेव अविनासी रूप को ओढ़ के आया, और नाश देहि को ओढ़, वह अविनासी वतन मुल्क की राजदारी ,रम्जो एवं अहनिश की हूबहु सारी तालीम, वचन संदेश, इस नाश रचना के ऊपर जो अविनाशी दुनिया है, आतम को वहां तक पहुंचने का, उसमें समाने का पूरा भजन एवं अविनाशी राह दिखाता है। वह पूरन सतगुरु विदेही मुक्त जगत से आया, देह को ओढ़कर, वह जीवन मुक्त होकर भी, जनम-मरण के जगत में भिन्न- भिन्न स्वांग रचकर, जगत की सोई रूहों को जीवन मुक्त मुकाम का होका देकर चिताता है। वह जीवन मुक्त दयाल सतगुरु कभी रोचक वचनों के द्वारा, कभी स्वांग लीलाओं के द्वारा, हमें चेताते हैं, पर सारे यथार्थ खेल तह में केवल एक ही उद्देश्य, की हर कोई रूह, अमरता का सुख पाए। क्योंकि मेरा सतगुरु पुरुख अपारा।
वक्त के पूरे सतगुरु में बेशुमार खूबियां कलाएं भरी होती है पर उसका अंत नहीं पाया जा सकता। अब कौन जाने अनन्त का थांव-
कोई न जाने तुम्हरा अंत, ऊँचे से ऊंचा भगवंत
पूरा सतगुरु, सच्चे आलमों का अविनाशी रूप है, वह बेशुमार खूबियों से भरा रहता है, वह उनमुन मौन में बैठा रहता है, खेल रचकर भी देव, गंधर्व, ऋषिजन भी उनके गहबी दैवीय प्रताप को नहीं जान पाते। जब वह अपनी बेपरवाही मौज से भ्रमण-वर्तण करता है, तो वह गहबी राज खोलता जाता है। वह अलख हरे माधव परम पुरूख की बादशाहत सफल बंदगी की शुद्ध बातें कहता है, क्योंकि वह सचखण्ड से आता है, और झूठखण्ड की दुनिया में, जो उनके वचनों आदेशों पर चलते हैं, वह उन्हें सचखण्ड की नाव में बैठा धुरधाम ले जाता है।
जिस तरह प्यारे सतसंगियों! सूरज के सारे खेल, सारी किरणें, रोशनी से भरी है, चाहे फिर वह आड़ी-टेढ़ी तिरछी हो, तह का ध्येय केवल एक है, जगत के जीवों को रोशनी प्रदान करना। तैसे ही सच्चे पातशाह सतगुरु की सारी आनन्द विनोद बातें, केवल जगत मण्डल के जीवों को नूर की रोशनी में नहाना, उनका तह का मकसद तो यही है, पर हमारी भावना जैसी होगी, हम वही समझ पाते हैं। वह यथार्थ गुरुमत का मारग, इतना सहज सरल कर देता है कि हम दुर्मत को छोड़ आतम की जो गूढ़ मति है, उसी का अनुसरण करते हैं, वह प्रभु रूप साचा सतगुरु तो इसी वास्ते धरा पे आते है।
पूर्ण संतों का कार्य क्षेत्र अवतारी पुरुषों से, सर्वथा भिन्न-भिन्न सर्वन स्वतंत्र होता है, अवतार केवल इस लोक में कार्य करते हैं, जिससे कि इस दुनिया संसार का कार्य, सुचारू रूप, व्यवस्थित ढंग से चल सके।
पूरा सतगुरु एक सच्चा पाता है जो दयालु मेहरबान, करुणावान, विरदवान भी है। वह करूणा का महासगर है उनके अनंत साम्राज्य में भारी से भारी कर्मों का हिसाब नहीं किया जा सकता है, पर साफ सुथरे शरणागति होकर ही, सौगात-दात मिलती है। वह परम प्रभु हरे माधव से इक रूप होने के कारण, हर एक जीवात्मा को उसी के अंदर बहने वाली चैतन्य जीवन धारा को, मंत्र-नाम का दान देकर, उसे जगाता है।
साचे संत सकगुरू को पूरी तरह समझना, किसी के बस की बात नहीं और कभी दावा भी नहीं करना चाहिए। सदैव तौबा नीज़ारी वचनों, चरणों में प्रीत होनी चाहिए।
वह प्यारा सच्चा सतगुरु अपनी विशेष रूहानी रियासत का उपयोग करता है, संक्षेप में कहे वह फांसी की सजा को कांटे की चुभन में बदल देता है जिसे सतगुरु बाबा नारायणशाह साहिब जी सिंधी वचनों में फरमाते हैं-
"सूरीय मां कन्डो"
वह कभी-कभी अपनी देह को तकलीफ भी देता है, शायद सामान्य बन्दे के लिए यह बड़ी विपत्ति वाली बात होती है क्योंकि यह सब देहधारियों के लिए प्रकृति का नियम है मगर प्यारा सतगुरू उसे अपनी देही पर सहज उठा लेता है।
वह पारब्रह्म एक महान ताकत है, मनुष्य का मन इसको वह इसके पार लोकों को अपनी पकड़ में नहीं ला सकता, केवल जीवन मुक्त प्रभु रूप सतगुरु दावे के साथ, उसके बारे में पूरा समूरा कह सकते हैं। सतगुरु बाबा माधवशाह साहिब जी ने वाणी के द्वारा ऐसे परम वचन कहे-
आदि अनादि के पार की कहूं, यह जन्म मरण के फूल न खिलें
तहं कोई चौरासी की फेर ना फिरे, नाही धरत नभ सूक्षम मंडल के पसारे
कहे माधवशाह सुनहो प्यारों, ये बात पूरी निराली
तत्व खंड के धाम की, मैं मस्त मौला भेद कहूं।
आप प्यारे हुजूर बाबल जी जिस अखंड निर्विकार मुकाम की वाणी के द्वारा बात कह रहे हैं, "मैं मस्त मौला भेद कहूं" आपजी ने जिंदगी भर पूरण होकर दया, प्रेम, करुणा, विरदवान भिन्न-भिन्न भारी रोचक भयानक स्वांग रचकर, अजायब नूर की बात भी सुनाई, मगर खुद को छिपाकर भी खोल रचा, आपजी ने जीवों के कर्म एवं रूहानी वचनों, छड़ी की मारती प्रेमीजनों का आतम हित किया, जो संवरे सो संवरे, जो बिगड़े फिर वे काल के हाथों तिगड़े।
हाजिरां हुजूर बाबाजी अपनी इल्लाही वाणियों में ऐसे ऊँचे हुकुम नामे में अक्सर हमें सुनाते हैं, आपजी फरनाते हैं-
ऐसो अनुभव नूर परम आदि अनादि के पारा, नूर बैठ सतगुरु संग में किया आदि ना अनंत ना ,ऐसो परम नूर निजानंद में सदा मस्त किया दास ईश्वर उस अनोखे, हरे माधव पुरख की बात कही जन्म मरण पैदा न होते हैं, दिवस रेन सब ढंग इकस होत है
सभी पूर्ण कमाई वाले, जो आतम परमात्म के एको विसाल चोटी पर पहुंचे, बात एक कही, अनुभव निराले अपरस की, जहां पूर्ण संतों का धाम है, अनाम हरे माधव परम पुरुख जहां, अखण्ड शांति पूर्ण अनहदी अखण्ड विश्राम है, पूरे सतगुरु की दया मेहर से, इन्सान मन पर सवार हो सकता है, तभी मन को मारकर अमन प्रभु में मिल सकोगे, पूरा गुरु तो हमेशा अंग संग हैं, हम ही स्मरण भूल जाते हैं, कि वह हमारे अंग संग है, मन गिरा देता है मगर पूरा सतगुरू हमें देता है, पूरा पुखता अमर शक्ति वाला नाम, फिर उससे शब्द नाद को प्रगट कर देता है, उसे सुनकर रूह शब्द धुन में सवार होकर, अंदर के ऊपरी मंडलों में पहुंच जाती है, जब चाहे उड़े, जब चाहे आ जाये।
सतगुरु सांई नारायणशाह साहिब जी ने बड़ी न्यारी सुनहरी बात कही-
जीयरे सेजा मौत की
सतगुरु प्यारा, मन आत्मा को सही खुराक देता है, ऐसा साचा अमृत नाम, जो यह इंसान और कहीं भी सुन लेता है, पर वह सिद्धि फलदायक नहीं होता, जब तक कमाई वाले सतगुरु, कमाई वाले पूर्व महात्मा के मुख से, यह नाम तवज्जू शक्ति नहीं मिलती, तब तक वह फूलता फूलता नहीं है, यह नाम ऐसा होता है, जैसे कि नर्सरी में पौधे तो पड़े रहते हैं, पर वे कभी वट वृक्ष नहीं बन पाते, वह सतगुरु अमर जीवन देता है, उसके वचनों को छल, छिद्र, कपट द्वारा नहीं उठाना चाहिए, वरन् शुद्ध मन एवं पूर्ण लगन निष्ठा से, उसे कमाना चाहिए, क्योंकि उनकी हर एक वचन के अंदर जीव का ही हित है।
बेशक! कर्मों के पेचीदे जंजाल को उनके वचनों पर चलकर ही स्वाहा किया जाता है।
पूरा सतगुरु नूर की निगाह हर बार करता है और वह उनमुन की निगाह, मौन होकर ही करता है, बहुत लोग नूर के पास, उनकी सुरीली निगाह में रंग जाते हैं और वे ही तो बयान करते हैं, मैंने सतगुरु की दयी से, सुहेली नज़र से भीतर झांका और हँस पड़ा, जिस मंजिल की तलाश में में दौड़ रहा था, वह मंजिल खुद सलाम करने आ रही है, क्योंकि हर एक गुरुमुख मुरीद के जीवन काल में, प्रेम पथ पर, एक ऐसा पड़ाव भी आता है।
वक्त का पूरा सतगुरु वैद्य है, पूरा सर्जन है, वह आतम विवेक की अंदरूनी आँख खोलने की जुगती देता है, उनके नुस्खे तुम्हारी आंख पर जो जाली जम गई है, वह उस जाली को काटने की दवा औषधि भी देते हैं, सेवा, सत्संग, सिमरन, ध्यान और सबसे गहरी तह की बात है संतोष प्रेम पूर्णतः समर्पण।
सतगुरु साहिबान जी समझाते हैं, जिनके बड़े ऊंचे भाग नेक कर्म हो उन्हें ही पूरे गुरु की सत्संगति प्राप्त होती है।
धरती जब पुकार करती है, हे प्रभु मेरे ऊपर भारी बोझ दबाव बढ़ता जा रहा है, धरती कहने लगी करतार से मैं यह बोझ नहीं झेल पा रही हूँ, तब प्रभु ने कहा हे धरती! क्या तुझ पर बोझ पहाड़ों वनस्पतियों का है, क्या तुझ पर बोझ जानवरों, महासागरों का है? क्या तुझ पर बोझ भारी-भारी पर्वतों का है? अगर तुम कहो तो, उन पर्वतों, सागरों, वनस्पतियों को सुखा दूँ, जिससे धरती तू हल्की हो जा। तब धरती माँ पुकार विनती कर बोली, मुझे इन सब चीजों का बोझ नहीं है, भार नहीं है मेरे ऊपर, बोझ उन कृतघ्नों, ख्वारी मनमुखों का है, जो इस धरा पर तेरा सब कुछ दिया यह बुत, स्वांस, हवा,पानी, रोशनी, आहार-विहार करते हैं, फिर भी काल के उपासक बने हैं और तेरा सिमरन, भजन नहीं करते।
प्रभु ने धरती का विरलाप सुन कहा, हे धरती! मैं वक्त-वक्त समय-समय पर जहाँ जिस मुल्क फिरके पर, जब पूर्ण समरथ सतगुरु के जहूर की कमी हुई, वहाँ मैं उन्हें भेजा करता हूँ और भेजूंगा और वे आकर नाम, आतम प्रेम, परम अमृत एवं जीवों के तापों को हरकर, उन्हें अपनी शरण ओट में रख, पाक निर्मल कर, मेरे परम धाम रूहों को ले आते हैं, वे आतम रूप एक अनुभव की तहकीकात सच्चाई को, इस धारा में आके गांव खेड़ों, कस्बों में भक्तों सेवकों की टोलियां लेकर, मेरे असल न्यारे सत्य रूप की बादशाहत की चाबियां, कुंजियां जीवों को बख्श कर चेताते हैं, वे विरदवान, करुणावान, परिपूर्ण कृपालु दया मेहर, बक्शीशों की धाराऐं लुटाते हैं एवं कृतघ्नों, दुष्ट प्रवृत्तियों को सत्य धर्म में लगाकर बंदगी से, सेवा चाकरी से जोड़ देते हैं। जब सतगुरु प्रगट होते हैं, जिस गाँव, शहर, कस्बे में, वहाँ धन समृद्धि परम ईश्वर का ऐश्वर्य खुल कर जीवों को वे बांटते हैं, पर भारी से भारी असुरी लोग मद में फूल जो इस खुदाई खेलों को मैला करते हैं, वे उनके लिए कड़े नियम बनाते हैं।
वक्त के पूरन सतगुरु के खेल का एक मात्र ध्येय, जीव जगत का आत्म हित ही है। आप देखो वक्त का पूरन सतगुरु, ज्ञानियों के साथ बैठकर, ज्ञान के गहरे भेद खोल देता है, बड़े बुजुर्गों के संग बैठ, बुजुर्गी ख्यालात और ऊँची तहजीबों की बात कह देता है, ब्रह्म ज्ञानियों की सभा में बैठ, अमृत की बादशाहत के राज उन्हें दे देता है, और कभी-कभी इतना क्षेत्र फैलने के बाद MANAGEMENT की विधियां खोलकर भी बताता है। और बच्चों के संग खेलकूद कर, उनके साथ हिलमिल जाता है, कभी वह मनोरंजन की सुरीली चर्चाएं भी करता है, कभी-कभी वह कवियों की तरह कविताऐं-साहित्य भी रच बोल लेता है। कभी वह ज्योतिषियों की तरह बोल कह देता है, कभी वह माटी-भाँडों की सेवा करता हुआ, सेवक जनों के साथ मिल जाता है। और कभी- कभी वह अपने नूरे जलाल में, हमें अर्शों सचखण्ड के हूबहू साफ आईनें दिखाता है। जब कभी काल असुरी प्रवृत्ति के लोग, मद अहंकार में पड़ जाते हैं, तो वें उनकी चालों को मोड़कर, विरदवान पिता की तरह फटकार, कड़क वचन कहता है और सफल सर्जन की तरह मानसिक, आदि दैविक, आदि भौतिकी याने तीनों तापों के ऑपरेशन भी सर्जन की तरह कर देता है और उन्हें दैविक राह भी देता है।
प्यारा सतगुरु अपने हर एक खेल भेद को, सेवा समझ कर पूरण होकर वर्तण करते हैं, वे कभी पानी की तरह निर्मल, हल्के सहज होकर, कभी बरफ की तरह कठोर होकर, चैतन्य धर्म की ताकत को बढ़ाते हैं।
यह कायनात पशु-पक्षी, चर-अचर, सूर्य-चंद्र उस प्रभु दाते माधव पुरुख के संविधान से दौड़ रहे हैं, सतगुरु कभी-कभी अपनी मौज में अपनी परिपूर्ण हस्ति का खोलकर हवाला भी दे देता है, कि वह जन्म यश से रहित है, वह कभी भोला दास गुलाम सेवक बन, हमें सचेत करता है, क्योंकि पूरे सतगुरु की धारा पर मौजूदगी, निर्गुण प्रभु की सर्गुण मौजूदगी है, क्योंकि सतगुरु मालिक-ऐ-कुल के रंग के पिरोया हुआ है और मालिक-ऐ-कुल, सतगुरु के रंगों से पिरोया हुआ है, सतगुरु में प्रतीत प्रेम उसकी भक्ति करना, पावन चरणों में बेपनाह प्रेम मोहब्बत प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष, यह सारा निह प्रभु से ही है।
समरथ सतगुरु के चोले में, हरी प्रभु दयाल काम करता है, वही करनेहार कुल-ऐ-दातार है, हरे माधव परम प्रभु है, हमें शुकराना करना चाहिए कि उस दीन दयाल ने, हमें ऐसे समरथ सतगुरु परम दयाल से मिला दिया, उसकी संगति छावं में आज हम सब बैठे हैं, रूहानी मार्ग दर्शन जिनकी मेहर से, हमें मिल रहा है।
वह प्रभु समरथ गुरुदेव इन्सानी तन में अपना काम करता है, वह सभी से प्यार करता है, उसकी आँखें खुली हैं, दिन में उजाले की तरह वह एक चीज़ को साफ-साफ देखता है, खुली आँखों से वह देखता है, करीम की अपार कृपा है, कि उसने मिले हुए से मिला लिया, जो हमारे जीवन के हर एक पग पर हमें मार्गदर्शन देते हैं, हमें नित प्रतिदिन सत्संग वचन, सेवा बक्श कर, प्रभु के धाम में ले जा रहा है, इस दुनीजहान का लेन देन भुगत कर, कर्मों का भारी हिसाब चुकता करके, हमारा साहेब पथ प्रदर्शक बन, अपनी छांव में रख, हरे माधव निज घर अखण्ड सचखण्ड धाम में पहुँचा देता है, वह हमें घर बार की गृहस्थी की जिम्मेदारि निभाने को कहता है और समझाता है, कि कार्य व्यवहार निभाते हुए, अपना अंदरूनी रुख साध-संगत में रखो।
सो विनती है हरिराया सतगुरां के चरणों में, हे मेरे हरे माधव परम दयाल अगोचर साहिबी के मेरे सतगुरु शहंशाह, हमें नाम सिमरन ध्यान का मीठा गुलाब बक्से, अपने पावन चरण कमलों का अटूट अगाध प्रेम, भक्ति बक्शें। इस देव दुर्लभ इन्सानी जन्म में, निज स्वरूप की बादशाहत का भेद, सोझी, आप जैसे सच्चे लोक के सच्चे पातशाह ही देने में सर्वसमरथ हैं। दया कीजिए मेरे प्यारे साहिब जी, मेरे माधव जी।
।। कहे माधवशाह सुनहो साधो, जागो मान वचन प्रतीत धरो ।।
।। बिन सतगुरु सब जग धुंधकारा, धुंधकारा भरमें फिरे भरमें फिरे ।।
हरे माधव हरे माधव हरे माधव